नई दिल्ली : प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक तो है ही, हमारी सेहत के लिए भी घातक है। आप अपने किचन या फिर ऑफिस के आस-पास नजर दौड़ाएंगे तो बहुत ही कम संभावना है कि आपको प्लास्टिक वाली पानी की बोतलें, कॉफी के कप, स्ट्रॉ, थैलियां, कंटेनर या फिर पानी के गिलास जैसे सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पाद न दिखाई दें।
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बीपीए (बिसफेनोल ए) एक ऐसा रसायन है, जिसका प्रयोग प्लास्टिक के उत्पादन में 1960 से लगातार किया जा रहा है और यह पैकेजिंग, किचन के सामान और कैन या जार के ढक्कन की अंदरूनी कोटिंग सहित हमारे खाने के सीधा संपर्क में होता है। अध्ययनों में दर्शाया गया है कि बीपीए एस्ट्रोजन रिसेप्टर्स के साथ प्रतिक्रिया करता है और महिलाओं व पुरुषों में बांझपन, प्रारंभिक यौवन, स्तन व प्रोस्टेट कैंसर और पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम सहित कई इंटरनल विकारों में एक अहम भूमिका निभाता है।
एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि माइक्रोवेव में खाने को स्टोर या फिर गर्म रखने वाले प्लास्टिक कंटनरों का प्रयोग बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकता है। प्लास्टिक बनाने में प्रयोग किए जाने वाले रसायन बच्चों के शारीरिक विकास, उनके मस्तिष्क में ज्ञान संबंधी चीजों की कमी और बचपन में मोटापे की संभवानओं को बढ़ा देते हैं।
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शरीर में ऊर्जा को नियंत्रित करने वाले थायराइड हार्मोन को भी सिंगल यूज प्लास्टिक में प्रयोग होने वाला बीपीए प्रभावित करता है। बीपीए को ऑटोइम्यून थायराइड विकारों का एक कारण पाया गया है।
एक अध्ययन में पाया गया है कि बीपीए महिलाओं के प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करता है और उनके क्रोमोसोम को क्षति पहुंचाता है, शिशु के जन्म में परेशानी पैदा करता है और गर्भपात का कारण बन सकता है।
कुछ शोधों में पाया गया है कि बीपीए हमारे दिल और धमनियों को नुकसान पहुंचा सकता है, जिसके कारण हमारे दिल की धड़कन में तेजी या कमी और धमनियों में प्लाक जमा हो सकता है, जिस कारण दिल का दौरा, हार्ट फेलियर और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।