Lok Sabha Election 2024: चुनाव परिणामों ने बड़े बड़े दिग्गजों को किया है धाराशाई

Lok Sabha Election 2024:भले ही इस चुनाव में दिग्गज अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हो पर जनता के मूड ने पूर्व में कई बड़े नेताओं को लोकसभा जाने से रोका है

Report :  Jyotsna Singh
Update:2024-05-20 10:19 IST

Lok Sabah Election ( Social Media Photo) 

Lok Sabah Election 2024: लोकसभा चुनाव के लिए आज वोटिंग हो रही है। जबकि अभी छठे और सातवें यानी अंतिम चरण का मतदान संपन्न होना बाकी है। मतदान के इन चरणों में भी राजनीति के एक से एक धुरंधरों के भाग्य का फैसला जनता को करना है। भले ही इस चुनाव में दिग्गज अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हो पर जनता के मूड ने पूर्व में कई बड़े नेताओं को लोकसभा जाने से रोका है।डा0 भीमराव आंबेडकर हो या रामनोहर लोहिया हो या दीनदयाल उपाध्याय या अटल बिहारी वाजपेई हो सभी को हार का सामना करना पड़ा। बलराज मधोक जनता दल के प्रत्याशी मांधाता सिंह के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैंदान में थे। मधोक को हिंदूवादियों का समर्थन मिला और माना जा रहा था कि वह जीत जाएंगे। इसी दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने एक लाइन का बयान दिया। मधोक हमारे प्रत्याशी नहीं हैं और पूरे चुनावी रुख पलट गया मधोक हार गए। डा. भीमराव आंबेडकर 1952 में बंबई उत्तर से आरपीआई के उम्मीदवार थे तब उन्हें कांग्रेस के एनएस काजरोलकर ने शिकस्त दी थी। इसके अलावा अब तक यूपी से हुए नौ प्रधानमंत्रियों में पांच लोगों को यहां की जनता ने हार का स्वाद चखाया। प्रधानमंत्रियों के अलावा मुख्यमंत्री बनने से पहले या उसके बाद में कई दिग्गजों को भी हार का सामना करना पड़ा।


राममनोहर लोहिया को 1957 चंदौली से और 1962 में फूलपुर से निर्वाचन क्षेत्र से पराजित हुए। लोहिया को पहले कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण ने फिर फू लपुर में जवाहर लाल नेहरू हराया था। जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय को 1963 के जौनपुर के उपचुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा था। भारतीय जनता पार्टी के शिखर पुरूष अटल बिहारी बाजपेयी भले ही लखनऊ से भले पांच बार निर्वाचित होकर प्रधानमंत्री बने हो लेकिन इसी लखनऊ में उन्हे 1957 में कांग्रेस के उम्मीदवार पुलिन बिहारी बनर्जी ने पराजित किया था। 1962 में एक बार फिर अटल बिहारी बाजपेई को शिकस्त का सामना करना पड़ा। तब कांग्रेस के वी के धवन से पराजित हुए थे। लखनऊ के अलावा अटल बिहारी बाजपेयी को बलरामपुर में भी हार का सामना करना पड़ा था । यहां उन्हे सुभद्रा जोशी ने पराजित किया था। आचार्य जेबी कृपलानी को भी 1952 में फैजाबाद निर्वाचन क्षेत्र से हार का स्वाद चखना पड़ा। उन्हे कांग्रेस के लल्लन जी ने हराया था। इसी निर्वाचन क्षेत्र से उनकी पत्नी और प्रदेश की सीएम रही सुचेता कृपलानी चुनाव हार गई। 1971 के लोकसभा चुनाव में रामकृष्ण सिंह ने सुचेता कृपलानी को हराया था।


सन 1977 के चुनाव में रायबरेली से राजनारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को हरा दिया। 1977 की जनतापार्टी सरकार में राजनारायण केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री बने। जनता पार्टी सरकार का नेतृत्व कर चुके चौ.चरण सिंह को भी 1971 में मुजफ्फरनगर से हार का सामना करना पड़ा था। 1977 में ही पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह को इलाहाबाद जनता पार्टी के प्रत्याशी जनेश्वर मिश्र ने हराया था। इसी साल हुए चुनाव में संजय गांधी को अमेठी से शिकस्त का सामना करना पड़ा में बाद में इसी सीट से 1984 में उनकी पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपने जेठ राजीव गांधी के खिलाफ मैदान में थी वहां की जनता ने उन्हे नकार दिया था। इसके बाद 1991 के आम चुनाव में भी मेनका गांधी को पीलीभीत से शिकस्त का सामना करना पड़ा था। 1984 के लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर को हार का सामना करना पड़ा था उन्हे कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी ने बलियासंसदीय क्षेत्र में हराया। चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रही तथा संसद और विधानमंडल दल के दोनों सदनों की सदस्य रही मायावती को एक नहीं कई बार हार का मुंह देखना पड़ा था।


1984 में कैराना और 1985 में बिजनौर और 1987 के हरिद्वार उपचुनाव में उन्हे शिकस्त का सामना करना पड़ा था। 1989 में बिजनौर से निर्वाचित हुयी और 1991 में इसी सीट से उन्हे शिकस्त का सामना करना पड़ा। इसके अलावा मायावती 1992 में बुलन्दशहर के हुए उपचुनाव में भी पराजित हुयी और 1998-99-2004 के अकबरपुर से निर्वाचित हुयी। बसपा के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे कांशीराम को भी 1996 फूलपुर 1998मे सहारनपुर में शिकस्त का का सामना करना पड़ा। चार बार उत्तर प्रदेश और एक बार उत्तराखंड के सीएम रहे नारायण दत्त तिवारी 1991-98 में नैनीताल से चुनाव हारे। इसी तरह प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा को भी 1984 में कांग्रेस की सहानुभूति लहर में फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने पराजित किया था। 1977 में जनता पार्टी सरकार का नेतृत्व कर चुके रामनरेश यादव को 1989 के लोकसभा चुनाव में बदायूं की जनता ने नकार दिया था। 1977 में हालांकि वे आजमगढ़ से सांसद निर्वाचित हुए उसके बावजूद उन्हे मुख्यमंत्री बनाया गया बाद में 1984 और 1998 में उन्होंने फिर आजमगगढ़ से अपना भाग्य आजमाया लेकिन उन्हे निराशा हांथ लगी। पूर्व केन्द्रीय में मंत्री और इस समय लोकतांत्रिक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को भी 1984 और 1991 में बदायूं में हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा के शीर्षस्थ नेता और इस समय मार्गदर्शक मंडल में शामिल मुरली मनोहर जोशी को 1980.1984 में अल्मोड़ा और 2004 में इलाहाबाद से हार का सामना करना पड़ा था।

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