Lok Sabha Election 2024: अजी जनाब यह पुरानी नहीं, नई सपा है !

Lok Sabha Election 2024: भाजपा कांग्रेस के बाद वह देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी जो बन चुकी है। अब समाजवादी पार्टी की रणनीति पार्टी के प्रभाव को दक्षिण भारत तक ले जाने की है

Report :  Jyotsna Singh
Update:2024-06-24 11:37 IST

Lok Sabha Election 2024 ( Social- Media- Photo)

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी सफलता के बाद समाजवादी पार्टी बदली हुई दिख रही है। इसकी शुरूआत हो चुकी है जल्द ही सब कुछ बदला नजर आएगा। हो भी क्यों न, भाजपा कांग्रेस के बाद वह देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी जो बन चुकी है। अब समाजवादी पार्टी की रणनीति पार्टी के प्रभाव को दक्षिण भारत तक ले जाने की है।अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी अब युवाओं को लेकर आगे बढ़ने की रणनीति बना रही है। जिसके दम पर भाजपा को 2014 और 2019 में जबर्दस्त बहुमत मिला। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में युवा रोजगार के मसले पर भाजपा से नाराज होता दिखा। जिसका सपा लाभ उठाना चाह रही है। यही नहीं सपा गैर हिंदी भाषी दक्षिण के प्रदेशों में भी विस्तार की रणनीति के साथ आगे बढ़ना चाहती है।यही कारण है कि इस बार समाजवादी बुलेटिन पत्रिका में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का संदेश अग्रेजी में है।

इसके पीछे इसके लिए हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी ज्यादा मुफीद साबित होगी। बुलेटिन में अंग्रेजी के राइट अप इसी बात के संकेत हैं। एक समय यह था जब पार्टी के संस्थापक अग्रेंजी भाषा के सख्त विरोधी हुआ करते थें उनका मानना था कि अग्रेंजी गुलामी मानसिकता वाली है।लेकिन, इस बार सपा ने अपने मासिक समाजवादी बुलेटिन में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का संदेश अंग्रेजी में दिया है। इसके पीछे की रणनीति शिक्षित युवाओं को पार्टी में जोड़ने की है।चुनाव के पहले भी अखिलेश यादव ने अग्रेंजी के शब्दों का इस्तेमाल ( पीडीए) के तौर पर किया था। लेकिन इस बार तो अपने समाजवादी बुलेटिन में भी अंग्रेजी को स्थान दिया है। यह भी बताने की कोशिश की गयी है कि सपा ने पीडीए के साथ-साथ अगड़ों को भी प्रतिनिधित्व देने का पूरा ख्याल रखा है। युवाओं को पार्टी की तरफ आकर्षित करने के लिए युवा सांसदों इकरा हसन, प्रिया सरोज और पुष्पेंद्र सरोज पर फोकस किया गया है।

लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी सीटों के लिहाज से अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है। उसे 37 सीटों के साथ ही 33.59 प्रतिशत वोट मिले हैं। पार्टी अपने इस प्रदर्शन में पीडीए रणनीति का अहम योगदान मान रही है। पार्टी ने पिछड़ों में गैर यादव ओबीसी पर फोकस किया तो उसे अच्छे परिणाम मिल गए। लोकसभा चुनाव में 10 कुर्मी नेताओं को टिकट दिया गया जिसमें से सात चुनाव जीत गए। निषाद, बिंद, जाट, राजभर, लोधी, भूमिहार, मौर्य शाक्य कुशवाहा जातियों पर भी पार्टी ने फोकस बढ़ाया है।समाजवादी पार्टी ने 2027 में विधानसभा चुनाव जीतने का लक्ष्य लेकर चलना शुरू कर दिया है। इसके लिए शिक्षा और प गांव-गांव पीडीए पंचायत करने जा रही है। इसके जरिये इनमें खाली जातियों को एकजुट करेगी और उन्हें अधिकारी के प्रति करेगी।

जल्द ही समाजवादी पार्टी को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए किसी का चयन करना है। अखिलेश यादव खुद भी इशारा कर चुके है कि ऐसा चेहरा चुनने पर जोर होगा जिससे पार्टी के वोट को और बढ़ाया जा सके।फिलहाल, यहां नेता प्रतिपक्ष की दौड़ मे चाचा शिवपाल यादव के साथ बसपा से आए रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज जैसे चेहरों को माना जा रहा है। शिवपाल सिंह यादव मायावती सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष रह चुके है। इसके अलावा विधानपरिषद में भी नेता प्रतिपक्ष और पार्टी सचेतक का भी चयन किया जाना है।

यहां यह बताना भी जरूरी है कि दो साल बाद सपा ने विधान परिषद में 1/10 की सदस्य संख्या का मानक पूरा कर लिया है। इसलिए यहां भी नेता प्रतिपक्ष का पद उसे वापस मिलना तय है। अगले महीने विधानमंडल के मॉनसून सत्र में यह ताजपोशी हो जाएगी।अब देखना यह है कि सपा पुराने चेहरे को चुनती है या नए समीकरण को तरजीह देती है। नेता प्रतिपक्ष का दर्जा छीनने तक लाल बिहारी यादव के पास विधानपरिषद में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी थी। हालांकि, अब पूर्व मंत्री और सपा के वरिष्ठ नेता बलराम यादव भी परिषद पहुंच चुके है। वह विधानपरिषद के काफी पुराने सदस्य है। इसलिए उनको भी दावेदार माना जा रहा है। चर्चा यह भी है कि विस में अगर सपा किसी यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाती है तो परिषद में मुस्लिम चेहरे को जिम्मेदारी देकर कोर वोटरों को साधा जा सकता है। परिषद में सपा के पास दो मुस्लिम सदस्य हैं। समाजवादी पार्टी सवर्णो पर भी फोकस बनाए हुए है। इसके लिए समाजवादी बुलेटिन में धौरहरा से आनंद भदौरिया बलिया से सनातन पांडेय, घोसी से राजीव राय का भी जिक्र है।

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