कन्हैयालाल पांडे का साक्षात्कार : 17 हजार फिल्मी गीतों में 174 राग

Update:2018-01-19 14:55 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

यह बात तो आपको पता होगी कि कोई भी गीत बिना राग के नहीं बन सकता। कोई न कोई राग तो होगा ही। लेकिन पूछा जाए कि कितने फिल्मी गीतों में कौन कौन से राग इस्तेमाल हुए तो आप अटक जाएंगे। कहेंगे इस बारे में तो सोचा ही नहीं। यही बात जिस बारे में किसी ने नहीं सोचा एक शख्सियत ऐसी है जिसने न सिर्फ इस बारे में सोचा बल्कि इसे अमल में लाकर दिखाया। सालों की मेहनत से सामने आए 17 हजार फिल्मी गीतों में पिरोए गए 174 राग।

कन्हैयालाल पांडेय द्वारा तैयार ग्रंथ ’हिन्दी सिने राग इंसाइक्लोपीडिया’ अंग्रेजी/हिन्दी दोनो भाषाओं में है। इसमें 1931 से 2017 के मध्य रिलीज हुई 5700 चयनित फिल्मों के 17000 चयनित गीतों का विश्लेषण किया गया है। इन सभी गीतों के मुखड़ों को अंग्रेजी अकारादि क्रम में दिया गया है जिससे ढूंढने में आसानी भी होती है। कुल पृष्ठ 1800 से अधिक हैं तथा पुस्तक के प्रयोग की आसानी के लिए लेखक ने इसे 600 पृष्ठों के तीन भागों में बाँट दिया है, जिनमें ’ए’ से ’जी’ से प्रारम्भ होने वाले गीत भाग-1 में ’एच’ से ’एम’ भाग-2 में तथा ’एन’ से ’जेड’ से प्रारम्भ होने वाले गीत, भाग-3 में उपलब्ध हैं।

रेलवे में आईआरटीएस के अधिकारी के रूप में दायित्वों का निर्वहन करते हुए कन्हैयालाल ने संगीत के प्रति अपने लगाव को न सिर्फ संजोए रखा बल्कि इसे एक अनूठे क्रिएटिव रूप में ढाल दिया। कन्हैयालाल पांडे हरदोई जिले के रनियामऊ गांव के निवासी हैं। श्री पांडेय के पास दो लाख रिकार्डिंग का संग्रह है। इसके अलावा दो हजार से अधिक हिन्दी व साढ़े तीन हजार इंगलिश फिल्मों का संग्रह भी है।

कन्हैयालाल पांडे को हाल ही में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए डीडी भारती अवार्ड दिया गया है। इससे पहले आपको बांसुरी काव्य संग्रह के लिए मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, कहानी संग्रह मनके के लिए प्रेमचंद सम्मान और महाकौशल साहित्य परिषद से भारत भारती सम्मान दिया जा चुका है। साहित्य के प्रति अपने रुझान का श्रेय वह अपने पिता को देते हैं। शुरुआत से ही कुछ अलग करने की इच्छा के चलते ही सीपीएमटी में चयन होने के बावजूद पांडे ने प्रशासनिक सेवा में जाने का मन बनाया और उसमें कामयाब रहे। वह संगीत के क्षेत्र में अपनी रुचि जगाने का श्रेय अपने गुरु सुखदेव बहादुर सिंह को देते हैं। हालांकि आगे की पढ़ाई के लिए संगीत की शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारम उन्होंने विज्ञान को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। लेकिन संगीत के प्रति जो आकर्षण था वह कम न होने पाया। वह कहते हैं हमने हर दौर का संगीत देखा है और बदलते परिवेश का संगीत मुझे अच्छा लगता है या ये कहें मुझे हर दौर का संगीत पसंद है।

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