मंचन- शादी में शर्तों की कहानी है- 'दामाद एक खोज'

दहेज पर चाहे कितने भी प्रतिबंध लगाये जाय, कितना भी कानून बनाया जाय, पर ये समस्या हल होती नजर नहीं आती है, क्योंकि कन्या और उसके परिवार के लोग अपनी शान दिखाने के चक्कर में इस प्रथा को समाप्त ही नहीं होने दे रहे हैं, ऐसे ही एक मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया मालिकराम की बेटी के लिए योग्य वर ढूंढने की हास्यकहानी है- 'दामाद एक खोज'।

Update: 2019-03-05 05:47 GMT

शाश्वत मिश्रा

लखनऊ: दहेज पर चाहे कितने भी प्रतिबंध लगाये जाय, कितना भी कानून बनाया जाय, पर ये समस्या हल होती नजर नहीं आती है, क्योंकि कन्या और उसके परिवार के लोग अपनी शान दिखाने के चक्कर में इस प्रथा को समाप्त ही नहीं होने दे रहे हैं, ऐसे ही एक मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया मालिकराम की बेटी के लिए योग्य वर ढूंढने की हास्यकहानी है- 'दामाद एक खोज'।इस नाटक का मंचन गोमती नगर के संगीत नाटक अकादमी में प्रेम विनोद फाउंडेशन की तरफ से संत गाडगे प्रेक्षागृह में सम्पन्न हुआ।इस कार्यक्रम की शुरुआत प्रेम विनोद फाउंडेशन के अध्यक्ष पवन कपूर के नेतृत्व में पुलवामा अटैक में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित कर व मंच पर द्वीप प्रज्ज्वलित कर की गई।

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नाटक की कहानी

इस नाटक की शुरुआत होती है मालिकराम से, जो अपनी बेटी के लिए सुयोग्य वर ढूंढने निकलता है, लेकिन हर रोज उसे निराशा ही हाथ लगती है। फिर वो अपने बेटे प्रकार को वर की तलाश में भेजता है, पर उसे भी असफलता ही हाथ लगती है। बेटे के असफलता के बाद मालिकराम अपने मुंह लगे नौकर शर्मीले के कहने पर बेटी के लिए कुछ शर्तों के साथ दामाद चाहिए का विज्ञापन दे देते हैं।

और अब शुरू होती है, नाटक की असली कहानी।

जिसमें विज्ञापन को देखकर एक से एक बेवकूफ लोग रिश्ता मांगने चले आते हैं, कोई दहेज में बेटी की मां को मांगता, तो कोई दो दो शादी करने के बाद भी शादी करने आ जाता। इसी बीच मालिकराम का बेटा अपनी शादी के चक्कर में अपनी प्रेयसी को नौकरानी बनाकर घर ले आता है और उधर मालिकराम की बेटी अपने प्रेमी प्रभात को भी घर पर बुला लेती है, जिसके बाद सबको इस बात का पता चल जाता है फिर हस्यमयी पलों का दौर शुरू होता है जिसमें शर्मीले, प्रकाश, मालिकराम और प्रभात की एक-दूसरे से बहस और बातचीत लोगों को हसने पर मजबूर करती है।

अन्ततः मालिकराम जिसको पहले ही सारी सच्चाई मालूम होती है, वह अपने बेटे(प्रकाश) और बेटी(संध्या) की शादी उनकी मर्जी से कराता है।

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लेखन एवं निर्देशन

नाटक की पटकथा बहुत तस्सली से लिखी गई है, हर एक किरदार को बखूबी से लिखा गया है, जिसके आधार पर उसके पात्र को चुना गया। पटकथा में डायलॉग बहुत अच्छे से लिखे गए हैं।

अब बात करे निर्देशन की तो सभी पात्रों ने अपने किरदार को बखूबी निभाया। जिसमें मालिकराम, अध्यापकऔर शर्मीले को दर्शको ने खूब पसंद किया। नाटक में प्रकाश व्यवस्था, संगीत, और मंच निर्माण का काम सराहनीय था।

इस नाटक के जरिये लोगों तक यह संदेश पहुचाया गया कि आज की युवापीढ़ी को अपने घरवालों से सारी बातें बतानी चाहिए। और इस नाटक के खत्म होने के बाद नाटक के निर्देशक संगम बहुगुणा ने कहा,' दर्शक रंगमंच का हो या फ़िल्म का, वो भगवान होता है।'

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इस नाटक में शर्मीले ने अम्बरीष बाबी, पूजा सिंह ने ज्योति, विकास श्रीवास्तव ने मालिकराम, अर्चना शुक्ला ने गुणकारी, सोम गांगुली ने प्रभात, तान्या सूरी ने संध्या, अमरेश आर्यन ने छटपटाहट, अभिषेक सिंह ने डॉ. चंचल, मनोज वर्मा ने जागरूक और ऋषभ तिवारी ने अध्यापक का किरदार निभाया।

वहीं प्रकाश परिकल्पना एवं संचालन में गोपाल सिंहा, प्रकाश सहायक में मनीष सैनी, संगीत में पुलकित चक्रवर्ती, रूप सज्जा में शहीर अहमद, सेट निर्माण में शिवरतन एंड पार्टी का हाथ रहा। और वेशभूषा और पूर्वाभ्यास का कार्य नीशु सिंह ने किया।

वहीं पूरे नाटक की परिकल्पना और निर्देशन संगम बहुगुणा का था।

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