अयोध्या मामला: 6 दिसंबर को गिरा था विवादित ढांचा, अब 5 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई
लखनऊ: अयोध्या में विवादित ढांचा 6 दिसम्बर 1992 को गिराया गया था, जिसके बाद पूरे देश में तूफान खड़ा हुआ था। बड़े पैमाने पर हुई हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए थे। जमीन के मालिकाना हक़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (11 अगस्त) को सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस मामले से जुड़े दस्तावेज़ और गवाहियों के अनुवाद के लिए 116 दिन का समय दिया है। गौरतलब है कि 116 दिन बाद एक बार फिर यह मामला उसी तारीख के करीब होगा जब विवादित ढांचा गिराया गया था यानि 5 दिसंबर को।
मामले के एक पक्षकार रामलला विराजमान की मांग पर कोर्ट ने उन्हें चार हफ्तों का वक्त दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर तय की है। कोर्ट ने साफ किया कि किसी भी पार्टी को अब आगे और मोहलत नहीं दी जाएगी। ना ही केस स्थगित किया जाएगा।
कई भाषाओं में दर्ज हैं गवाहियां
इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में दर्ज हैं, जिस पर सुन्नी वक्त बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेज़ों को अनुवाद कराने की मांग की थी।
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सिब्बल ने दस्तावेजों के अनुवाद की बात कही
शुक्रवार को हुई सुनवाई में यूपी सरकार की तरफ से एसोसिएट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखते हुए मामले की सुनवाई शीघ्र पूरी करने की मांग की, जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस बात पर आपत्ति जताई। सुन्नी वक्फ बोर्ड का कहना है कि बगैर उचित प्रक्रिया के यह सुनवाई की जा रही है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल का कहना था कि ‘इस मामले के कई पक्षकारों का निधन हो चुका है, ऐसे में उन्हें बदलने की जरूरत है। उन्होंने ये भी कहा, कि इस मामले से जुड़े दस्तावेज कई भाषाओं में हैं, ऐसे में सबसे पहले उनका अनुवाद कराया जाना चाहिए।’
सभी पक्षों को मिला 116 दिन का समय
सुप्रीम कोर्ट के जज दीपक मिश्रा ,अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की बेंच ने साफ कर दिया कि 5 दिसम्बर की तारीख अंतिम है लिहाजा किसी भी पक्ष को ओर समय नहीं दिया जा सकता । मतलब सर्वोच्च न्यायालय ने सभी पक्षों को 116 दिन का समय दिया है।
पहले ये आया था फैसला
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सितंबर, 2010 में मालिकाना हक का फैसला तीनों पक्ष के हक में दिया था। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, एसयू खान और डीवी शर्मा की बेंच ने अयोध्या की विवादित जमीन 2.77 एकड़ को तीन पक्षों में बराबर बराबर बांट दिया था। जमीन का एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और एक तिहाई हिस्सा रामलला विराजमान को दिया गया। बेंच का ये फैसला 2:1 के पक्ष में आया। मतलब बेंच के एक जज बाकी दो जजों के फैसले से सहमत नहीं थे। जाहिर है ये फैसला किसी पक्ष को मंजूर नहीं था, इसलिए सभी इस मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गए।
अब सुनवाई टालने का बहाना नहीं
पिछले मार्च में बीजेपी नेता सुब्रमणयम स्वामी ने इसकी सुनवाई रोजाना करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की, लेकिन कोर्ट ने टका सा जवाब दिया कि उसके पास रोजाना सुनवाई के लिए समय का अभाव है। लेकिन चार महीने बाद ही कोर्ट इसकी सुनवाई के लिए राजी हो गया। अब कोर्ट के आदेश के बाद आगामी 5 दिसंबर की तारीख अंतिम मानी जा रही है। अब किसी भी पक्ष के पास सुनवाई टालने का बहाना नहीं है।
शिया वक्फ बोर्ड जमीन देने को राजी
इस मामले को शिया वक्फ बोर्ड भी अब कूद गया है। सुप्रीम कोर्ट में पिछले 8 अगस्त को दिए हलफनामे में कहा गया कि बाबरी मस्जिद बाबर के सिपाहसलार मीर बाकी ने बनवाई थी और मीर बाकी शिया था, लिहाजा ये जमीन उसकी है। शिया वक्फ बोर्ड विवादित जमीन मंदिर निर्माण को देने को राजी हो गया है। उसके हलफनामे के अनुसार उसे किसी मुस्लिम आबादी में जमीन दी जाए ताकि वो मस्जिद का निर्माण करा सके।