डाकू मानसिंह ने भी इस गीतकार के सामने झुकाया था अपना सिर

Update:2018-03-08 14:29 IST
डाकू मानसिंह ने भी इस गीतकार के सामने झुकाया था अपना सिर

लखनऊ: 'एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम गरीबों की...' या 'जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं...' जैसे गीतों के रचयिता साहिर लुधयानवी का गुरुवार (8 मार्च) को जन्मदिन है। उनका जन्म लुधियाना में 8 मार्च 1921 को हुआ था।

एक बार साहिर कार से मुंबई से लुधियाना जा रहे थे। उपन्यासकार कृश्न चंदर भी उनके साथ थे। मध्यप्रदेश में शिवपुरी के पास डाकू मानसिंह ने उनकी कार रोककर उसमें सवार सभी लोगों को बंधक बना लिया। जब साहिर ने बताया, कि उन्होंने ही डाकुओं के जीवन पर बनी फ़िल्म 'मुझे जीने दो' के गाने लिखे थे तो उन्होंने उन्हें सम्मान से न सिर्फ जाने दिया, बल्कि मान सिंह ने अपनी इस हरकत के लिए उनसे माफी भी मांगी। बता दें, कि मानसिंह उस वक्त नामी डकैतों में गिने जाते थे और उनका काफी खौफ था। बाद में मानसिंह ने 1971 में जयप्रकाश नारायण के सामने आत्मसमर्पण किया था।

इकबाल, फैज, फि‍राक के दौर में बनाई पहचान

साहिर ने जब लिखना शुरू किया तब 'इकबाल, फैज, फि‍राक जैसे बेहतरीन शायर अपनी बुलंदी पर थे। ऐसे में उन्होंने अपना खास लहजा और रुख अपनाया। उसी लहजे ने उन्हें ना सिर्फ अलग जगह दिलायी, बल्कि वे शायरी की दुनिया में छा गए। साहिर का शाब्दिक अर्थ होता है 'जादू'। वो अपने नाम को सच करते थे। साहिर की कलम में जादू था। साहिर का असली नाम अब्दुल हई था, लेकिन शायरी के लिए नाम साहिर रख लिया था।

'तल्ख़ियां' थी पहली शायरी की किताब

साल 1943 में 'तल्ख़ियां' नाम से उनकी पहली शायरी की किताब प्रकाशित हुई। कहते हैं कि जानी-मानी पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम कॉलेज में साहिर के साथ ही पढ़ती थीं, जो उनकी गजलों और नज्मों की मुरीद हो गयीं और उनसे प्यार करने लगीं। लेकिन कुछ समय के बाद ही साहिर कॉलेज से निष्कासित कर दिए गए। इसका कारण यह माना जाता है कि अमृता प्रीतम के पिता को साहिर और अमृता के रिश्ते पर ऐतराज था क्योंकि साहिर मुस्लिम थे और अमृता सिख थीं। दोनों के इश्क की आज भी चर्चा होती है। साल 1951 में आई फिल्म 'नौजवान' के गीत 'ठंडी हवाएं लहरा के आए' से वह लोकप्रिय हुए।

‘प्यासा’ ने दिलायी शोहरत

गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ साहिर के सिने करियर की अहम फिल्म साबित हुई। मुंबई के मिनर्वा टॉकीज में जब यह फिल्म दिखाई जा रही थी, तब जैसे ही ‘जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं’ बजाया गया, सभी दर्शक अपनी सीट से उठकर खड़े हो गए और गाने की समाप्ति तक ताली बजाते रहे।

लता से एक रुपए ज्यादा लेते थे पारिश्रमिक

साहिर की लोकप्रियता उस जमाने में किसी स्टार से कम नहीं थी। वो अपने गीत के लिए लता मंगेशकर को मिलने वाले पारिश्रमिक से एक रुपया ज्यादा लेते थे। फिल्म 'ताजमहल' के बाद 'कभी-कभी' के लिए साहिर को दूसरा फिल्मफेयर अवाॅर्ड मिला। उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। लगभग तीन दशक तक हिंदी सिनेमा को अपने रुमानी गीतों से सराबोर करने वाले साहिर लुधियानवी 59 वर्ष की उम्र में 25 अक्टूबर 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

Tags:    

Similar News