अंग्रेजों ने घबराकर राष्ट्रकवि 'दिनकर' की इन किताबों पर लगा दिया था प्रतिबंध
लखनऊ: कविताओं से भारतीय समाज का पुराना नाता है। समय समय पर कविताओं के माध्यम से समाज में जागरूकता आई है। एक ऐसे ही कवि थे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से आजादी की लड़ाई और उसके बाद जनता को उसके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। आज महाकवि ‘दिनकर’ की 110 वीं जयंती है। इस मौके पर https://newstrack.com/ आपको इनके जीन और कृतियों से जुड़ी कुछ बातें बताने जा रहा है।
'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगुसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था। तीन साल की उम्र में ही इनके पिताजी का देहावसान हो जाने के कारण उनका बचपन अभावों के बीच में बीता। इनके घर पर रोज रामचरितमानस का पाठ होता था जिसने इनके अन्दर से कवि बनने के भाव को उजागर किया। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने हिंदी साहित्य में वीर रस के साथ साथ राष्ट्रीय चेतना का भी सृजन किया।दिनकर की रचना में राजनीतिक क्रान्ति भी झलकती है। वे अपने एक कृति में ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ ऐसे बदलावकारी शब्दों का चयन करते थे।
'दिनकर' के इन किताबों पर अंग्रेजों ने लगा दिया था प्रतिबंध
दिनकर की पहली रचना 'प्राणभंग' मानी जाती है. इसे उन्होंने 1928 में लिखा था। इसके बाद दिनकर ने 'रेणुका', 'हुंकार', 'कुरुक्षेत्र', 'बापू', 'रश्मिरथी' लिखा। 'रेणुका' और 'हुंकार' में देशभक्ति की भावना इस कदर भरी हुई थी कि घबराकर अंग्रेजों ने इन किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया था। दिनकर ने निर्भीक होकर अंग्रेजों के खिलाफ तो लिखा ही, लेकिन आजादी के बाद के सत्ता चरित्र को भी उजागर करने में भी पीछे नहीं हटे। दिनकर का पहला काव्यसंग्रह ‘विजय संदेश’ वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं की। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं ‘परशुराम की प्रतीक्षा' और ‘उर्वशी’ हैं|
इन अवार्डों से नवाजा गया था ‘दिनकर’ को
उन्हें वर्ष 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। पद्म भूषण और ज्ञानपीठ सम्मान भी मिला था। दिनकर राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 24 अप्रैल, 1974 को उनका देहावसान हो गया। दिनकर ने अपनी ज्यादातर रचनाएं ‘वीर रस’ में की थी। वह जनकवि थे इसीलिए उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा गया। वर्ष 1999 में उनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ओजस्वीपूर्ण कविता का उदाहरण
कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल.