Lok Sabha Election: भाजपा ही नहीं, सभी के लिए कई सबक

Lok Sabha Election: विगत 10 वर्षों में देश और गरीबों के हित में बहुत कुछ करने के बाद भी नरेंद्र मोदी को 2024 के चुनाव में स्पष्ट बहुमत न मिलने के क्या कारण हो सकते हैं

Update:2024-06-09 13:43 IST

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Lok Sabha Election: विगत 10 वर्षों में देश और गरीबों के हित में बहुत कुछ करने के बाद भी नरेंद्र मोदी को 2024 के चुनाव में स्पष्ट बहुमत न मिलने के क्या कारण हो सकते हैं, इस बारे में कई विश्लेषण किये जा रहे हैं। मेरे विश्लेषण से वह कुछ कारण जिन्होंने उनकी पार्टी के खराब प्रदर्शन में योगदान किया है उनकी चर्चा यहां करते हैं।

मूल्यांकन और फीडबैक की कमी

सांसदों के क्षेत्र में उनके कार्यों का मूल्यांकन तथा उनकी छवि पर विचार किये बिना टिकट का वितरण किया गया। उदाहरण स्वरूप, मोहनलालगंज सुरक्षित क्षेत्र से कौशल किशोर, जिनका नाम अख़बारों की सुर्खियों मे , उनके घर मे ही हत्या होने के कारण रहा, लखीमपुर खीरी से अजय मिश्रा टेनी के पुत्र द्वारा जीप से कुचल कर कई किसानों की हत्या का मामला होने के बाद भी उन्हें टिकट दिया गया। बृजभूषण सिंह के मुद्दे पर भी बहुत देर से निर्णय किया गया और उनके पुत्र को टिकट दिया गया। हालांकि वे विजयी भी हुए। 


थके हारे उम्मीदवार

उत्तर प्रदेश में ही यदि हार के कारणों पर फोकस करे तो नगीना,मुजफ्फरनगर, बस्ती रॉबर्ट्सगंज, गाजीपुर, अयोध्या में भाजपा या सहयोगी दलों की हार कमजोर थके हुए उम्मीदवार की वजह से हुई। किसी भी प्रत्याशी को टिकट देते समय क्षेत्र में किये गये उनके कार्यों की समीक्षा भी होनी चाहिये थी। आखिरकार वे कब तक मोदी जी और भाजपा के नाम का सहारा लेते रहेंगे


जातिवादी राजनीति

विपक्ष खासतौर से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा - दलित - अल्पसंख्यक (पीडीए) जातिवादी राजनीति को बढ़ावा दिया। उन्होंने इन वर्गों / जातियों मे यह भ्रम फैलाया कि भाजपा जीतेगी तो उनका आरक्षण खत्म कर देगी। भ्रष्टाचार के विरुद्ध छोड़े अभियान को यह कह दिया गया कि इससे संविधान और प्रजातंत्र पर ख़तरा होगा। यह झूठा प्रचार किया गया ।


पैसे का लालच

कॉंग्रेस पार्टी ने महिलाओं के खाते मे 8500 रुपये प्रतिमाह भेजने के आधार पर अल्पसंख्यक महिला मतदाताओं को भ्रमित किया। लखनऊ में तो ढेरों महिलाएं पैसे के लिए कांग्रेस दफ्तर पहुंच गईं।मोदी जी का यह नारा,"सबका साथ सबका विकास ,सबका विश्वास।" जिसके आधार पर उन्होंने ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वालों के हित के लिये प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान योजना, सुकन्या निधि योजना, खाद्य सुरक्षा योजना, किसान सम्मान निधि योजना, उज्ज्वला योजना और मुद्रा योजना ,डायरेक्ट बेनिफिट योजना, बिना किसी जाति, धर्म के भेदभाव के दिया। फिर भी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक वर्ग में समाज को बांट कर वोट लेने/शासन करने, बहुमत प्राप्त करने की कोशिस क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा की गई। शायद यही उनका पारंपरिक वोट बैंक भी है।


महंगाई का फैक्टर

महंगाई, खास कर खाद्य वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी भी बीजेपी की हार का एक कारण हो सकती है। इसे भाजपा द्वारा समय रहते समझा नहीं गया। विदेशों में भारत के सम्मान और गौरव की बढ़ोतरी, भारतीय संस्कृति की पहचान जैसी चीजें गरीबों के लिए कोई माने नहीं रखती।


क्या होना चाहिए

भारतीय समाज, जो जाति के आधार पर बटा हुआ है उसे हिन्दू संज्ञा देकर एकता के सूत्र मे नहीं लाया जा सकता। इसलिए यह आवश्क है यहाँ रहने वालों को नागरिकता की कसौटी पर परखें और उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर ही सरकारी सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाएं न कि जातिगत या धार्मिक आधार पर।भारत मे सभी धर्मों के लोग रहते हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग हैं। इसको हम मिश्रित संस्कृति के रुप मे भी देख सकते हैं। इनका भारत की अर्थव्यवस्था मे योगदान भी है। इस सच्चाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अतः एक कल्याणकारी राज्य मे सभी के हितों को भी ध्यान रखना होगा।हाँ, जो लोग चाहे वे किसी धर्म जाति के हों भारत या देश के अहित की सोच रखते हों या ऐसे कार्यों मे लिप्त है तो उन्हें सजा अवश्य मिलनी चाहिये..जैसे आतंकवादी अलगाववादी विध्वंसक इत्यादि।समाज का मध्यम वर्ग हमेशा इनकम टैक्स देता रहा है इसके बाद उसे कोई सुविधाएँ नहीं मिलती। इसके विपरित उनसे टैक्स लेकर अन्य लोगों मे मुफ्त रेवड़ी बंट जाती है। मुफ्त बांटने से मानव संसाधनों का उपयोग नहीं हो पाता। अतः मुफ्त रेवड़ी बंटनी बंद होनी चाहिए।ये भी अब बहुत गंभीरता से सोचना चाहिए कि जर्मनी का ब्यक्ति जर्मन होने का, फ्रांस के फ्रांसीसी होने का, अमेरिका के अमेरिकन होने पर गर्व महसूस करता हैं लेकिन हम भारतवासी भारतीय होने का गर्व क्यों नहीं करते?

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