Delhi: चार हजार शवों का अंतिम संस्कार, हरिद्वार में अस्थियों का विसर्जन; पूजा की अलग कहानी...

Delhi Pooja Sharma: दिल्ली की पूजा शर्मा पिछले दो सालों से लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर रही हैं। पूजा मुर्दाघरों के लावारिस शवों को अपना वारिस बनाकर शमशान घाट ले जाती हैं।

Written By :  Seema Pal
Update: 2024-04-09 08:23 GMT

Delhi : पूजा शर्मा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करती हैं 

Delhi Pooja Sharma: शमशानघाट... जाने के नाम से ही लोगों की रूह कांप उठती है। ऐसी जगहों पर लोग अपने मृत संबंधी की अंतिम विदाई में ही जाते हैं। मगर, आपने यह कभी नहीं देखा होगा कि कोई शमशानघाट को अपने जीवन की प्रेरणा बना लें। जी हां, महज 21 साल की उम्र में जब लोग अपने खूबसूरत सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं, उस उम्र में दिल्ली की एक लड़की मुर्दाघरों और शमशानघाट पर जीवन बिता रही हैं। पिछले दो साल से इस लड़की का ज्यादातर समय शमशानघाट में गुजर रहा है।

पूजा ने किया 4 हजार शवों का दाह संस्कार

पूजा शर्मा दिल्ली की रहने वाली हैं। पूजा की उम्र 21 साल है। पूजा काफी पढ़ी-लिखी हैं और सोशल वर्क से मास्टर डिग्री ली है। दिल्ली में पूजा HIV काउंसलर की नौकरी करती थीं। मगर देश भर के लावारिस शवों को वारिस देना पूजा का मिशन बन चुका है। पूजा चाहती हैं कि कोई भी शव लावारिस ना कहलाए। इसलिए पूजा लावारिस शवों को अपना नाम देने का काम कर रही हैं। पूजा ने यह कार्य कोविड19 महामारी आने के बाद से शुरू किया। साल 2022 से अब तक पूजा चार हजार से भी ज्यादा शवों का दाह संस्कार कर चुकी हैं। अपने मिशन को पूरा करने के लिए पूजा ने अपनी HIV काउंसर की नौकरी भी छोड़ दी। अब पूजा समाज सेवी बनकर लावारिस शवों की वारिस बनने के लिए देश के किसी भी कोने में पहुंच जाती हैं।


मुर्दाघरों से शवों को ले जाती हैं शमशानघाट

दिल्ली पूजा शर्मा इस कार्य के लिए अपना एक ब्राइट द सोल फाउंडेशन (Bright the Soul Foundation) नामक एनजीओ चलाती हैं। इस संस्था के जरिए ही पूजा को लावारिस शवों की जानकारी मिलती है। इसके साथ ही पूजा खुद भी आसपास के अस्पतालों के मुर्दाघरों संपर्क करती हैं, जहां से वह ऐसे शवों को अपना वारिस बना लेती हैं जो लावारिस होते हैं। मुर्दाघरों से पूजा लावारिस शवों को खुद एंबुलेंस बुलाकर पास के शमशानघाट ले जाती हैं। फिर पूजा खुद ही शव का दाहसंस्कार भी करती हैं। यहीं नही, दाहसंस्कार के बाद पूजा शवों की अस्थियों को हरिद्वार जाकर प्रवाहित भी करती हैं। इन सब में करीब कुल 2 हजार से ज्यादा का खर्चा आता है। पूजा यह कार्य को अकेले ही कर रही हैं और इसका खर्च भी खुद ही उठा रही हैं।

धर्म के अनुसार करती हैं अंतिम संस्कार

ब्राइट द सोल फाउंडेशन के तहत लावारिस शवों का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से किया जाता है। इस संबंध में पूजा शर्मा बताती हैं कि वह शवों का दाहसंस्कार हिंदू रीति से करती हैं। मगर, जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट से शव के धर्म व जाति विशेष का पता चल जाता है तो उन शवों का अंतिम संस्कार उनके धर्म के अनुसार ही किया जाता है। वहीं जिन शवों की पहचान नहीं हो पाती है, उन शवों का अंतिम संस्कार वह अपने धर्म (हिंदू) के अनुसार कर देती हैं। पूजा बताती हैं कि वह दो सालों में अब तक चार हजार से ज्यादा शवों का दाहसंस्कार कर चुकी हैं। इनमें अलग-अलग धर्मों के शव शामिल हैं।

दादी की पेंशन के पैसे से उठाती हैं खर्च

पूजा आगे कहती हैं कि उनके समाज सेवा के इस कार्य में उनका परिवार उनकी आर्थिक मदद करता है। पूजा अब खुद कोई नौकरी नहीं करती हैं। पूजा की दादी पेंशनर हैं, पिता ड्राइवर हैं और मां गृहणी हैं। पूजा ने बताया कि उनकी दादी और पिता उन्हें आर्थिक मदद के लिए पैसे देते हैं। इसके अलावा पूजा को उनके एनजीओ से भी कुछ आर्थिक मदद मिल जाती है। लेकिन अब आर्थिक कमी के कारण बहादुर पूजा की हिम्मत टूटने लगी है। पूजा दाहसंस्कार के कार्य आगे जारी रखने के लिए लोगों से आर्थिक मदद मांग रही हैं। पूजा की यह निस्वार्थ सेवा देश के लिए एक उदार उदाहरण हैं।

अपने भाई का किया था दाहसंस्कार

दिल्ली की कम उम्र की पूजा को अंतिम संस्कार करने की प्रेरणा उनके जीवन में आए संकटों से मिली। पूजा कहती हैं कि बीमारी के कारण उनकी मां को निधन हो गया था। मां की मौत का दुख अभी कम भी नहीं हुआ था कि कुछ दिन बाद भाई की भी मौत हो गई। पत्नी और बेटे की मौत के गम में पिता कोमा में चले गए। ऐसे में उनके भाई का अंतिम संस्कार करने के लिए जब कोई नहीं आगे आया तो पूजा ने खुद ही इसकी जिम्मेदारी ले ली। पूजा ने खुद अपने भाई का दाहसंस्कार किया। यहीं से पूजा को उनके जीवन के लिए एक नई प्रेरणा मिली और अंतिम संस्कार के कार्य को अपना मिशन बना लिया।

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