नई दिल्ली : मोदी सरकार को ढाई बरस में पहली बार ऐसी मुसीबत का सामना करना पड़ा है कि कैसे वह नोटबंदी के बाद चैतरफा आलोचनाओं के चक्रव्यूह से बाहर निकल सके। भाजपा सांसद जिन्हें तीन दिन बाद संसद सत्र की समाप्ति के बाद अपने निर्वाचन क्षेत्रों की ओर रुख करना है इस बात से खफा हैं कि नोटबंदी के बाद बैंकों में करेंसी की कम सप्लाई और शादी ब्याह के सीजन में पैसे की तंगी झेल रहे लोगों की मुसीबतों को कैसे दूर किया जा सके।
सत्ता पक्ष में सबसे ज्यादा चिंता इस बात को लेकर भी है कि नोटबंदी के बाद संसद के भीतर-बाहर जिस तरह के हालात हैं,उससे भाजपा सांसदों व नेता दो भागों में बंटे हुए हैं। पार्टी में ऐसे लोगों का बहुमत लगातार बढ़ रहा है जो मानते हैं कि नोटबंदी जल्दबाजी में लिया गया ऐसा जोखिमभरा फैसला है,जिससे पार्टी को आने वाले दिनों में लाभ के बजाय बड़ा सियासी नुकसान हो सकता है। संसद के गलियारों से लेकर संसद के केंद्रीय कक्ष तक हर गलियारे और नुक्कड़ पर यही चर्चा व अनिश्चितता रही है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को संसद में बोलने का मौका मिल गया तो उनके आरोप प्रधानमंत्री मोदी के लिए कितने घातक साबित हो सकते हैं। क्या राहुल ने पीएम मोदी को घेरने के लिए जो सबूत एकत्र किए हैं वे कितने पुख्ता हैं और उनके सबूतों में कितना दम होगा।
संसद के भीतर-बाहर विपक्ष की एकजुटता और राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को नोटबंदी से जुड़े घोटाले में सीधे तौर पर लपेटने की धमकी के बाद सत्तापक्ष हिला हुआ है। कई कैबिनेट मंत्री व भाजपा सांसद जो आमतौर पर केंद्रीय कक्ष में सरकार का पक्ष समझाने के लिए वरिष्ठ पत्रकारों के बीच सरकार के पक्ष में लॉबिंग करते देखे जाते थे, उनमें से ज्यादातर संसद गलियारों से ओझल हैं। पार्टी की ओर से सांसदों को नोटबंदी के बारे में अपने-अपने क्षेत्रों से फीडबैक देने को कहा जा रहा है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने नोटों की सीमित सप्लाई और एटीएम में घंटों लाईन पर खड़े लोगों की दिक्कतों के बारे में खुद फीडबैक लेना शुरू किया है। पार्टी के एक सांसद ने स्वीकार किया कि पार्टी नेतृत्व की ओर से इस तरह की कसरत नोटबंदी के साथ ही आंरभ कर देनी चाहिए थी लेकिन पांच सप्ताह से भी ज्यादा वक्त बीतने के बाद पानी लोगों के सिर से पानी गुजर चुका है। यूपी के एक सांसद ने निजी बातचीत में स्वीकार किया है कि इतने बड़े राज्य जहां चुनाव सामने है और नोटबंदी से परेशान लोगों के गुस्से का सामना करना हमारे लिए मुश्किल काम हो चुका है।
सांसदों व राज्यों से दिल्ली आ रहे पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक करके अमित शाह उन मुद्दों की फेहरिस्त तैयार कर रहे हैं जिन पर सरकार को तत्काल हालात सुधारने के कदमों से रूबरू कराया जाएगा। 6-7 जनवरी को दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई जिसमें पांच प्रदेशों की चुनावी रणनीति पर चर्चा होनी है। हालांकि पार्टी के भीतरी सूत्रों का मानना है कि एक दिन पूरी चर्चा नोटबंदी के सवाल पर हो सकती है।
इस बीच संघ व खुफिया एजेंसियों की ओर से मोदी सरकार को पिछले एक सप्ताह से दिया जा रहा फीडबैक चिंता पैदा कर देने वाला है। संघ की सबसे बड़ी चिंता आगामी 1 जनवरी के बाद पैदा होने वाले संभावित हालात को लेकर हैं। भाजपा व संघ के जो कार्यकर्ता नोटबंदी के समर्थन में खुलकर लोगों के बीच कुछ दिन तक इस कदम को कालेधन व भ्रष्टाचार खत्म करने का सबसे बड़ा कदम बता रहे थे, एक माह बीतने के बाद भी जब खुद ही परिवार चलाने के लिए नकदी का संकट झेल रहे हैं और उनके अपने कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं तो वे भी अब नोटबंदी को अदूरदर्शी व बिना सोचे समझे उठाया गया घातक कदम बता रहे हैं।
पंजाब व यूपी में भाजपा व एनडीए की चुनावी संभावनाओं पर लगे सवालिया निशानों पर सरकार व पार्टी नेतृत्व को यह भी फीडबैक दिया गया है कि सरकार को राहुल गांधी की इस मांग को मान लेना चाहिए कि कम से कम यूपी व पंजाब में किसानों के कर्ज माफ कर दिए जाने चाहिए।