Om Birla vs K. Suresh: देश में दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव, जानिए जिम्मेदारी संभालने वाले स्पीकरों की कहानी
Om Birla vs K. Suresh Lok Sabha Speaker: सरकार और विपक्ष में स्पीकर पद को लेकर सहमति नहीं बनने के बाद अब बुधवार को लोकसभा स्पीकर का चुनाव होगा। जिसमें एनडीए और विपक्ष में टक्कर है।
Om Birla vs K. Suresh: 18वीं लोकसभा के स्पीकर के चयन को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच आम सहमति नहीं बन पाने के कारण अब अध्यक्ष का चयन चुनाव के माध्यम से होगा। अब बुधवार को स्पीकर चुनाव के लिए मतदान होगा। देश के संसदीय इतिहास में ऐसा दूसरी बार होने जा रहा है जब लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए सरकार और विपक्ष के बीच सहमति नहीं बन पाई है। इसके बाद भाजपा सांसद ओम बिरला को एनडीए की ओर से तो विपक्ष की ओर से कांग्रेस सांसद कोडिकुनिल सुरेश को उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। दोनों ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है।
जनिए क्यों आई चुनाव की नौबत
विपक्ष लोकसभा स्पीकर पद के लिए तभी सहमति जताने को तैयार था जब डिप्टी स्पीकर विपक्ष का हो। लेकिन जब एनडीए की ओर से इस पर हां नहीं की गई तो विपक्ष ने स्पीकर पद के लिए अपना उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी। कांग्रेस के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल और द्रमुक नेता टीआर बालू लोकसभा अध्यक्ष के पद के लिए राजग उम्मीदवार का समर्थन करने से इनकार करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कार्यालय से बाहर आ गए। वेणुगोपाल ने आरोप लगाया कि सरकार ने उपाध्यक्ष पद विपक्ष को देने की प्रतिबद्धता नहीं जताई। बता दें कि पिछली बार ओम बिरला ही लोकसभा के स्पीकर थे, जबकि के. सुरेश आठ बार के सांसद रह चुके हैं। केवल स्पीकर पद को लेकर ही नहीं इससे पहले प्रोटेम स्पीकर के पद को लेकर भी सरकार और विपक्ष के बीच विवाद देखा गया था। जब सरकार ने भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर बना दिया था। विपक्ष का आरोप था कि सरकार ने के. सुरेश की वरिष्ठता को नजरअंदाज किया है।
सरकार और विपक्ष में जब स्पीकर को लेकर आम सहमति नहीं बनी तो चुनाव की नौबत आ गई और इसी के साथ देश में लंबे समय से चली आ रही परंपरा भी टूट गई। दरअसल, पहले लोकसभा सत्र को छोड़ दें तो अब तक निचले सदन यानी लोकसभा में अध्यक्ष सर्वसम्मति से ही चुना जाता रहा है। 17वीं लोकसभा में भी ऐसा ही हुआ था। हालांकि, इस बार दोनों ओर से स्पीकर पद पर उम्मीदवारों के नामांकन के साथ ही इस पद पर सर्वसम्मति से होने वाली निर्वाचन की बीते 16 लोकसभा से जारी परंपरा टूट गई।
15 मई 1952 को हुआ था पहली लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव
बता दें कि 15 मई 1952 को देश की पहली लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में सत्ता पक्ष के जीवी मावलंकर उमीदवार थे और उनका मुकाबला विपक्ष के शंकर शांतराम मोरे से हुआ था। मावलंकर के पक्ष में 394 वोट, जबकि 55 वोट उनके खिलाफ पड़े थे। इस तरह मावलंकर आजादी से पहले देश के पहले लोकसभा स्पीकर बने थे।आइए अब यहां जानते हैं कि आखिर क्यों महत्वपूर्ण होता है स्पीकर का पद? लोकसभा स्पीकर का चुनाव कैसे होता है? और इस पद की क्या भूमिका है, अब तक किस-किस ने लोकसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी को संभाला है? किस-किस पार्टी के सदस्य अब तक लोकसभा अध्यक्ष बने हैं?
क्या होता है लोकसभा अध्यक्ष का पद?
सबसे पहले बात क्या होता है लोकसभा अध्यक्ष? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 93 में लोकसभा के स्पीकर के चुनाव का जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 93 के अनुसार, लोकसभा को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की भूमिका के लिए दो सदस्यों को चुनने का अधिकार है, जब भी ये पद खाली होते हैं। हमारे संसदीय लोकतंत्र में लोकसभा अध्यक्ष के पद का एक महत्वपूर्ण स्थान है। अध्यक्ष उस सदन की गरिमा और शक्ति का प्रतीक है जिसकी वह अध्यक्षता करता है। अगर पद और वरीयता की बात करें तो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अपने-अपने राज्यों के राज्यपाल और पूर्व राष्ट्रपति, उप प्रधानमंत्री के बाद छठे स्थान पर भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ ही लोकसभा अध्यक्ष का पद आता है।
कैसे होता है चुनाव?
जब एक बार लोकसभा स्पीकर के चुनाव की तारीख राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित हो जाती है और लोकसभा सचिवालय द्वारा अधिसूचित हो जाती है, तो कोई भी सदस्य महासचिव को संबोधित करते हुए लिखित रूप में प्रस्ताव दे सकता है कि किसी अन्य सदस्य को सदन का अध्यक्ष चुना जाए।लोकसभा में अध्यक्ष का चुनाव इसके सदस्यों में से सभा में मौजूद और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है। लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के लिए कोई विशेष योग्यता निर्धारित नहीं की गई है और संविधान में मात्र यह अपेक्षित है कि उसे सदन का सदस्य होना चाहिए। अक्सर यही देखा गया है कि सत्तारूढ़ दल के सदस्य को ही लोकसभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया जाता है। उम्मीदवार के संबंध में एक बार निर्णय ले लिए जाने पर आमतौर पर प्रधानमंत्री और संसदीय कार्य मंत्री द्वारा उसके नाम का प्रस्ताव किया जाता है।
प्रस्तुत किए गए प्रस्तावों का आवश्यकता के अनुसार, सभा में मत विभाजन द्वारा फैसला किया जाता है। यदि कोई प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो पीठासीन अधिकारी उसकी घोषणा करेगा कि प्रस्तावित सदस्य को लोकसभा का अध्यक्ष चुन लिया गया है। नतीजा घोषित किए जाने के बाद नवनिर्वाचित स्पीकर को प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा अध्यक्ष आसन तक ले जाया जाता है। इसके बाद सभा में सभी राजनैतिक दलों और समूहों के नेताओं द्वारा अध्यक्ष को बधाई दी जाती है और उसके जवाब में वह सभा में धन्यवाद भाषण देता है और इसके बाद नया अध्यक्ष अपना कार्यभार ग्रहण करता है।
क्यों महत्वपूर्ण होता है यह पद?
यह पद इसलिए काफी महत्वपूर्ण है कि भारत में लोकसभा का अध्यक्ष सभा का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है। वह सभा का प्रमुख प्रवक्ता होता है। लोकसभा की कार्यवाही के संचालन का सारा उत्तरदायित्व अध्यक्ष पर ही होता है। अध्यक्ष को संसद के अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में आने वाली वास्तविक आवश्यकताओं और समस्याओं का समाधान करना पड़ता है। सदन का संचालन, प्रश्न और अभिलेख, ध्वनि मत, विभाजन, अविश्वास प्रस्ताव, मतदान और सदस्यों की अयोग्यता जैसे अहम मामले अध्यक्ष की शक्तियों में आते हैं।
जानिए अब तक किस-किस ने संभाली स्पीकर पद की जिम्मेदारी?
गणेश वासुदेव मावलंकर
लोकसभा के पहले अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर थे। कांग्रेस के सांसद रहे मावलंकर का कार्यकाल मई 1952 से फरवरी 1956 तक रहा था। अध्यक्ष पद पर रहते हुए ही मावलंकर का निधन हो गया।
एम. अनन्तशयनम अय्यंगार
मावलंकर के निधन के बाद एम. अनन्तशयनम अय्यंगार दूसरे लोकसभा अध्यक्ष बने। उन्होंने लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर के आकस्मिक निधन के बाद इस पद का दायित्व संभाला था। कांग्रेस पार्टी के सांसद अय्यंगार के दो कार्यकाल रहे, जिसमें पहला मार्च 1956 से मई 1957 तक और दूसरा मई 1957 से अप्रैल 1962 तक रहा।
सरदार हुकम सिंह
लोकसभा के तीसरे अध्यक्ष सरदार हुकम सिंह थे। वे अप्रैल 1962 से मार्च 1967 के बीच स्पीकर रहे। वर्ष 1962 के आम चुनावों में हुकम सिंह को कांग्रेस के टिकट पर पटियाला सीट से सांसद चुना गया था।
डॉ. नीलम संजीव रेड्डी
डॉक्टर नीलम संजीव रेड्डी ने लोकसभा के चौथे अध्यक्ष के रूप में काम किया। रेड्डी के भी दो कार्यकाल रहे, जिसमें उनका पहला कार्यकाल मार्च 1967 से जुलाई 1669 तक और दूसरा मार्च 1977 से जुलाई 1977 तक रहा। रेड्डी चौथी लोकसभा के लिए आंध्र प्रदेश के हिन्दुपुर सीट से लोकसभा के लिए सांसद निर्वाचित हुए थे।नीलम संजीव रेड्डी ही ऐसे एकमात्र अध्यक्ष रहे जिन्होंने अध्यक्ष पद का कार्यभार सम्भालने के बाद अपने दल से औपचारिक रूप से त्यागपत्र दे दिया था। अध्यक्ष पद पर चुने जाने के तुरन्त बाद उन्होंने कांग्रेस की अपनी 34 वर्ष पुरानी सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। उनका यह मानना था कि अध्यक्ष का संबंध सम्पूर्ण सभा से होता है, वह सभी सदस्यों का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए उसे किसी दल से जुड़ा नहीं होना चाहिए या यों कहें कि उसका संबंध सभी दलों से होना चाहिए। वह ऐसे एकमात्र लोकसभा अध्यक्ष भी थे जिन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुने जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों
नीलम संजीवा रेड्डी द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया गया। इसके बाद डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों को अगस्त 1969 में सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। जब ढिल्लों इस पद के लिए निर्वाचित हुए तो वे उस समय तक लोकसभा के जितने अध्यक्ष हुए थे उनमें से सबसे कम उम्र के अध्यक्ष थे। कांग्रेस नेता ढिल्लों ने दो बार लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। पहला कार्यकाल अगस्त 1969 से मार्च 1971 तक और दूसरा मार्च 1971 से दिसंबर 1975 तक रहा।
इन्होंने भी संभाली स्पीकर की कुर्सी
ढिल्लों द्वारा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिए जाने के बाद जनवरी 1976 में बली राम भगत को पांचवीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया। कांग्रेस से आने वाले नेता का कार्यकाल मार्च 1977 को समाप्त हुआ था।
सदानन्द हेगड़े
छठीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में कावदूर सदानन्द हेगड़े का चुनाव किया गया। केएस हेगड़े का कार्यकाल जुलाई 1977 से जनवरी 1980 तक रहा। यह भी दिलचस्प था कि हेगड़े 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार निर्वाचित हुए और अपने प्रथम कार्यकाल के दौरान ही उन्हें लोकसभा अध्यक्ष का पद मिल गया।
डाक्टर बलराम जाखड़
डॉक्टर बलराम जाखड़ ने सातवीं लोकसभा के लिए अपने सर्वप्रथम निर्वाचन के तुरंत बाद अध्यक्ष पद हासिल किया। उन्हें लगातार दो बार लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस से आने वाले बलराम जाखड़ का पहला कार्यकाल जनवरी 1980 से जनवरी 1985 तक और दूसरा कार्यकाल जनवरी 1985 से दिसंबर 1989 तक रहा।
रवि राय-
ओडिशा से आने वाले जनता दल के नेता रवि राय को दिसम्बर 1989 में नौवीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। हालांकि, रवि राय अध्यक्ष पद पर केवल करीब 15 महीने ही रहे।
शिवराज पाटील
कांग्रेस नेता शिवराज विश्वनाथ पाटील 10वीं लोकसभा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। पाटील का कार्यकाल जुलाई 1991 से मई 1996 तक रहा। पाटील कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे। वे कें्रद में कई बार मंत्री भी रहे थे।
विपक्षी सांसद भी बने लोकसभा के स्पीकर
वर्षों की भारतीय संसदीय परंपरा से हटकर 11वीं लोकसभा ने विपक्ष के एक सदस्य पूर्णो अगितोक संगमा को सर्वसम्मति से अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित किया। उस समय भारत के 50 वर्षों के संसदीय इतिहास में वह ऐसे पहले सदस्य थे जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए अध्यक्ष का पद संभाला। उस समय कांग्रेस नेता संगमा का स्पीकर के रूप में कार्यकाल मार्च 1996 से मार्च 1998 तक रहा था
जीएमसी बालायोगी
12वीं लोकसभा का अध्यक्ष गन्ती मोहन चन्द्र बालायोगी निर्वाचित हुए। उन्हें सर्वसम्मति से 13वीं लोकसभा का अध्यक्ष भी निर्वाचित होने का गौरव हासिल है। तेलुगूदेशम पार्टी सांसद बालायोगी ने मार्च 1998 में देश के राजनैतिक इतिहास के अत्यंत नाजुक दौर में लोकसभा अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पद के लिए निर्वाचित हुए। टीडीपी उस समय गठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन कर रही थी। उस समय किसी भी पार्टी के पास स्पष्ट जनादेश नहीं था। बालायोगी इस पद पर आसीन होने वाले आज तक के सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालायोगी की दुखद मृत्यु के बाद मनोहर जोशी मई 2002 में लोकसभा अध्यक्ष बने थे। शिवसेना से ताल्लुक रखने वाले जोशी जून 2004 तक इस पद पर बने रहे।
सोमनाथ चटर्जी
जून 2004 में 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी को सर्वसम्मति से चुना गया। यह पहली बार था जब सामयिक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) का लोकसभा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन किया गया था। सोमनाथ चटर्जी माकपा से जुड़े थे।
मीरा कुमार बनीं पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष
उप-प्रधानमंत्री स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार 2009 से 2014 तक 15वीं लोकसभा की अध्यक्ष रहीं। इस पद पर आसीन होने वाली वे पहली महिला थीं। मीरा कुमार कांग्रेस पार्टी की सदस्य हैं। बिहार से आने वाली मीरा कुमार केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार में मंत्री भी रही हैं।
सुमित्रा महाजन
16वीं लोकसभा का अध्यक्ष भाजपा की सुमित्रा महाजन को चुना गया। वे इस महत्वपूर्ण पद पर आसीन होने वाली भारत की दूसरी महिला थीं। सुमित्रा महाजन मध्य प्रदेश के इंदौर से लोकसभा सांसद थीं। वो इंदौर से कई बार सांसद रहीं।
17वीं लोकसभा का अध्यक्ष राजस्थान के कोटा से भाजपा के सांसद ओम बिरला को चुना गया था। ओम बिड़ला को एनडीए ने 18वीं लोकसभा के स्पीकर पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं इस बार विपक्ष ने भी अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा है। अब इस पद के लिए बुधवार को चुनाव होगा।