18 January : वह दिन अगर रूडयार्ड किपलिंग न होते तो न 'द जंगल बुक' होता और न 'मोगली'

18 January : इस ख्याति प्राप्त ब्रिटिश लेखक के बिना 'द जंगल बुक' और बच्चों के दिल को छूने वाला 'मोगली' न होता।

Written By :  Aakanksha Dixit
Update:2024-01-18 10:16 IST

the jungle book  source : social media 

18 January : द जंगल बुक’ और ‘मोगली’ करेक्टर जैसे अपनी रचनात्मकता के चलते बच्चों के दिल में जगह बनाने वाले रूडयार्ड किपलिंग बच्चों के मन में आज भी ज़िंदा हैं। साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किपलिंग की बाल कहानियाँ सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं, जिनमें 'द जंगल बुक' और 'द जस्ट सो' मुख्य कहानी संग्रह हैं। ‘द जंगल बुक’और ‘मोगली’ दूरदर्शन के धारावाहिक के मार्फ़त घर घर के बच्चों में घर कर गये थे। द जंगल बुक नाम के किपलिंग के धारावाहिक ने केवल बच्चों के मन में उनके लिए असीम प्यार पैदा किया। बल्कि इस धारावाहिक के टाइटिल सांग क लिखने वाले गुलज़ार को भी बच्चों का चहेता बना दिया। शायद यही वजह है कि यह गान धारावाहिक से ज़्यादा लोकप्रिय हुआ।

बच्चों का प्यारा मोगली 

दूरदर्शन पर प्रसिद्ध हो चुके 'द जंगल बुक' धारावाहिक में, मोगली बच्चों का हमेशा प्रिय रहा। यह दिलचस्प है कि मोगली का गाना, जिसका शीर्षक था "जंगल-जंगल बात चली है, पता चला है, चड्डी पहन के फूल खिला है", मोगली से भी अधिक प्रसिद्ध हो गया। इस गीत के शब्द गुलजार ने रचे थे। कहा जाता है कि रूडयार्ड किपलिंग को मोगली की प्रेरणा एक वास्तविक लड़के से मिली थी, जो वाकई 20 साल तक भेड़ियों के साथ रहा था। इसके परिणामस्वरूप वह बच्चा उनकी तरह चलने और बोलने लगा था।

असल घटना पर आधारित 

'द जंगल बुक' एक वास्तविक कहानी है, जिसमें 1872 में शिकारियों ने एक बच्चे भेड़ियों की गुफा में पाया। उन्होंने भेड़ियों को मार दिया और 6 साल के उस बच्चे को साथ ले आए। वे समझ गए थे कि बच्चा उनकी बातें नहीं समझ सकता था और न ही कुछ बोल सकता था। वह भेड़ियों की तरह चार पैरों पर चलता था। उनकी तरह बोलता था। उसे एक अनाथाश्रम में लाया गया।उसका नाम दीना सनीचर रखा गया, क्योंकि वह उन्हें शनिवार के दिन मिला था। दीना पर बहुत से प्रयोग किये गये । कोशिशें की गईं लेकिन लगभग सभी असफल रहे। वह कच्चा मांस खाता था। वह बीच-बीच में भेड़ियों की भाषा बोलता था, जिससे लोगों को यह लगता था कि वह उनसे संवाद करना चाहता है। लेकिन उसने कभी इंसानों से दोस्ती नहीं की और 35 साल में उसकी मृत्यु हो गई। परन्तु यह किताब आज भी बच्चों के साथ-साथ बड़ों के भी कौतुहल का विषय बनी रहती है। छोटा हो या बड़ा हर कोई बड़े चाव के साथ इसे देखता है। रूडयार्ड किपलिंग का जन्म 1865 में मुंबई में हुआ था। 1907 में उन्हें साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 18 जनवरी 1936 को, उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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