Kolkata Dussehra 2023: अद्‌भुत होता है कोलकाता में दुर्गा पूजा का उत्सव, यूँ ही नहीं कहा जाता है इसे 'कैपिटल ऑफ़ दशहरा'

Kolkata Dussehra 2023 Celebration: पश्चिम बंगाल में यह भी मान्यता है कि दुर्गा पूजा के दौरान माँ दुर्गा अपने मायके आती हैं और दशमी को लौट जाती हैं। यही कारन है कि इस क्षेत्र के लोग मां का स्वागत बड़े धूमधाम से करते हैं। पूरा शहर मानों छह दिनों तक सोता ही नहीं है।

Written By :  Preeti Mishra
Update:2023-10-15 01:37 IST

Kolkata Dussehra (Image credit: social media)

Kolkata Dussehra 2023 Celebration: कोलकाता में दुर्गा पूजा को सभी उत्सवों की जननी माना जाता है और इन दिनों के दौरान शहर अपनी पूरी भव्यता के साथ जगमगा उठता है। उत्तर भारत में दशहरे का मुख्य आकर्षण रामलीला होता है, वहीँ दक्षिण भारत में महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का जश्न मनाया जाता है। लेकिन पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल की इस खूबसूरत त्योहार से जुड़ी अपनी कहानी है।

कोलकाता में इसे दशहरा नहीं बल्कि दुर्गा पूजा कहते हैं। दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। कोलकाता में दुर्गा पूजा का उत्सव महा षष्ठी (छठे दिन) से शुरू होकर बिजोया दशमी (दसवें दिन) तक पांच दिनों तक चलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी दुर्गा षष्ठी को पृथ्वी पर अवतरित होती हैं और दशमी को अपने निवास स्थान पर लौट आती हैं। महा-षष्ठी देवी दुर्गा का स्वागत करने जैसा है और दशमी का दिन झीलों, नदियों और समुद्रों में मूर्तियों को विसर्जित करने के साथ समाप्त होता है।


पश्चिम बंगाल में यह भी मान्यता है कि दुर्गा पूजा के दौरान माँ दुर्गा अपने मायके आती हैं और दशमी को लौट जाती हैं। यही कारन है कि इस क्षेत्र के लोग मां का स्वागत बड़े धूमधाम से करते हैं। पूरा शहर मानों छह दिनों तक सोता ही नहीं है। हर तरफ आपको संगीत, नृत्य, रंग, संस्कृति और भोजन के विविध रूप दिखायी देंगे। कोलकाता दुर्गा पूजा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि एक सांस्कृतिक घटना है जो लोगों को कला, रचनात्मकता और एकता की भावना का जश्न मनाने के लिए एक साथ लाती है।


बनाए जाते हैं भव्य पांडाल

दुर्गा पूजा महोत्सव के दौरान पुरे कोलकाता में भाव पंडाल बनाये जाते हैं। यहाँ के बड़े-बड़े पंडाल किसी न किसी थीम पर ही बनाये जाते हैं। इस त्यौहार की तैयारी महीनों भर पहले से ही शुरू हो जाती है। पंडालों में सामुदायिक पूजा भी होती है। बंगाल की मिट्टी की मूर्तियाँ अपने निर्माण के पारंपरिक तरीके के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। जानकारी के अनुसार कोलकाता में 3000 से अधिक जगहों पर बड़े पंडाल बनाये जाते हैं। यहाँ के कुछ प्रसिद्ध पंडाल कुमुरतुली पार्क, सुरुचि संघ, जोधपुर पार्क, कॉलेज स्क्वायर और बागबाजार में हैं।कल्चरल परफॉरमेंस और स्ट्रीट फ़ूड

कोलकाता में दुर्गा पूजा समारोह के दौरान पंडालों में पारंपरिक नृत्य, संगीत समारोह और नाटक सहित सांस्कृतिक प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं। प्रसिद्ध कलाकार और कलाकार अक्सर इन आयोजनों में भाग लेते हैं। बंगाली व्यंजन त्योहार का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है और कोई भी उत्सव स्वादिष्ट व्यंजनों के बिना पूरा नहीं होता है। पंडालों के पास विभिन्न प्रकार के पारंपरिक और आधुनिक व्यंजनों की पेशकश करने वाले खाद्य स्टॉल लगाए जाते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान आपको पंडालों और उसके आस पास हर तरह के व्यंजन खाने को मिल जायेंगे। क्या वेज और क्या नॉन वेज, हर तरह का भोजन आपको यहाँ मिलेगा। लोग स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेते हैं, और हर्षोल्लास के साथ उत्सव का माहौल होता है।

पारंपरिक अनुष्ठान, सिन्दूर खेला और मूर्ति विसर्जन

इस त्यौहार में देवी दुर्गा की पूजा सहित पारंपरिक अनुष्ठान शामिल होते हैं, जो आम तौर पर कई दिनों तक चलते हैं। भक्त प्रार्थना करते हैं, आरती करते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। उत्सव के आखिरी दिन माँ की विदाई होती है और इस दौरान सुहागिन औरतें सिन्दूर का खेल खेलती हैं। इस दिन महिलाएं सिन्दूर में नहा जाती हैं। त्योहार का समापन नदियों या जल निकायों में दुर्गा मूर्तियों के विसर्जन के साथ होता है। मूर्ति विसर्जन के दौरान जुलूस, जिसे "बिजॉय दशमी" के नाम से जाना जाता है, एक भव्य दृश्य है।कोलकाता में दुर्गा पूजा एक सामुदायिक उत्सव है, जिसमें स्थानीय क्लब और संघ उत्सव के आयोजन में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। यह समुदाय और एकजुटता की भावना को बढ़ावा देता है।

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