नई दिल्ली : नवरात्र, दूर्गा पूजा की तरह छठ पूजा भी हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है। छठ पूजा खासकर बिहार में बहुत जोर शोर और श्रद्धापूर्वक मनाई जाती है। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्य देवता की बहन हैं। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन धान्य से संपन्न करती हैं। सूर्य देव की आराधना का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी इन दो तिथियों को यह पर्व मनाया जाता है। हालांकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाये जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है। कार्तिक छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है। छठ पूजा करने या उपवास रखने के सबके अपने अपने कारण होते हैं लेकिन मुख्य रूप से छठ पूजा सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिये की जाती है। मान्यता है कि सूर्य देव की कृपा से सेहत अच्छी रहती है, घर में धन धान्य के भंडार भरे रहते हैं, छठ माई संतान प्रदान करती हैं। ये व्रत सूर्य जैसी श्रेष्ठ संतान पाने के लिए भी रखा जाता है। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये भी इस व्रत को रखा जाता है।
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छठ पूजा के चार दिन
छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय : छठ पूजा का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है। इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना : कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है। शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाई जाती है। नमक व चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी खाई प्रसाद के रूप में बांटी जाती है।
षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है। ये आटे व गुड़ से बनता है। चावल के लड्डïू भी बनाए जाते हैं। इस दिन छठ डाला या टोकरी तैयार की जाती है। इस डाले में पांच तरह के फल, नई सब्जियां सहित गन्ना, शकरकंद, मूली, गाजर, अदरक आदि पूजा के लिए रखी जाती हैं। इन सभी चीजों को बांस की डालिया (डाला) में रखा जाता है। शाम को सूरज डूबने के बाद नदी या तालाब किनारे महिलाएं भगवान सूर्य को अघ्र्य देकर सभी साम्रगी अर्पित करती हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है।
अगले दिन यानी सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा कर छठ पूजा संपन्न की जाती है।
पर्व तिथि व मुहूर्त
2 नवंबर : छठ पूजा के दिन सूर्योदय सुबह 06 : 33 बजे
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त शाम 17:35 बजे
षष्ठी तिथि आरंभ : रात 00:51 (2 नवंबर 2019)
षष्ठी तिथि समाप्त : 01:31 (3 नवंबर 2019)
देवी षष्ठी की उत्पत्ति
छठ देवी को सूर्य देव की बहन बताया जाता है। लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। देवसेना अपने परिचय में कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं यही कारण है कि मुझे षष्ठी कहा जाता है। देवी कहती हैं यदि आप संतान प्राप्ति की कामना करते हैं तो मेरी विधिवत पूजा करें। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को करने का विधान बताया गया है। पौराणिक ग्रंथों में इस रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या आने के पश्चात माता सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करने से भी जोड़ा जाता है, महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना से पुत्र की प्राप्ति से भी इसे जोड़ा जाता है। सूर्यदेव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था वह भी सूर्यदेव के उपासक थे। वे घंटों जल में रहकर सूर्य की पूजा करते। मान्यता है कि कर्ण पर सूर्य की असीम कृपा हमेशा बनी रही। इसी कारण लोग सूर्यदेव की कृपा पाने के लिये भी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करते हैं।
वैज्ञानिक महत्व
सूर्य को जल देने की बात करें तो इसके पीछे रंगों का विज्ञान छिपा है। मानव शरीर में रंगों का संतुलन बिगडऩे से भी कई रोगों के शिकार होने का खतरा होता है। सुबह के समय सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय शरीर पर पडऩे वाले प्रकाश से ये रंग संतुलित हो जाते हैं (प्रिज्म के सिद्दांत से) जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ जाती है। सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन डी शरीर में पूरा होता है। त्वचा के रोग कम होते हैं।
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सूर्य का स्थान
सूर्य की गिनती उन 5 प्रमुख देवी-देवताओं में की जाती है, जिनकी पूजा सबसे पहले करने का विधान है। पंचदेव में सूर्य के अलावा चार अन्य हैं गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु (मत्स्य पुराण)।
भगवान सूर्य सभी पर उपकार करने वाले अत्यंत दयालु हैं। वे उपासक को आयु, आरोग्य, धन-धान्य, संतान, तेज, कांति, यश, वैभव और सौभाग्य देते हैं। वे सभी को चेतना देते हैं।
सूर्य की उपासना करने से मनुष्य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है। जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्त और अंधे नहीं होते।
सूर्य को ब्रह्म का ही तेज बताया गया है। सूर्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों को देने वाले हैं। साथ ही पूरे संसार की रक्षा करने वाले हैं।
सेहत के लिए फायदेमंद प्रसाद
छठ पूजा में वैसे तो कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं,लेकिन उसमें सबसे अहम ठेकुए का प्रसाद होता है, जिसे गुड़ और आटे से बनाया जाता है। छठ की पूजा इसके बिना अधूरी मानी जाती है। छठ के सूप में इसे शामिल करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि छठ के साथ सर्दी की शुरुआत हो जाती है और ऐसे में ठंड से बचने और सेहत को ठीक रखने के लिए गुड़ बेहद फायदेमंद होता है।
छठ की पूजा में प्रसाद में केले का पूरा गुच्छ चढ़ाया जाता है। छठ में केले का भी खास महत्व है। यही वजह है कि प्रसाद के रूप में इसे बांटा और ग्रहण किया जाता है। इसके पीछे तर्क यह है कि छठ पर्व बच्चों के लिए किया जाता है और सर्दियों के मौसम में बच्चों में गैस की समस्या हो जाती हैं। ऐसे में उन्हें इस समस्या से बचाने के लिए प्रसाद में केले को शामिल किया जाता है।
छठ की पूजा में प्रसाद में गन्ना भी चढ़ाया जाता है। अघ्र्य देते समय पूजा की सामग्री में गन्ने का होना जरूरी होता है। ऐसा माना जाता है कि छठी मैय्या को गन्ना बहुत प्रिय है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। बताया जाता है कि सूर्य की कृपा से ही फसल उत्पन्न होती है और इसलिए छठ में सूर्य को सबसे पहले नई फसल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। गन्ना उस नई फसल में से एक है।
छठ के सूप में नारियल जरूर होता है और इसके पीछे तर्क यह है कि मौसम में बदलाव के कारण होने वाले सर्दी जुकाम की समस्या से नारियल हमें बचाने में मदद करता है। इसके अलावा नारियल में कई तरह के अहम पौष्टिक तत्व मौजूद हैं, जो इम्यून सिस्टम को बेहतर रखने में मदद करते हैं और यही वजह है कि इसे प्रसाद में शामिल किया जाता है।
छठ पूजा में प्रसाद में डाभ नींबू जो कि एक विशेष प्रकार का नींबू है, चढ़ाया जाता है। ये दिखने में बड़ा और बाहर से पीला और अंदर से लाल होता है। डाभ नींबू हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है और ये हमें कई रोगों से दूर रखता है। डाभ नींबू हमें बदलते मौसम में बीमारियों से लडऩे के लिए तैयार करता है।
रखें इन बातों का ध्यान
पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है, जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। यह पवित्र हृदय से सूर्य की आराधना करने का पर्व है जिसमें सूर्यदेव के प्रति गहरी आस्था व समर्पण का भाव होता है।
व्रत रखने वाली महिला को 'परवैतिन ' भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है।
भोजन के साथ ही सुखद शैया का भी त्याग किया जाता है। छठ पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती द्वारा फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है।
छठ व्रत के दौरान व्रती को पूर्ण संयम बरतना होता है। किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए। अपशब्द नहीं बोलने चाहिए।
छठ उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं, पर व्रती बिना सिलाई किए कपड़े पहनते हैं।
महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं।
इस व्रत को शुरू करने के बाद छठ पर्व को हर साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहिता महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए।
घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है। यही एक मात्र ऐसा त्योहार है जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अघ्र्य दिया जाता है। हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। वे ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है। वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है। सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है। छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम। इस पर्व को गरीब-अमीर, हर जाति वर्ण के लोग समान भाव और श्रद्धा से मनाते हैं। पर्व के दौरान किसी व्रती को कोई बुरी निगाह से नहीं देखता है।