संदीप अस्थाना
आजमगढ़: आजमगढ़ पुलिस की कार्यशैली पर अंगुलियां उठाई जा रही है। बच्चों की बरामदगी के मामले में फर्जी खुलासों को लेकर पुलिस अपने ही बुने जाल में फंस गयी है। काफी संख्या में बच्चों की बरामदगी के मामले में एक भी व्यक्ति को न दबोचे जाने से पुलिस की किरकिरी हो रही है। हर कोई यह सवाल खड़ा कर रहा है कि अगर इतने बड़े पैमाने पर बच्चों की बरामदगी की गयी है तो इन बच्चों को ले जाने वाले आखिर कौन से लोग थे। यह भी कहा जा रहा है कि कहीं यह मानव तस्करी से जुड़ा हुआ मामला तो नहीं है और इस मामले से जुड़े लोग शासन-सत्ता के लोग तो नहीं हैैं।
आखिर क्या है मामला
यह मामला काफी पेंचीदा है। हुआ यह कि बीते 21जनवरी को आजमगढ़ के पुलिस कप्तान व डीआईजी ने संयुक्त रूप से यहां की शहर कोतवाली में प्रेसवार्ता कर दावा किया पुलिस ने 15 मई 2017 से 15 जनवरी 2018 तक चलाए गए आपरेशन मुस्कान के दौरान 292 ऐसे लापता बच्चे बरामद किए। बरामद बच्चों में सर्वाधिक 38 बच्चेे आजमगढ़ शहर कोतवाली के तथा उसके बाद सर्वाधिक 11 बच्चे रानी की सराय थाना क्षेत्र के थे। इसके अलावा जिले के अन्य सभी थाना क्षेत्रों के 5-7 बच्चे शामिल रहे। दिलचस्प यह रहा कि पुलिस ने बरामद बच्चों की संख्या तो 292 बताई मगर जो सूची पत्रकारों को सौंपी गयी उसमें 202 बच्चों का ही नाम व पता शामिल था। इतना ही नहीं प्रेस वार्ता के दौरान मौजूद बच्चों की संख्या बमुश्किल दो दर्जन ही थी। इन बच्चों के अभिभावक भी मौके पर मौजूद थे। नाटकीय ढंग से बरामद बच्चों को माला पहनाने तथा अपनी बहादुरी के काशीदे पढऩे के बाद इन बच्चों को उनके परिजनों को सौंप दिया गया।
मानव तस्करी का तो नहीं था मामला
एक साथ इतनी बड़ी संख्या में मासूमों की बरामदगी शुभ संकेत कतई नहीं है। एक बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि कहीं यह मानव तस्करी का मामला तो नहीं है। इस संभावना को देखते हुए पुलिस को यह मामला गंभीरता के साथ लेना चाहिए था और इसकी गहराई से जांच करानी चाहिए थी। वजह यह कि यदि यह वास्तव में मानव तस्करी का मामला होगा तो पकड़ में न आने वाले गुनहगारों के हौसले बुलन्द होंगे और वह आगे भी इस तरह के कारनामों को अंजाम देंगे। ऐसी स्थिति में इस मामले की व्यापक जांच व गुनहगारों को जेल की सींखचों के पीछे पहुंचाना जरूरी ही नहीं बल्कि मानवता के भी हित में है।
कहीं कद्दावर लोगों का हाथ तो नहीं
मानव तस्करी के इस संभावित मामले में शासन-सत्ता से जुड़े कद्दावर लोगों का हाथ तो नहीं है। इस संभावना से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है। इसकी वजह यह कि जिस नाटकीय ढंग से पुलिस ने इतनी बड़ी संख्या में मासूमों की बरामदगी दिखाई उसमें एक भी आरोपी नहीं दबोचा गया। कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि यदि इस मामले में मामूली गुर्गा भी दबोच लिया गया होता तो वह अपने आका का कहीं न कहीं नाम जरूर ले लेता। शासन-सत्ता से जुड़े उसी आका को बचाने के लिए ही निश्चित रूप से पुलिस बैकफुट पर आई होगी। इस मामले में पुलिस को तत्काल अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए ताकि आम आदमी के अंदर कानून व्यवस्था के प्रति विश्वास पैदा हो सके। इसके विपरीत पुलिस प्रशासन इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है। नीचे से लेकर महकमे के आला हाकिम तक इस बाबत कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।
पुलिसिया कहानी के संदिग्ध होने के कई कारण
पुलिसिया कहानी के संदिग्ध होने के कई कारण हैं। पहला कारण यह कि बरामद बच्चों में सबसे छोटा बिलरियागंज थाना क्षेत्र का चार वर्षीय निखिल प्रजापति रहा। उस बच्चे से पूछे जाने पर सच्चाई यह सामने आई कि उसके माता-पिता में विवाद हो गया था। ऐसी स्थिति में वह अपनी मां के साथ चला गया था। पिता की ओर से पुलिस में यह शिकायत की गयी थी कि उनका बेटा लापता हो गया है। इस बच्चे की बरामदगी के मामले में पुलिस यह कहानी छुपाती नजर आई।
इसके पीछे पुलिस की सोच यह रही कि कहीं उसकी बहादुरी की पोल-पट्टी न खुल जाए। इस खुलासे को संदिग्ध कहे जाने की सबसे बड़ी वजह किसी भी आरोपी का न दबोचा जाना है। जबकि कई लापता बच्चों के अभिभावकों ने यह आरोप लगाया था कि उनके बच्चे को बहला फुसलाकर ले जाया गया है। कुछ अभिभावकों ने इसके पीछे अपने रिश्तेदारों व गांववालों का भी हाथ बताया था। बावजूद इसके उनके खिलाफ पुलिस ने कोई भी कार्रवाई नहीं की। ऐसे में पुलिस पर अंगुलियां उठना स्वाभाविक ही है।
योगी सरकार फर्जी खुलासे के खिलाफ
यूपी की योगी सरकार फर्जी खुलासों के खिलाफ है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह कि जब इसी 4 जनवरी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आजमगढ़ जिले की सठियांव चीनी मिल पर असवानी प्लांट का लोकार्पण करने के लिए आए तो आजमगढ़ में अपराध नियंत्रण व यहां हुए अपराधियों के इनकाउंटर पर पुलिस को शाबाशी देने के लिए पुलिस कप्तान अजय साहनी को अपने साथ हेलीकाप्टर में बैठाकर हिन्दू युवा वाहिनी के दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि देने जीयनपुर गए। यहां उन्होंने आजमगढ़ पुलिस की बेहतर कार्यशैली के लिए सराहना की। यहां से वे सीधे वाराणसी गए थे और वहां हुए फर्जी खुलासों के लिए वाराणसी पुलिस को जमकर फटकार लगायी।
वहां पर पुलिस खुलासों के फर्जीवाड़े का यह आलम था कि अधिकांश खुलासों में आरोपी नहीं दबोचे गए थे। योगी ने खुद इस बात को माना कि आखिर यह किस तरह का खुलासा है कि आरोपी नहीं दबोचा गया है। अब जबकि आजमगढ़ जिले के इतने बड़े मामले जिसमें 292 लापता मासूम बरामद किए गए हों और एक भी आरोपी न दबोचा गया हो तो फर्जीवाड़ा नहीं तो उसे और क्या कहा जा सकता है। सबसे दिलचस्प बात यह होगी कि फर्जी खुलासों के लिए वाराणसी पुलिस को फटकारने वाली योगी सरकार इस मुद्दे पर आजमगढ़ पुलिस के साथ किस तरह का व्यवहार करती है।