IT Sector Layoffs: आईटी सेक्टर का ये कैसा स्याह चेहरा ?
IT Sector Layoffs: दुनियाभर की टेक कंपनियों में छंटनी के सिलसिले की शुरूआत ट्विटर से हुई। कंपनी की कमान संभालते ही एलन मस्क ने 50 प्रतिशत कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया।
IT Sector Layoffs: हर चमकती हुई चीज सोना नहीं होती। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। एक बेहद आकर्षक, रंगीन तो दूसरा अनाकर्षक और भद्दा। सूचना प्रौद्योगिकी में आई क्रांति व इसके चलते भारतीय मध्य वर्ग को मिली नई व ऊँची उड़ान का यह दूसरा पहलू है। हालांकि इसके पहले पहलू ने भारत के साथ – साथ दुनिया भर में एक समृद्ध मिडिल क्लास को जन्म दिया। आईटी सेक्टर इतना मजबूत निकला कि इसने कोरोना महामारी जैसी भीषण प्राकृतिक आपदा को भी खुशी – खुशी झेल लिया। कोरोना तो इस सेक्टर के लिए आपदा में एक अवसर की तरह था। एक तरफ जहां तमाम सेक्टरों में छंटनी चरम पर थी, आईटी सेक्टर लाखों लोग को नई नौकरियां दे रहा था। लेकिन आईटी सेक्टर, जिसे कॉरपोरेट क्षेत्र का सबसे उम्दा जॉब माना जाता है, आज गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस सेक्टर ने लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। लेकिन अब इसके प्रोफेशनल आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। महामारी के दो साल बाद यह खुशफहमी अब टूटती नजर आ रही है।
दूसरे पहलू की ओर बढ़ाया कदम
इसी टूटती खुशफहमियों ने दूसरे पहलू की ओर अब कदम बढ़ा दिया है। जिसके तहत बेंगलुरू के एक आईटी प्रोफेशनल ने अपने बेटी की हत्या कर दी और फिर अपनी जान लेने की कोशिश की। 45 वर्षीय राहुल परमार कभी इस इंडस्ट्री में मोटा पैकेज पाया करते थे और शानदार जिंदगी जी रहे थे। लेकिन मंदी की आहट ने एक झटके में उनकी नौकरी छीन ली और वे बेरोजगार हो गए। उन्होंने अपने कुछ सेविंग्स और कर्ज की बदौलत बिटकॉइन का कारोबार शुरू किया। लेकिन वह नहीं चल सका। कर्ज के बोझ तले दबे राहुल कर्जदाताओं के उत्पीड़न से इतने परेशान हुए कि उन्होंने ये खौफनाक कदम उठा लिया। राहुल अपने बेटी से परिवार में सबसे अधिक प्यार करते थे। सो उन्होंने सोचा कि अपनी ज़िंदगी को समाप्त करने से पहले बेटी की इहलीला समाप्त कर दें। बेटी का गला दबाया। उसे लेकर नदी में कूद गये। पर उन्हें बचा लिया गया। अब उसकी ज़िंदगी मौत से भारी पड़ रही है। लाखों का पैकेज पाने वाले एक आईटी प्रोफेशनल की यह स्टोरी काफी डरावनी है और इस सेक्टर में उत्पन्न चुनौतियों की ओर इशारा कर रही है।
ट्विटर से छंटनी की शुरुआत
दुनियाभर की टेक कंपनियों में छंटनी के सिलसिले की शुरूआत ट्विटर से हुई। कंपनी की कमान संभालते ही एलन मस्क ने 50 प्रतिशत कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया। कुछ दिनों बाद फेसबुक, वाट्सऐप जैसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की पैरेंट कंपनी मेटा ने भी अपने इतिहास की सबसे बड़ी छंटनी करते हुए 11 हजार लोगों को जॉब से निकाल दिया। सिस्को ने अपने 'पुनर्गठन' योजना के हिस्से के रूप में 4,000 से अधिक कर्मचारियों या अपने कार्यबल के 5 फीसदी को निकाल दिया। इसके बाद दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन भी अपने 10 हजार कर्मचारियों को हटा चुकी है।
इस सूची में लेटेस्ट एंट्री मारी थी गूगल की पैरेंट कंपनी एल्फाबेट ने। रिपोर्ट्स के मुताबिक, एल्फाबेट भी खराब मार्केट कंडीशन को देखते हुए बड़ी संख्या में छंटनी करने का मन बना चुकी है। कंपनी 10 हजार कर्मियों को नौकरी से निकाल सकती है। इस सूची में माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल, सी-गेट, स्नैप, क्वॉइनबेस, लिफ्ट समेत ऐसी कई बड़ी, छोटी और मध्यम स्तर की कंपनियां हैं, जिन्होंने अपने यहां या तो छंटनी की शुरूआत कर दी है या ऐसा करने का इरादा रखती हैं। बाईज्यू, अनअकादमी, जोमैटो ने भी हाल के महीनों में छंटनी की घोषणा की है। कई कंपनियों ने छंटनी के कारणों के रूप में फंडिंग की कमी और पुनर्गठन का हवाला दिया है। जानकारों का कहना है कि 850 टेक कंपनियों में 1,37,000 से अधिक नौकरियां खत्म हो गई हैं और हजारों और जाने को हैं।
दिग्गज टेक कंपनियों के छंटनी अभियान को वैश्विक मंदी की आहट से जोड़कर देखा जा रहा है। एक रिपोर्ट बताती है कि 2021 के मुकाबले 2022 में आईटी कंपनियों ने 10 प्रतिशत कम विज्ञापन निकाला है। नौकरी.कॉम वेबसाइट के मुताबिक, 20 महीनों में पहली बार सालाना आधार पर आईटी सेक्टर की कंपनियों की जॉब पॉस्टिंग में कमी आई है।
छंटनी और हायरिंग पर ब्रेक लगाने वालों में केवल दिग्गज अमेरिकी कंपनियां ही नहीं बल्कि भारत के टेक जायंट्स भी शामिल हैं। विप्रो के कर्मचारियों की संख्या 6.5 फीसदी घटी है। एलएंडटी ने पांच प्रतिशत और टेक महिंद्रा ने करीब डेढ़ प्रतिशत कर्मचारियों को कम किया है। दरअसल, आईटी कंपनियों की कुल लागत में 55 से 65 प्रतिशत हिस्सेदारी कर्मचारियों पर आने वाले खर्च की होती है। यही वजह है कि कंपनियों ने हायरिंग की रफ्तार सुस्त कर दी है।
आईटी सेक्टर दुनिया के उन सेक्टरों में शामिल है, जो सबसे अधिक लोगों को रोजगार मुहैया करा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 50 लाख से अधिक लोग इस सेक्टर में काम कर रहे हैं। इस इंडस्ट्री के राजस्व की बात करें तो यह 227 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। इन दिनों दुनिया की बड़ी बड़ी आईटी कंपनियों से लेकर स्टार्ट-अप विश्व स्तर पर डिमांड घटने से परेशान हैं और अपने खर्चे घटाने की जुगत में लगे हुए हैं।
भारत पर असर
भारत में 50 लाख लोगों को रोज़गार देने वाले आईटी सेक्टर से जुड़े सेवा क्षेत्र में भर्ती में कमी आई है। भारत में कुल कार्यबल 50 करोड़ का है। उसमें आईटी सेक्टर का योगदान काफी छोटा तो है लेकिन इस सेक्टर ने ऑटो, रियल एस्टेट जैसे सेक्टरों को पुश करने में बहुत मदद की है क्योंकि इसी सेक्टर के बेहतरीन पैकेजों ने डिमांड बढ़ाई है।
अमेरिका में तो और बुरा हाल है। कई भारतीय पेशेवर अचानक छंटनी के कारण प्रभावित हुए हैं, और उनका अमेरिका में रहना अब अधर में है क्योंकि वे एच-1बी वीजा पर रह रहे हैं। दस पंद्रह साल से अमेरिका में नौकरी कर रहे लोगों को अब देश छोड़ना पड़ा गया है या कोई भी दूसरी नौकरी करने को मजबूर होना पड़ा है।
आईटी सेक्टर की आमदनी, कर्मचारियों के आकर्षक पैकेज, विदेश जाने के अवसर, ये सब बाकी सेक्टरों के मुकाबले "इलीट" हैं।
यूं तो भारत में न्यूनतम राष्ट्रीय मजदूरी की कोई तय दर नहीं है। लेकिन कई अध्ययनों के अनुसार, भारत में औसत वेतन 29,400 रुपये प्रति माह है। लेकिन इसमें भी कोई एकरूपता नहीं है। कुछ उद्योग ऊंचा भुगतान करते हैं तो कुछ बेहद कम। कोई पैमाना या इंडस्ट्री मानक नहीं है।
अन्य देशों के औसत वेतन की तुलना में भारत में औसत वेतन काफी कम है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में, यह प्रति वर्ष 53,490 डालर है और रूस में यह लगभग 16,616 डालर है। भारत में ये मात्र 4400 डॉलर है। यही मुख्य कारण है कि कई देश भारत को सॉफ्टवेयर डेवलपमेन्ट और ग्राहक सेवा नौकरियों की आउटसोर्सिंग के लिए चुनते हैं।
क्या चल रहा है इसकी थाह करना बहुत मुश्किल नहीं है। दरअसल, दो साल या उससे अधिक समय तक चली महामारी ने बिजनसों में असीम अवसरों को जन्म दिया। लोग घर पर फंसे हुए थे उन्होंने ऑनलाइन खरीदारी और ऑनलाइन मनोरंजन के जरिये अपनी जरूरतों को पूरा करके एक नया जीवन जीना सीखा। यही हाल शिक्षा सेक्टर में हुआ। पढ़ाई लिखाई ऑनलाइन होने लगी। बाईज्यू जैसी कंपनियों की चांदी हो गई। ज़ूम और गूगल मीट की डिमांड आसमान छूने लगी। टेक कंपनियों ने एक अंतहीन मांग का नजारा देखा, लगा कि अब जिंदगी बदल गई है। सब ऑनलाइन हो गया है और हमेशा के लिए। उन्होंने एक अनदेखे भविष्य के लिए बड़ी संख्या में लोगों को काम पर रखा और निवेश किया। हालांकि बिग टेक किसी भी गंभीर खतरे में नहीं है, लेकिन उनकी नीतियों के चलते कर्मचारियों के साथ एक तरह से खिलवाड़ ही हुआ है। कंपनियों ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि कुछ चीजें पूर्व-कोरोना समय पर वापस जाएंगी। इन्होंने उपभोक्ता व्यवहार सही से समझा ही नहीं और इसकी कीमत इनके कर्मचारी चुका रहे हैं।
यह तो रहा आर्थिक पहली। अब सामाजिक पहलू पर ज़िक्र करना ज़रूरी है। जॉब, करियर और पैकेज ने नौकरी करने वालों को परिवार, समाज और गाँव से काट दिया। जिस समाज में वे जीने को अभिशप्त हुए उसका रिश्ता और स्तर आर्थिक था। भावनात्मक, परंपरागत या पीढ़ीगत नहीं। नौकरी जाते ही वह टूट जाता है। परिवार को इतना स्वकेंद्रित बना देते हैं कि गाव- गिराँव, रिश्तेदार व समाज के लोगों से पूरी तरह कट चुके रहते है। हम दो हमारा एक या दो परिवार बन कर रह जाता है। घोर असफलता के दौर में इनके पास लौटने की जगह नहीं रहती। मोबाइल से लेकर मकान, गाड़ी सब ईएमआई पर चल रहे होते है। इन सुविधाओं से वंचित होकर जीना मुश्किल रहता है।
परेशानी की बात ये है कि हम असलियत से कटे हुए हैं। अमीर देश और उनके समाज लंबे काल खंड में इवॉल्व हुए हैं। हम इवॉल्व हुए बगैर उनकी नकल करने लगे। बड़े बड़े पैकेजवालों ने अपना अलग समाज बना लिया। लेकिन जिनकी नकल होती रही है और अब भी हो रही है, वह हमसे बहुत अलग हैं। हम जो हैं नहीं, वह बनने की कोशिश करेंगे तो नतीजे डरावने और खराब ही होंगे। ये अपने बच्चों और युवाओं को समझाने की जिम्मेदारी हमारी ही है, नहीं तो हम ही भुगतेंगे।
(लेखक पत्रकार हैं।)