Waqf Law Controversy: क्या राज्य केंद्रीय कानून से इनकार कर सकते हैं? जानें क्या है संवैधानिक स्थिति
Waqf Law Controversy: कुछ राज्य सरकारों ने कहा है कि वो नया वक्फ कानून लागू नहीं करेंगे। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में कहा कि इस कानून को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा।

Waqf Law Controversy
Waqf Law Controversy: कुछ राज्य सरकारों ने कहा है कि वो नया वक्फ कानून लागू नहीं करेंगे। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में कहा कि इस कानून को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी और कर्नाटक के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमीर अहमद खान ने भी ऐसा ही बयान दिया है। इन बयानों के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या राज्य सरकारों के पास एक ऐसे कानून को लागू न करने के अधिकार हैं जिसे संसद ने पारित किया हो और जिस पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए हों?
संसद के दोनों सदनों द्वारा पास कर दिए जाने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 पर हस्ताक्षर कर दिए थे। आठ अप्रैल को केंद्र सरकार द्वारा गजट जारी कर दिए जाने के साथ ही कानून लागू हो गया है। ऐसे में अगर कोई राज्य इस कानून को न माने तो क्या होगा?
वैसे, इस तरह के मामले पहले भी सामने आए हैं। नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 और फिर 2020 में लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के साथ भी ऐसा ही हुआ था। कई राज्य सरकारों ने उन्हें लागू करने से इनकार कर दिया था। कृषि कानूनों को तो बाद में केंद्र सरकार ने निरस्त ही कर दिया था। लेकिन तथ्य ये है कि भारत का संविधान संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून को लागू करने से मना करने की इजाजत राज्यों को नहीं देता है। संविधान की धारा 256 साफ कहती है कि संसद द्वारा बनाए गए कानून का हर राज्य में पालन होना चाहिए।
यहां तक कि अगर किसी केंद्रीय कानून और उसी विषय पर किसी राज्य के अपने कानून के बीच टकराव पैदा होता है तो राज्य को केंद्रीय कानून को मानना पड़ेगा। धारा 257 (1) में भी लिखा है कि हर राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का इस्तेमाल इस तरह करेगा जिससे केंद्र की कार्यपालिका शक्ति को क्षति ना पहुंचे। इसके बावजूद अगर कोई राज्य किसी केंद्रीय कानून को लागू करने से इनकार करता है तो संविधान की धारा 355 के तहत केंद्र सरकार उस राज्य को ऐसा ना करने के लिए कह सकती है और चेतावनी दे सकती है। इसके बाद भी अगर राज्य सरकार नहीं मानी तो केंद्र सरकार धारा 356 के तहत उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है।
राज्यों के पास क्या अधिकार हैं?
ऐसे हालात में राज्यों के पास सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का पूरा अधिकार है। धारा 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और एक या एक से ज्यादा राज्य सरकारों के बीच मामलों पर सुनवाई कर सकता है। लेकिन इसकी शर्त यह कि राज्य या राज्यों का विरोध राजनीतिक या वैचारिक आधार पर नहीं होना चाहिए और यह साबित होना चाहिए कि उनके किसी अधिकार का हनन हो रहा है। इसके अलावा धारा 254(2) के तहत अगर समवर्ती सूची या कंकररेंट लिस्ट के तहत आने वाले किसी विषय पर बने किसी केंद्रीय कानून पर अगर किसी राज्य को आपत्ति है, तो वो इसे निरस्त करने के लिए अपना कानून बना सकता है। हालांकि यह कानून राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बिना लागू नहीं होगा।
इतना आसान नहीं
संविधान के अनुच्छेद 246 को ध्यान से पढ़ने पर यह स्पष्ट है कि कानून बनाने के लिए विषयों को स्पष्ट रूप से तीन अलग-अलग सूचियों में विभाजित किया गया है, अर्थात संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। संघ सूची में दिए गए मामलों और विषयों पर केंद्र सरकार द्वारा निर्णय लिया जाना है, राज्य सूची में दिए गए मामलों पर राज्य सरकार द्वारा निर्णय लिया जाना है। और समवर्ती सूची में मौजूद मामलों पर संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों द्वारा निर्णय लिया जाना है और कानून बनाया जाना है।
संविधान के 246,248, 249 अनुच्छेदों पर विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संसद का राज्य विधानसभाओं पर ऊपरी हाथ है। यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जहाँ दो क़ानून मौजूद हैं, एक संघ सरकार द्वारा अधिनियमित और दूसरा राज्य सरकार द्वारा अधिनियमित, तो संघ सरकार द्वारा अधिनियमित कानून मान्य होगा।
यदि कोई राज्य संसद द्वारा अधिनियमित किसी कानून से संतुष्ट नहीं है, जो विशेष रूप से राज्य सूची में उल्लिखित मामलों में है, तो राज्य कानून को आसानी से "नहीं" नहीं कह सकता है। उसे अपने मूल अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत माननीय सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करनी होगी और संबंधित कानून की वैधता को चुनौती देनी होगी। व्याख्या के विभिन्न नियमों पर विचार करने के बाद, जैसे कि अनुमान का सिद्धांत, सार और सार का सिद्धांत, रंग-रूपी विधान का सिद्धांत और उदाहरणों के साथ-साथ संविधान सभा की बहसों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ही यह तय करेगा कि कानून को कायम रखना चाहिए या नहीं।