धनतेरस से 4 दिन होंगे मां अन्नपूर्णा के दर्शन, कुबेर का खजाना पाने के लिए यहां उमड़ी भक्तों की भीड़
बाबा से पहले ही देवी अन्नपूर्णा विराजमान थीं। साल 1775 में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब देवी अन्नपूर्णा का मंदिर था। मां की स्वर्णमयी प्रतिमा की प्राचीनता का उल्लेख भीष्म पुराण में भी है। यहां के पूजारी के अनुसार, 1601 में मंदिर के महंत केशवपुरी के समय में भी प्रतिमा का पूजन हो रहा था।
जयपुर: वाराणसी का अन्नपूर्णा मंदिर हर किसी की मुराद को पूरा करने के लिए जाना जाता है। दिवाली और धनतेरस से इस मंदिर में भक्तों की भीड़ लगने लगती है। साल में सिर्फ चार दिनों के लिए खुलने वाले काशी के स्वर्णमयी अन्नपूर्णेश्वरी मंदिर में भक्तों की भीड़ अपार रहती है। मां के दर्शनों के साथ-साथ प्रसादस्वरूप सौभाग्यशाली अठन्नी पाने के लिए भक्त परेशान रहते है । इस साल मंदिर ने 4.50 लाख अठन्नियां मंगाई हैं।
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परंपरा काशी विश्वनाथ के पास स्थित मां अन्नपूर्णा का दर्शन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी यानी धनतेरस पर होता है इस दिन भक्तों के लिए मंदिर के पट खोले जाते है। परंपरा के अनुसार, मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा वाला मंदिर साल में धनतेरस को ही चार दिन के लिए खुलता है। दीपावली पर्व के दूसरे दिन अन्नकूट महोत्सव के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इस मंदिर में स्थापित पांच सौ साल पुरानी स्वर्ण मूर्तियों में मां अन्नपूर्णा के साथ उनके अगल-बगल मां लक्ष्मी व मां भूमि विराजमान हैं। मां अन्नपूर्णा के सामने खप्पर लिए खड़े भगवान शिव भिक्षा मांग रहे हैं। दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को मां के खजाने के रूप में एक सिक्का और धान का लावा दिया जाता। परंपरा के तहत खजाना वितरण के लिए मंदिर प्रशासन ने चार बोरे सिक्कों का इंतजाम किया है।
कथानुसार काशी के पालन-पोषण को देवाधिदेव मां की कृपा पर ही आश्रित हैं। अन्नदात्री मां की ममतामयी छवियुक्त ठोस स्वर्ण प्रतिमा कमलासन पर विराजमान और रजत शिल्प में ढले भगवान शिव की झोली में अन्नदान की मुद्रा में है। दायीं ओर मां लक्ष्मी और बायीं तरफ भूदेवी का स्वर्ण विग्रह है। इस दरबार के दर्शन वर्ष में सिर्फ चार दिन धनतेरस से अन्नकूट तक ही होते हैं। इसमें पहले दिन धान का लावा, बताशा के साथ मां के खजाने का सिक्का प्रसादस्वरूप वितरित किए जाने की पुरानी परंपरा है। इसमें काशी ही नहीं, देश-विदेश से आस्थावानों का रेला उमड़ता है। अन्य दिनों में मंदिर के गर्भगृह में स्थापित प्रतीकात्मक प्रतिमा की दैनिक पूजा होती है।
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कहते हैं किमां अन्नपूर्णा धन की अधिष्ठात्री हैं। स्कंदपुराण के काशीखण्ड में भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। ब्रह्मवैवर्त्तपुराण के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा की जाती है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन देवी के निमित्त व्रत रह कर उनकी उपासना का विधान है। प्रबंधक काशी मिश्रा ने बाबा से पहले ही देवी अन्नपूर्णा विराजमान थीं। साल 1775 में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब देवी अन्नपूर्णा का मंदिर था। मां की स्वर्णमयी प्रतिमा की प्राचीनता का उल्लेख भीष्म पुराण में भी है। यहां के पूजारी के अनुसार, 1601 में मंदिर के महंत केशवपुरी के समय में भी प्रतिमा का पूजन हो रहा था। बताया कि सुरक्षा के लिए खास इंतजाम किए गए हैं। भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर प्रबंधन की ओर से सहायक भी तैनात किए गए हैं।