Suman Kalyanpur: अपनी खनकती आवाज से अनगिनत सुपरहिट गीत देने वाली इस गायिका के दिल में आखिर क्या थी कसक

Suman Kalyanpur: सुमन कल्याणपुर को ऐसी पार्श्वगायिका के रूप में पहचान मिली जहां लता मंगेशकर के एकाधिकार के दौर में न सिर्फ उन्होंने अपनी सम्मानजनक पहचान बनाई बल्कि उस दौर के लगभग सभी दिग्गज संगीतकारों के निर्देशन में गीत भी गाए।

Written By :  Jyotsna Singh
Update: 2023-01-28 09:36 GMT

Singer Suman Kalyanpur Jayanti Special (Social Media)

Suman Kalyanpur Jayanti Special: तुमने पुकारा और हम चले आए', 'अजहूं न आए बालमा', 'ठहरिए होश में आ लूं तो चले जाईएगा', 'पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है', 'ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे', 'रहें ना रहें हम महका करेंगे', 'इतना है तुमसे प्यार मुझे मेरे राजदार जैसे अनगिनत सुपरहिट गानों में अपने सुर से प्राण फूकने वाली महान गायिका सुमन कल्याणपुर का आज जन्मदिवस है।

लता मंगेशकर और सुमन की आवाज में समानता

34 साल तक लगातार हिन्दी सिनेमा को अपनी आवाज़ में एक से बढ़ कर एक सुपर हिट गीतों से संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया । लेकिन कसक यह रही कि उनके गीतों को पसंद करने वालों के लिए हमेशा उनकी आवाज पहेली बनी रही कि-"किसकी आवाज है? लता तो नहीं।" बावजूद इसके सुमन कल्याणपुर को ऐसी पार्श्वगायिका के रूप में पहचान मिली जहां लता मंगेशकर के एकाधिकार के दौर में न सिर्फ उन्होंने अपनी एक सम्मानजनक पहचान बनाई बल्कि उस दौर के लगभग सभी दिग्गज संगीतकारों के निर्देशन में गीत भी गाए। इसके बावजूद उन्हें वो जगह कभी नहीं मिल पायी जिसकी वो हकदार थीं। 

गीतकार योगेश और संगीतकार रोबिन लंबा साथ

शास्त्रीय गायन की ऐसी समझ, कर्णप्रिय आवाज़ और विस्तृत रेंज जैसी पार्श्वगायन के लिए जरूरी सभी खासियतों के होते हुए भी जब हिन्दी फिल्मोद्योग ने सुमन कल्याणपुर को कभी लता मंगेशकर की छाया से बाहर नहीं आने दिया वहीं गीतकार योगेश और संगीतकार रोबिन बनर्जी ने उनकी इस तकलीफ में उनका पूरा साथ दिया। वो अपनी लगभग हर फिल्म में सुमन कल्याणपुर से ही गाना रिकॉर्ड करवाते थे। सुमन और संगीतकार रोबिन बनर्जी का साथ 1958 में प्रदर्शित रोबिन की पहली फिल्म वजीरे-आजम से लेकर 1971 में प्रदर्शित रोबिन की अंतिम हिंदी फिल्म राज़ की बात तक रहा।

सुमन की आवाज़ और रोबिन की फिल्म 

सुमन कल्याणपुर की आवाज़ के बिना रोबिन बनर्जी की फिल्म पूरी नहीं मानी जाती थी। यही वजह थी की गीतकार योगेश की एक खास पहचान सुमन कल्याणपुर के गाये गीतों से ही की जाने लगी। योगेश जी का पहला गाना जो रोबिन बनर्जी ने रिकॉर्ड किया उसे सुमन ने पार्श्वगायक मन्ना डे के साथ गाया था। बोल थे-" तुम जो आओ तो प्यार आ जाये, जिन्दगी में बहार आ जाये।" इस खूबसूरत गीत ने उन दिनों सबका दिल जीत लिया था हर वह व्यक्ति जो संगीत या फिल्म का शौकीन हुआ करता था उन सबके होठों पर इसी गीत के बोल तैर रहे होते थे। 

सम्मान पाने के लिए कभी नहीं की पैरवी

पुराने समय से ही ये चलन बदस्तूर चला आ रहा है कि फिल्मों में पुरस्कार वगैरह पाने के लिए पैरवी की जरूरत पड़ती थी। जो कभी सुमन कल्याणपुर ने नहीं की और न ही योगेश और रोबिन की जोड़ी ने। गीत संगीत की दुनियां में राजनीति की उठा पटक देखकर सुमन कल्याणपुर ने 1954 से शेख मुख्तार की फिल्म मंगू से अपना कैरियर शुरू करके 1988 में मात्र 34 साल के कैरियर में जब उनके गीतों को सुनने के लिए लोग दीवाने हुआ करते थे, उन्होंने इस जगमगाती फिल्मी दुनिया से अपना नाता तोड लिया। 

तीन हजार से ज्यादा फिल्मी-गैर फिल्मी गीत

करीब तीन दशकों के अपने करियर में उन्होंने हिन्दी, मराठी, गुजराती, पंजाबी और भोजपुरी सहित एक दर्जन से भी ज्यादा भारतीय भाषाओं- बोलियों के तीन हजार से ज्यादा फिल्मी-गैर फिल्मी गीत-ग़ज़ल गाए। 1970 के दशक में जैसे-जैसे नए संगीतकार और गायक- गायिकाएं आते गए, सुमन कल्याणपुर की व्यस्तताएं कम होती चली गयीं। 

रंग जमा के जाएंगे उनका आखिरी गीत

साल 1981 में बनी फिल्म 'नसीब' का 'रंग जमा के जाएंगे' उनका आखिरी रिलीज गीत साबित हुआ। सुमन के मुताबिक, फिल्म 'नसीब' के बाद मुझे गायन के मौके अगर मिले भी तो वो गीत या तो रिलीज ही नहीं हो पाए और अगर हुए भी तो उनमें से मेरी आवाज नदारद थी। गोविंदा की फिल्म 'लव 86' में मैंने एक सोलो और मोहम्मद अजीज के साथ एक युगलगीत गाया था। लेकिन जब वो फिल्म और उसके रेकॉर्ड रिलीज हुए तो मेरी जगह कविता कृष्णमूर्ति ले चुकी थीं। कुछ ऐसा ही केतन देसाई की फिल्म 'अल्लारक्खा' में भी हुआ था जिसके संगीतकार अनु मलिक थे।

अनगिनत पुरस्कारों से नवाजा गया

अपने करियर में सुमन कल्याणपुर ने न सिर्फ पार्श्वगायन के क्षेत्र में अपना एक सम्मानजनक स्थान बनाया बल्कि रसरंग (नासिक) का 'फाल्के पुरस्कार' (1961), सुर सिंगार संसद का 'मियां तानसेन पुरस्कार' (1965 और 1970), 'महाराष्ट्र राय फिल्म पुरस्कार' (1965 और 1966), 'गुजरात राय फिल्म पुरस्कार' (1970 से 1973 तक लगातार) जैसे करीब एक दर्जन पुरस्कार भी हासिल किए।  

पद्म विभूषण सम्मान ने ताजा की याद 

सुमन अपने के पति का निधन के बाद वो खार (पश्चिम) में ही रोड नंबर 12 पर अपनी शादीशुदा बेटी चारू अग्नि के साथ रहती हैं। इस दौरान वो साल 2010 में एक-दो सम्मान समारोहों में जरूर नजर आयीं जब महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें 'लता मंगेशकर पुरस्कार-2009' से सम्मानित किया। इस लंबे समय में लोगों की बेरुखी के चलते बाहरी लोगों से उनका सम्पर्क अब लगभग खत्म हो चुका था यहां तक कि अब उन्हें किसी से फोन पर बात भी करना नागवार गुजरता था।

ऐसे में जीवन के इस पड़ाव पर मां सरस्वती की कृपा और उनकी खरे सोने सी आवाज ने दुबारा जादू चला दिया, पद्म विभूषण सम्मान मिलने के साथ ही सबके जहन में सुमन कल्याणपुर की याद और उनके नगमे फिर ताजा हो आय। खुद को इस दुनियां से अलग कर चुकी महान कलाकार को 26 जनवरी 2023 के दिन पद्म विभूषण सम्मान से विभूषित कर संगीत प्रेमियों के बीच उनकी आवाज को दोबारा ज़िंदा कर दिया।

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