अधेड़ उम्र में शादी की चाहत है- 'संडे वेडिंग'
जब इंसान युवा होता है, तब उसे किसी बात की फिक्र नही होती, वह मनचाहे ढंग से सारे काम करता रहता है। लेकिन कुछ समय बाद उसे अपनी ज़िंदगी में किसी न किसी की जरूरत होती है, जो उसका ख्याल रखे और उसकी बातों को समझे। ऐसी ही कहानी है दामोदर नाम के एक उद्योगपति की, जिसने युवावस्था में तो शादी नही की, लेकिन अब आधी उम्र बीतने के बाद उसे शादी करनी है।
शाश्वत मिश्रा
लखनऊ: जब इंसान युवा होता है, तब उसे किसी बात की फिक्र नही होती, वह मनचाहे ढंग से सारे काम करता रहता है। लेकिन कुछ समय बाद उसे अपनी ज़िंदगी में किसी न किसी की जरूरत होती है, जो उसका ख्याल रखे और उसकी बातों को समझे। ऐसी ही कहानी है दामोदर नाम के एक उद्योगपति की, जिसने युवावस्था में तो शादी नही की, लेकिन अब आधी उम्र बीतने के बाद उसे शादी करनी है।दामोदर की शादी कराने के इर्द गिर्द ही घूमती नज़र आती है, 'संडे वेडिंग' नाटक की कहानी। इस नाटक का मंचन गोमती नगर के संगीत नाटक अकादमी में प्रेम विनोद फाउंडेशन की तरफ से संत गाडगे प्रेक्षागृह में सम्पन्न हुआ। जहां इस मौके पर न्यायाधीश एस. सी. वर्मा, आईएएस जे. एस. मिश्रा, एडिशनल चीफ सेक्रेटरी राजेश तिवारी और प्रसिद्ध कलाकार अनिल रस्तोगी मौजूद रहे।
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इस कार्यक्रम की शुरुआत प्रेम विनोद फाउंडेशन के अध्यक्ष पवन कपूर के नेतृत्व में पुलवामा अटैक में शहीद जवानो को श्रद्धांजलि अर्पित कर व मंच पर द्वीप प्रज्ज्वलित कर की गई। जहां पवन कपूर ने अपने फाउंडेशन द्वारा अलग अलग क्षेत्रों में किये गए कामों को बताया और लोगों को हमेशा खुश रहने की बात कही।
नाटक की कहानी-
इस नाटक की शुरुआत होती है दामोदर की पांच लाख₹ की घोषणा से। दामोदर जो शहर का सबसे बड़ा उद्योगपति होता है और उसको आधी उम्र में शादी करने का ख्याल आता है, जिसके लिए वह गजानन, दीपू और बच्चू को पांच लाख में अपनी शादी करवाने की बात कहता है। जिससे वह पैसों की लालच में आ जाते हैं और लड़की ढूंढने में लग जाते हैं, लेकिन लगातार कोशिश करने के बाद भी उन्हें कोई लड़की नही मिलती। इधर चुन्नीलाल अपनी महिला मोर्चा चलाने वाली बहन लता को दामोदर की जायदाद के बारे में बताकर उसे शादी के लिए तैयार कर लेता है।
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साथ ही साथ हीरालाल भी अपनी साली सुपर्णा को शादी के लिए राज़ी कर लेता है। जब यह बात गजानन, दीपू और बच्चू को पता चलती है तो वह पैसे खोने के डर से अपने दोस्त रतन को लड़की बनाकर सबसे पहले दामोदर के घर पहुंच जाते हैं, जहां इनकी मुलाकात दामोदर के नौकर चकोरी से होती है, जिसको पैसा देकर ये लोग अपना काम निकलवाते हैं,
और दामोदर के आने के बाद, उसे रतन धमकी देता है कि अगले संडे मैं तुमसे शादी करूँगा, क्रमशः लता और सुपर्णा भी इसी तरह की धमकी देते हैं।
फिर जब संडे को तीनों लोग पहुँचते हैं तो एक दूसरे को देखकर स्तब्ध रह जाते हैं, और जब चकोरी आकर उन्हें ये बताती है कि दामोदर ने शादी कर ली है, तब ये सब उसके खिलाफ नारेबाजी करने लगते हैं, जिसके बाद दामोदर अपने घर से बाहर आता है, और अपनी पत्नी को सबको दिखाता है, जिससे सब अपना माथा पकड़कर बैठ जाते हैं।
लेखन एवं निर्देशन-
नाटक की शुरुआत बहुत अच्छी होती है, जो इसके मजबूत लेखन को दिखाता है, लेकिन नाटक का अंत और अच्छे तरीके से किया जा सकता था, इसका अंत कब हो जाता है, कुछ पता ही नही चलता है।
अब बात करे निर्देशन की तो सभी पात्रों ने अपने किरदार को बखूबी निभाया। जिसमें रतन और बच्चू को दर्शकों ने खूब पसंद किया। नाटक में प्रकाश व्यवस्था, संगीत, और मंच निर्माण का काम सराहनीय था।
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इस नाटक में अभिषेक सिंह ने बच्चू, आशुतोष विश्वकर्मा ने दीपू, अम्बरीश बॉबी ने दामोदर, हरीश बडोला ने गजानन, पूजा सिंह ने लता, नीमेश भंडारी ने चुन्नीलाल, अपर्णा त्रिपाठी ने सुपर्णा, गोपाल सिंहा ने हीरालाल, मनोज वर्मा ने चकोरी, अजय शर्मा ने रतन, रविकांत शुक्ला ने पंडित और नीशू सिंह ने दुल्हन का किरदार निभाया।
वहीं मंच संचालन में ललित सिंह पोखरिया, प्रकाश परिकल्पना में गोपाल सिंहा, प्रकाश संचालन में मनीष सैनी, संगीत में पुलकित वर्मा, रूप सज्जा में शहीर अहमद, सेट निर्माण में शिवरतन एंड पार्टी का हाथ रहा। और वेशभूषा और पूर्वाभ्यास का कार्य नीशु सिंह ने किया। वहीं पूरे नाटक की परिकल्पना और निर्देशन संगम बहुगुणा का था।