Election Results 2022: बदल चुकी है भारतीय राजनीति
Election Results 2022: पांच विधानसभा चुनावों के परिणाम पिछले एक दशक में भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तनों का एक और ठोस संकेत हैं। भाजपा ने भारतीय राजनीति के स्वरूप को इस तरह से बदल दिया है, जिसका विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं है।
Election Results 2022: पांच विधानसभा चुनावों (Assembly Election) के परिणाम पिछले एक दशक में भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तनों का एक और ठोस संकेत हैं। भाजपा (BJP) ने भारतीय राजनीति पर अपनी शक्ति और वैचारिक आधिपत्य को मजबूत करते हुए यूपी में एक शानदार जीत दर्ज की है। इस जीत का एक सीधा और सरल संदेश है कि सब होने के बाद अंततः राजनीति प्रतिस्पर्धी विश्वसनीयता का खेल है और भाजपा के सामने कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है।
भाजपा ने राजनीति के स्वरूप को दिया बदल
भाजपा ने राजनीति के स्वरूप को इस तरह से बदल दिया है, जिसका विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं है। ये फिर साबित हो गया है कि भाजपा (BJP) का गहरा सामाजिक आधार है, विशेष रूप से महिलाओं और निचली जातियों के बीच और एक शानदार भौगोलिक पहुंच भी है जैसा कि मणिपुर के नतीजों से पता चला है। इन नतीजों ने ये भी दिखा दिया है कि गठबंधन के आधार पर किसी भी राष्ट्रीय दल का विरोध करने की रणनीति अब मर चुकी है।
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) और भाजपा (BJP) को छोड़कर बाकी सभी दल अपने-अपने सामाजिक गुणा-गणित पर निर्भर थे। लेकिन ये सोच गलत साबित हुई है कि लोगों ने केवल अपनी जाति को वोट दिया या भाजपा उच्च जाति का प्रतिनिधित्व करती है। सोसिल इंजीनियरिंग का फार्मूला भी अब अपनी रौनक खो बैठा है जो खासकर बहुजन समाज पार्टी (BSP) के प्रदर्शन से साफ जाहिर है।
एक बात और साफ़ है कि लोग अब पुरानपंथी, भ्रष्ट, निस्तेज और प्राचीन शासनों से ऊब चुके हैं। अब जनता इन्तजार करना नहीं चाहती और न ही उन गुजरे जमाने में वापस जाना चाहती है। अब एक सामाजिक असंतोष सामने है जो भी के लिए चिंता की बात होनी चाहिए।
यूपी में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने काफी कोशिश की और व्यापक प्रचार अभियान चलाया, लेकिन वे अपनी पार्टी से जुड़े अतीत से पीछा नहीं छुड़ा पाए। बहुत से लोगों ने ये जरूर सोचा होगा कि समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की सत्ता में वापसी का मतलब एक वही पुराने भ्रष्ट और माफियागीरी से सनी व्यवस्था में लौटा जाना है। कांग्रेस (Congress) के साथ भी अब लोगों की उम्मीदें जवाब दे चुकी हैं क्योंकि इस पार्टी के साथ भी बहुत सी पुरानी और उबाऊ यादें हैं जिनको जनता अब स्वीकारना नहीं चाहती। मोदी-योगी जोड़ी में लोग अब भी पुराने सिस्टम में बदलाव का जरिया देख रहे हैं।
2014 में शुरू हुआ देश की राजनीती में बदलाव का सिलसिला
देश की राजनीती में बदलाव का सिलसिला 2014 में शुरू हुआ और तब भाजपा और आम आदमी पार्टी, दोनों ही संभावित विकल्प के रूप में देखी जा रही थीं। इन दोनों पर ही पुराने शासन सिस्टम का तमगा चस्पा नहीं था। दोनों ही दलों ने एक ऐसी राजनीति पेश की जो सोशल इंजिनीयरिंग से कहीं आगे की थी। पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत के साथ इस दल को राष्ट्रीय राजनीति के विपक्षी खेमे में नया और मजबूत स्थान मिल गया है। अब सवाल कांग्रेस के पुनर्गठन या राहुल गाँधी के भविष्य का नहीं बल्कि नए सिरे से एक नया विपक्ष ढूँढने का है।
नरेद्र मोदी की लीडरशिप में लोगों के भरोसे का दोहराया जाना
5 राज्यों के इन विधानसभा चुनावों का एक और बिम्ब लीडरशिप की महत्ता का है। कोई चाहे या न चाहे अधिकांश राज्यों में इस बार का वोट नरेद्र मोदी (Narendra Modi) की लीडरशिप में लोगों के भरोसे का दोहराया जाना है। अब ये बात अलग है कि यूपी में एक सवाल उठाया जा सकता है कि लोगों ने मोदी के नाम पर वोट दिया कि योगी के नाम पर। एक सफल नेता ऐसी परिस्थितियाँ बनाते हैं जहाँ पार्टी में कोई मतभेद नहीं होता है, और एक साथ काम करने की क्षमता होती है। भाजपा के बारे में यह एक स्पष्ट तथ्य रहा है कि उसके घटक हिस्से एक समान धुन पर आगे बढ़ रहे हैं। यह एक ऐसी संगठनात्मक संस्कृति का निर्माण है जिसकी निगाह हमेशा बड़े लक्ष्य पर होती है। इसके विपरीत विपक्ष भले ही लोकतंत्र पर खतरे की घंटी बजाता रहे लेकिन उनका खुद का आचरण, पार्टी के भीतर की लड़ाई, संकट में एक साथ काम करने की कोई क्षमता का नदारद होना ये सब बताता है कि उनमें लड़ाई में खड़े होने का कोई आधार नहीं है।
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