वासुदेवानन्द की अपील खारिज, हाईकोर्ट उन्हें सन्यासी मानने को तैयार नहीं   

Update:2017-09-22 15:50 IST

इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वामी वासुदेवानंद को सन्यासी माने से इंकार करते हुए शुक्रवार को अपने आदेश में कहा कि वो छत्र, चंवर, दण्ड और सिंहासन तथा शंकराचार्य पदनाम का उपयोग अब नहीं कर सकते।

खचाखच भरी अदालत में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति के एस ठाकर ने फैसले में कहा कि तीन महीने में तीनों शंकराचार्य मिलकर ज्योतिष्पीठ का नया शंकराचार्य नियुक्त करें। तब तक यथास्थिति बनी रहेगी अर्थात स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज बने रहेंगे।

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जजों ने यह भी कहा है कि कई लोग अपने को शंकराचार्य घोषित कर घूम रहे हैं। अतः सरकार को न्यायालय ने निर्देशित किया कि उन पर अंकुश लगाने के उपाय करे और आवश्यक रूप से कानूनी कार्यवाही करे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्योतिर्मठ, ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य का पद रिक्त घोषित कर दिया है। कोर्ट ने 3 माह में नए शंकराचार्य के चयन का आदेश दिया है। कोर्ट ने अखिल भारत धर्म महामण्डल व काशी विद्वत परिषद को योग्य सन्यासी ब्राह्मण को तीनो पीठो के शंकराचार्यो की मदद से शंकराचार्य घोषित करने का आदेश दिया है।

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कोर्ट ने कहा कि 1941 की प्रक्रिया अपनाई जाए

कोर्ट ने नए शंकराचार्य नियुक्त होने तक यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया है।कोर्ट ने आदि शंकराचार्य द्वारा घोषित 4 पीठो को ही वैध पीठ माना है। कोर्ट ने स्वघोषित शंकराचार्यो पर भी कटाक्ष किया । कोर्ट ने स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती व् स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती दोनों को वैध शंकराचार्य नही माना है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति के जे ठाकर की खण्डपीठ ने स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है।

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कोर्ट ने केंद्र व् राज्य सरकार से भोली जनता को ठगने वाले बनावटी बाबाओं पर अंकुश लगाने को कहा है। फर्जी शंकराचार्यो व् मठाधीशों पर भी अंकुश लगे। मठों की सम्पत्ति की आडिट करायी जाय।

कोर्ट ने कहा कि 12 जून 1953 को स्वामी शांतानन्द सरस्वती शंकराचार्य बने। पद खाली नहीं था,इसलिए स्वामी कृष्ण बोधश्रम को शंकराचार्य घोषित करना अवैध था। 15 जनवरी 70 को सिविल वाद में स्वामी शांतनन्द सरस्वती को वैध करार दिया गया था। स्वामी कृष्णबोधश्रम की अपील उनकी मौत के कारण स्वतः समाप्त हो गयी। सिविल कोर्ट का फैसला प्रभावी रहा। इसलिए स्वामी कृष्ण बोधश्रम के बाद स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती को शंकराचार्य बनाना पद खाली न होने के कारण वैध नही माना जा सकता। स्वामी शांतनन्द के पद त्याग के बाद स्वामी विष्णुदेवानन्द सरस्वती शंकराचार्य बने। स्वामी वासुदेवानन्द ने सन्यास नही लिया।वे सरकारी नौकरी पर थे।

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सरकार से 13 नवम्बर 1989 तक वेतन ले रहे थे। कोर्ट ने चारों पीठो के शंकराचार्यो की पीठो पर अधिकृत व्यक्ति रहे,इसके लिए सरकार को कदम उठाने को कहा है। सभी मठों की आय की ऑडिट कराई जाय ताकि ऐसे मठों को अनावश्यक विवाद से दूर रखा जा सके।

कोर्ट के इस फैसले से स्वामी स्वरूपानन्द ज्योतिष्पीठ का कार्य देखते रहेंगे। वर्तमान स्थिति कायम रहेगी।

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