सशस्त्र सेना दिवस: जांबाज सैनिको के सम्मान के लिए विशिष्ट दिन

देश के जांबाज सैनिको के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। आज , यानी सात दिसम्बर को हर साल झंडा दिवस के रूप में मनाये जाने की परंपरा है। इस दिन छोटे छो

Update:2017-12-07 13:21 IST
सशस्त्र सेना दिवस: जांबाज सैनिको के सम्मान के लिए विशिष्ट दिन

लखनऊ:देश के जांबाज सैनिको के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। आज,यानी सात दिसम्बर को हर साल झंडा दिवस के रूप में मनाये जाने की परंपरा है। इस दिन छोटे छोटे तिरंगे झंडे या उसी आकर के टिकट बांट कर देश के सामान्य लोगों से धन संग्रह का एक अभियान हर वर्ष चलता है। यह अभियान बहुत ही पवित्र भावना से वर्ष 1949 में शुरू किया गया था। वस्तुतः यह एक दिन हर नागरिक को अपनी सेना से जोड़ने का दिन है।

सात दिसम्बर यानी झंडा दिवस या सशस्त्र सेना दिवस का उद्देश्य भारत की जनता द्वारा देश की सेना के प्रति सम्मान प्रकट करना है। आज का दिन उन जांबाज सैनिकों के प्रति एकजुटता दिखाने का दिन है , जो देश की तरफ आंख उठाकर देखने वालों से लोहा लेते हुए सीमा पर शहीद हो गए। भारत की सेना में रहकर जिन्होंने न केवल सीमाओं की रक्षा की, बल्कि आतंकवादी व उग्रवादी से मुकाबला कर शांति स्थापित करने में अपनी जान न्यौछावर कर दी।यह एक परम पुनीत परम्परा है जिसमें देशवासियो का योगदान होता है। झंडा वितरित कर भारतीय सशस्त्र सेना के कर्मियों के कल्याण हेतु भारत की जनता से धन का संग्रह राशि का उपयोग युद्धों में शहीद हुए सैनिकों के परिवार या हताहत हुए सैनिकों के कल्याण व पुनर्वास में खर्च की जाती है। यह राशि सैनिक कल्याण बोर्ड की माध्यम से खर्च की जाती है। यह प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है की वह अपनी सेना के शौर्य और सम्मान के लिए अपना योगदान जरूर करे।

कुछ खास बातें :

सीमा पर तैनात हो कर शहीद जवानों के सम्मान में भारत सरकार ने साल 1949 से सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाने का निर्णय लिया।इस दिन प्रतीक झंडा सामान्य जनता में वितरित कर उससे सहयोग भी लिया जाता है। इस झंडे की ख़रीद से होने वाली आय शहीद सैनिकों के आश्रितों के कल्याण में खर्च की जाती है।

इस रूप में सशस्त्र सेना झंडा दिवस द्वारा इकट्ठा की गई राशि युद्ध वीरांगनाओं, सैनिकों की विधवाओं, भूतपूर्व सैनिक, युद्ध में अपंग हुए सैनिकों व उनके परिवार के कल्याण पर खर्च की जाती है।यह देश की ऐसी बुनियादी पहल है जिसमे सभी की सहभागिता होनी ही चाहिए। क्यों कि आज़ादी के तुरंत बाद सरकार को लगने लगा कि सैनिकों के परिवार वालों की भी जरूरतों का ख्याल रखने की आवश्यकता है और इसलिए उसने 7 दिसंबर को झंडा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।

इस दिन के निर्धारण के पीछे सोच थी कि जनता में छोटे-छोटे झंडे बांट कर दान अर्जित किया जाएगा जिसका फ़ायदा शहीद सैनिकों के आश्रितों को होगा।शुरू के दिनों में इसे झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता था लेकिन 1993 से इसे सशस्त्र सेना झंडा दिवस का रूप दे दिया गया।

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