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गजब! जो कल तक था विराना आज वहां बसती है जन्नत, कहानी जड़धार गांव की
प्रकृति का केवल दोहन करना ही हमारा हक नहीें होना चाहिए। बल्कि इसका संरक्षण करना भी हम मनुष्यों का ही काम है। यह करके बताया है टिहरी जिले के चंबा प्रखंड़ स्थित जड़धार गांव के निवासियों ने। उनके सामूहिक प्रयासों से विरान हो रही पहाडियों पर हरियाली लौट आई है।
देहरादून: प्रकृति का केवल दोहन करना ही हमारा हक नहीें होना चाहिए। बल्कि इसका संरक्षण करना भी हम मनुष्यों का ही काम है। यह करके बताया है टिहरी जिले के चंबा प्रखंड़ स्थित जड़धार गांव के निवासियों ने। उनके सामूहिक प्रयासों से विरान हो रही पहाडियों पर हरियाली लौट आई है। इन प्रयासों से गांव के निवासियों की घास, लकड़ी की जरूरतें पूरी हो रही है, बल्कि प्राकृतिक स्रोत भी अब पानी से भरे रहते हैं।
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प्रकृतिक संकट देख, गांव के बड़े—बुजुर्गों ने दिखाई जागरूकता
चंबा प्रखंड़ का सबसे बड़ा गांव जड़धार है, जिसमें 400 परिवार हैं। जिनकी आबादी 2500 के आस—पास है। लगभग तीन दशक पहले गांव के आस—पास की पहाड़ियों के अनियंत्रित दोहन के कारण गांव के निवासियों के सामने एक प्रकृतिक संकट खड़ा हो गया। लकड़ियों की कमी और प्राकृतिक स्रोत सूखने लगे। गांव के बड़े—बुजुर्गों ने जागरूकता दिखाई और गांव के लोगों को इकट्ठा किया और चर्चा की कि इस समस्या का हल ढूंढ़ा जाए। इसके बाद ये योजना बनाई गई कि पहाड़ियों की खाली भूमी पर बांज के पौधे लगाया जाएं और बचे हुए पौधों को संरक्षित किया जाए।
जंगल की सुरक्षा के लिए गांव वालों ने चौकीदार नियुक्त किया
जंगल की सुरक्षा के लिए तीन चौकीदार नियुक्त किये जिनको शुरूआत मेें 500 रूपये हर माह के हिसाब से दिए। कुछ दिनों में उनके मानदेय की राशि तीन से चार हजार तक बढ़ायी गयी जिसमें गांव वालों ने भी सहयोग किया।
जंगल संरक्षण के लिए वन सुरक्षा समिति और वन पंचायत का गठन भी किया। इसके बाद तो मेहनत ऐसी रंग लायी कि विरान हो रहे प्रकृति के सबसे बड़े प्रतीक पहाड़ियां और जंगल बांस, बुरांस, काफल आदि के मिश्रित पेड़—पौधों से लहलहा उठे।
अब स्थिति यह है कि, गांव को लगभग दस किमी. के क्षेत्र का सुरक्षा घेरा प्रदान करने वाली पहाड़ियों पर फैली हरियाली हर किसी का मन मोह लेती है। और अब गांव के निवासियों की आम जरूरतें भी उसी जंगल से पूरी हो रही है।
बीज बचाओ आंदोलन के संयोजक एवं पर्यावरणविद विजय जड़धारी ने फैलायी जागरूकता
जड़धारी कहते हैं कि अब गांव वालों को जंगल का महत्व समकझाने की जरूरत नहीं है क्यों कि वे अब खुद आगंतुकों को जंगल और पर्यावरण का महत्व समझाते हैं
गांव का हर व्यक्ति जंगल का चौकिदार
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वन पंचायत जड़धार के सरपंच राजेंद्र सिंह नेगी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों से चौकिदार की व्यवस्था खत्म कर दी गयी है पेड़ों के बड़े होने की वजह से अब उन्हे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता । ग्रामीण अपने पालतू जानवरों के लिए चारा—पत्ती के साथ सूखी लकड़ियों का ही उपयोग करते है। यहां तक कि अगर जंगल में आग लग जाती है तो उसे बुझाने गांव के सभी लोग दौड़ पड़ते है।