नई दिल्ली : दीपावली, गणेश, लक्ष्मी, त्योहार,पावली भारत में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा हिंदू त्योहार है। ये त्योहार चार दिनों के समारोहों से चिह्नित होता है, जो अपनी प्रतिभा के साथ हमारी धरती को रोशन करता है और हर किसी को अपनी खुशी के साथ प्रभावित करता है। चार दिन के उत्सव को इसके आध्यात्मिक महत्व के लिए मनाया जाता है, जो अंधेरे पर रोशनी की विजय का प्रतीक है, बुराई पर अच्छाई की जीत, अज्ञानता पर ज्ञान और निराशा की उम्मीद है।
त्योहारी कैलेंडर
25 अक्टूबर (शुक्रवार), द्वादशी : गोवत्स द्वादशी, वसु बरस, धनतेरस, धन्वन्तरि त्रयोदशी।
26 अक्टूबर (शनिवार), त्रयोदशी : यम दीपम, काली चौदस, हनुमान पूजा, तमिल दीपावली।
27 अक्टूबर (रविवार), चतुर्दशी : नरक चतुर्दशी, दिवाली, लक्ष्मी पूजा, केदार गौरी व्रत, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा।
28 अक्टूबर (सोमवार), अमावस्या : दीपावली स्नान, दीपावली देवपूजा, द्यूत क्रीड़ा, गोवर्धन पूजा, अन्नकूट, बलि प्रतिपदा, गुजरती नया साल।
29 अक्टूबर (मंगलवार), द्वितीया : भैया दूज, भौ बीज, यम द्वितिया
शुभ मूहू्र्त
27 अक्टूबर 2019
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त : शाम 7 बजकर 15 मिनट से 8 बजकर 36 मिनट तक।
प्रदोष काल - शाम 6 बजकर 4 मिनट से 8 बजकर 36 मिनट तक।
वृषभ काल - शाम 7 बजकर 15 मिनट से 9 बजकर 15 मिनट तक।
लक्ष्मी पूजा चौघडिय़ा : दोपहर शुभ पूजा मुहूर्त - 1 बजकर 48 मिनट से 3 बजकर 13 मिनट तक।
शाम का पूजा मुहूर्त : शाम 6 बजकर 04 मिनट से 10 बजकर 48 तक।
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दीपावली का महत्व
शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में जब भगवान राम रावण का वध करके अयोध्या लौटे तो अयोध्यावासियों ने उनका स्वागत दीप जलाकर किया था। इसी कारण प्रतिवर्ष दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं और घर के आगे रंगोली बनाते हैं और दीप जलाकर मां लक्ष्मी का स्वागत करते हैं। खील और बतासे का प्रसाद एक-दूसरे को बांटते है और पटाखे आदि जलाते हैं। दीपावली पर मां लक्ष्मी के आगमन का प्रमुख दिन माना जाता है। इस दिन लोग अपने घर और दफ्तरों को दीपक जलाकर सजाते हैं। अपने घर की साफ- सफाई करते हैं। मां लक्ष्मी के आगमन की कई प्रकार से तैयारी की जाती है। इस दिन पैसों, गहनों और बहीखातों की पूजा का विधान है। माना जाता है ऐसा करने से मां लक्ष्मी का उनके घर पर वास होगा और पैसों की कभी कोई कमी नहीं होगी। इसके साथ ही घर में रिद्धि -सिद्धि के वास के लिए भी यह काम किया जाता है।
पूजन विधि
दीपावली पर भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है। पूजन के लिये ये सामग्री आवश्यक है - लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मुद्रा में), केसर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, शहद, सिक्के, लौंग, सूखे, मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, 11 दीपक, रूई तथा कलावा, नारियल और तांबे का कलश।
एक थाल में या भूमि को शुद्ध करके नवग्रह बनायें या नवग्रह यंत्र की स्थापना करें। इसके साथ ही एक तांबे का कलश बनाएं। इसमें गंगाजल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग आदि डालें। उसे लाल कपड़े से ढंक कर उसके ऊपर एक कच्चा नारियल कलावे से बांध कर रख दें।
जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया गया है वहां रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी - गणेश सरस्वती जी या ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां या चित्र सजायें। कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही और गंगाजल से स्नान कराएं। अक्षत, चंदन का श्रंगार करके फूल आदि से सजाएं। दाहिनी ओर तेल का एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें। इसके अलावा पांच घी व पांच तेल के दीपक जलायें।
अब हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ धन भी ले लीजिए। यह सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो। सबसे पहले गणेश जी व गौरी का पूजन कीजिए।
हाथ में थोड़ा-सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र (ऊँ दीपावल्यै नम:) बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। अंत में महालक्ष्मी जी की आरती के साथ पूजा का समापन करें।
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दीपावली की कथा
एक गांव में एक साहूकार था, उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी। जिस पीपल के पेड़ पर वह जल चढ़ाती थी, उस पर लक्ष्मी जी का वास था। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा, मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूं। लड़की ने कहा कि मैं अपने पिता से पूछ कर आऊंगी। यह बात उसने अपने पिता को बताई, तो पिता ने हां कर दी। दूसर दिन साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया। दोनों अच्छे मित्रों की तरह आपस में बातचीत करने लगीं। एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गईं। अपने घर में लक्ष्मी जी ने उसकी खूब खातिर की, अनेक प्रकार के भोजन परोसे। बाद में जब साहूकार की बेटी लौटने लगी तो लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया कि अब तुम मुझे कब अपने घर बुलाओगी। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला तो लिया, परन्तु अपने घर की आर्थिक स्थिति देख कर वह उदास हो गई। साहूकार ने अपनी बेटी को उदास देखा तो उसने अपनी बेटी को समझाया, कि तू फौरन मिट्टी से चौका लगा कर साफ -सफाई कर। चार बत्ती के मुख वाला दिया जला, और लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा। उसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार लेकर उसके पास डाल गई। साहूकार की बेटी ने उस हर को बेचकर सोने की चौकी खरीदी और भोजन की तैयारी की। थोड़ी देर में श्री गणेश के साथ लक्ष्मी जी उसके घर आ गईं। साहूकार की बेटी ने दोनों की खूब सेवा की, उसकी खातिर से लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुईं और साहूकार बहुत अमीर बन गया।
लक्ष्मीजी की आरती
जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत हर विष्णु धाता ॥ ऊँ॥
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ ऊँ॥
दुर्गा रुप निरंजिनि, सुख सम्पति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋधि सिधि धन पाता॥ ऊँ॥
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभदाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥ ऊँ॥
जिस घर तुम रहती तह सब सदुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता॥ ऊँ॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान पान का वैभव सब तुमसे आता॥ ऊँ॥
शुभ गुण मन्दिर सुन्दर क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता॥ ऊँ॥
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ऊँ॥
अपनी राशि के अनुसार करें पूजन
राशि लक्ष्मी स्वरूप मंत्र मंत्र राशि अनुसार
मेष आद्य लक्ष्मी ओम आद्य लक्ष्म्यै नम: ओम ऐं क्लीं सो:
वृष विद्या लक्ष्मी ओम विद्या लक्ष्म्यै नम: ओम ऐं क्लीं श्रीं
मिथुन काम लक्ष्मी ओम काम लक्ष्म्यै नम: ओम क्लीं ऐं सो:
कर्क सौभाग्य लक्ष्मी ओम सौभाग्य लक्ष्म्यै नम: ओम ऐं क्लीं श्रीं
सिंह भोग लक्ष्मी ओम भोग लक्ष्म्यै नम: ओम ह्रीं श्रीं सो:
कन्या काम लक्ष्मी ओम काम लक्ष्म्यै नम: ओम श्रीं ऐं सो:
तुला विद्या लक्ष्मी ओम विद्या लक्ष्म्यै नम: ओम ह्रीं क्लीं श्रीं
वृश्चिक आद्य लक्ष्मी ओम आद्य लक्ष्म्यै नम: ओम ऐं क्लीं सो:
धनु सत्य लक्ष्मी ओम सत्य लक्ष्म्यै नम: ओम ह्रीं कलीं सो:
मकर योग लक्ष्मी ओम योग लक्ष्म्यै नम: ओम ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं सो:
कुम्भ योग लक्ष्मी ओम योग लक्ष्म्यै नम: ओम ह्रीं ऐं क्लीं श्री
मीन सत्य लक्ष्मी ओम सत्य लक्ष्म्यै नम: ओम ह्रीं क्लीं सो:
क्या करें
दीपावली के दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है।
इस दिन वृद्धजन और बच्चों को छोड़ कर अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को महालक्ष्मी पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय हाथ में उल्का धारण कर पितरों को मार्ग दिखाएं। यहां उल्का से तात्पर्य है कि दीपक जलाकर या अन्य माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखायें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
दीपावली से पहले मध्य रात्रि को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन और घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है।
इन चीजों को करें घर से बाहर
घर में कोई टूटा शीशा रखा हो तो उसे तुरंत बाहर करें।
बंद या खराब घडिय़ों से आपकी जिंदगी में भी कोई काम सही तरीके से नहीं हो पाएगा और उसमें ढेरों रुकावट आती रहेंगी। इसे भी इस दीपावली बाहर करें।
घर में टूटा हुआ फ्रेम, फोटो या कोई सजावटी सामान हो तो उसे तुरंत हटा दें।
खराब पड़ा इलेक्ट्रॉनिक सामान है तो उसे कबाड़ी के हवाले कर दें।
घर का मेन गेट या कोई दरवाजा आवाज करता हो, टूटा हो या उसमें कोई दरार हो तो उसे सही करा लें।
घर में कोई भी फर्नीचर टूटा-फूटा हो तो तुरंत मरम्मत करा लें या फिर कबाड़ी को बेच दें।
बेड टूट रहा है या टूटा है तो तत्काल बदल दें।
घर में पड़े टूटे डिब्बे, बेकार सामान, टूटे खिलौने, फटे कपड़े, टूटे जूते-चप्पल और पुरानी चादरें फेंक दें।
खाली शीशी बोतलें, हैंडल टूटी बाल्टियां कप वगैरह फेंक दें।
नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली
दीपावली के एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली मनाई जाती है। इसे रूप चौदस और काली चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। इसे हर वर्ष कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन शाम को दीप दान किया जाता है। माना जाता है कि नरक चतुर्दशी की सुबह यमराज की पूजा करने से, शाम के समय दीप दान करने और घर के बाहर दिये जलाने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता तथा यमराज प्रसन्न होते हैं। विधि विधान से पूजा करने पर नरक में सहने वाली यातनाओं और पापों से भी मुक्ति मिलती है।
कहानी धनतेरस की
धनतेरस का त्योहार दीपावली से दो दिन पहले कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है। धनतेरस को धन त्रयोदशी भी कहते हैं। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। इस दिन लोग सोने चांदी या धातु के बर्तन खरीदते हैं। धनरेतस पर भगवान धनवन्तरी की पूजा भी की जाती है। माना जाता है कि धनवन्तरी का जन्म समुद्र मंथन से इसी दिन हुआ था, जब वह अमृत का कलश लेकर निकले थे। स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को त्रिदोष काल में घर के दरवाजे पर दीप देने से अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है। यह दीपक यम के नाम का होता है और उनकी पूजा और प्रार्थना की जाती है। माना जाता है की इस दिन त्रिदोष काल में लक्ष्मी जी की पूजा करने से वे घर पर ही ठहर जाती हैं।
धनतेरस पर टोटके
धनतेरस की शाम को एक दीया जलाएं और उसके पास में एक कौड़ी को रख दें। बाद में कौड़ी को अपने पैसे रखने वाली जगह पर लाल कपड़े में लपेटकर रख दें। इस उपाय से घर पर पैसों की कभी कमी नहीं रहेगी।
108 बार ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रववाय, धन-धान्यधिपतये धन-धान्य समृद्धि मम देहि दापय स्वाहा कुबेर मंत्र का जाप करें।
धनतेरस पर चांदी के सिक्के और हल्दी की गांठ की पूजा करने से जीवन में तरक्की मिलती है।
धनतेरस पर किसी किन्नर के हाथों से पैसे लेकर अपने पर्स में रख लें। इससे आपको जिंदगी में बहुत सफलता मिलेगी।
धनतेरस और दिवाली पर श्रीयंत्र की पूजा करें, जीवन में कभी भी पैसों की तंगी नहीं रहेगी।