नई दिल्ली: सुरों के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी का आज यानी 24 दिसंबर को जन्मदिन है। आज रफी साहब 94 साल के पूरे हो चुके हैं। अब भले वो हमारे बीच न हों लेकिन उनकी आवाज को आज भी लोग सुनना काफी पसंद करते हैं। रफी साहब हिंदी सिनेमा के श्रेष्ठतम प्लेबैक सिंगर्स में से एक थे। अपनी आवाज की मधुरता के लिए इन्होंने अपने समकालीन गायकों के बीच अलग पहचान बनाई। यही कारण था कि रफी साहब को शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था।
रफी साहब को इसलिए किया गया सम्मानित
रफी साहब ने हिंदी सिनेमा को बेहतरीन गाने दिए हैं। उन्हें सर्वश्रेष्ठ गायक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। यही नहीं, भारत सरकार ने उन्हें साल 1967 में 'पद्मश्री' अवॉर्ड से भी सम्मानित किया था। इसके अलावा उन्हें 'क्या हुआ तेरा वाद' गाने के लिए 'नेशनल अवॉर्ड' से सम्मानित किया जा चुका है।
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रफी साहब ने साल 1940 से 1980 तक कुल 26,000 गाने गाए। इसमें हिंदी गानों के साथ ग़ज़ल, भजन, देशभक्ति गीत, क़व्वाली और अन्य भाषाओं में गाए गीत शामिल हैं। रफी साहब के गाने गुरु दत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, भारत भूषण, जॉनी वॉकर, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र, ऋषि कपूर और किशोर कुमार के ऊपर फिल्माए गए हैं।
जनता के बीच इस नाम से थे फेमस
रफी साहब जनता के बीच 'फीको' के नाम से भी फेमस हैं। दरअसल, रफी साहब को संगीत की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी। इस वजह से इनका नाम 'फीको' भी पड़ गया। जब रफी साहब छोटे थे तब वो एक फकीर का पीछा करते थे। वह फकीर हमेशा गाना गाते हुए जाता था। रफी साहब बाद में उसकी नकल किया करते थे क्योंकि उन्हें उस फकीर की आवाज काफी पसंद थी। यहां से रफी साहब ने संगीत की शुरुआत की।
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इसके बाद उन्होंने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी ग्रहण की। बताते चलें, रही साहब का जन्म 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर, के पास कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। कुछ समय बाद रफी साहब का पूरा परिवार लाहौर चला गया।
13 साल की उम्र में गाया पहला गाना
एक बार आकाशवाणी (उस समय ऑल इंडिया रेडियो) लाहौर में उस समय के प्रख्यात गायक-अभिनेता कुन्दन लाल सहगल अपना प्रदर्शन करने आए थे। उन्हें सुनने के लिए रफी साहब अपने बड़े भाई के साथ गए थे लेकिन बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल ने गाने से मना कर दिया। ऐसे में रफी के बड़े भाई ने आयोजकों से निवेदन किया कि भीड़ की व्यग्रता को शांत करने के लिए मोहम्मद रफ़ी को गाने का मौका दिया जाए।
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ऐसे में उनको अनुमति मिल गई और 13 साल की उम्र में रफी साहब ने पहला सार्वजनिक प्रदर्शन किया। इसके बाद रफी साहब ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बाद में एक पंजाबी फिल्म ‘गुल बलोच’ के लिए था जिसे उन्होंने श्याम सुंदर के निर्देशन में साल 1944 में गाया।
1946 में रफी साहब आ गए मुंबई
इसके अलावा साल 1946 में रफी साहब मायानगरी मुंबई आ गए। यहां उन्हें संगीतकार नौशाद ने फिल्म में गाने का मौका दिया। इसके बाद से रफी साहब ने हिंदी सिनेमा के लिए कई गाने गाए। इस दौरान उन्होंने सबसे ज्यादा डुएट गाने आशा भोसले के साथ गाए। इसके बाद साल 1980 में मोहम्मद रफी का 31 जुलाई 1980 को दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया।
वैसे इस बारे में बहुत कम लोगों को पता है कि रफ़ी साहब ने दो शादियां की थीं। पहली शादी उन्होंने 13 साल की उम्र में की थी जबकि दूसरी शादी 20 साल की उम्र में की थी। उनके चाचा की बेटी बशीरन बेगम से उनकी पहली शादी हुई थी। यह शादी चल नहीं पायी और फिर दोनों का तलाक हो गया।
20 साल की उम्र में साल 1944 में बेटी बिलकिस के साथ उनकी दूसरी शादी हुई थी। पहली शादी से उन्हें एक बेटा हुआ जबकि दूसरी शादी से उन्हें तीन बेटे और तीन बेटियां थीं। उनके तीनों बेटों की मौत हो चुकी है।