जानिए 'मॉब लिंचिंग' का इतिहास, 23 बातें जो सिहरन पैदा कर देंगी
विगत कुछ दशकों में लिंचिंग की घटनाओं का भारत स्वयं भुक्तभोगी बन गया है। लिंचिंग की घटनाएं आज देश में बेरोक-टोक जारी हैं। इस तरह के अपराधियों के खिलाफ सरकार के पास अलग से कोई कानून नहीं है।
नई दिल्ली : देश में इस समय 'मॉब लिंचिंग' शब्द चौराहों, चौपालों से लेकर संसद तक सुना जा सकता है। भीड़ द्वारा मौत की सजा के लिए इस्तेमाल किए जा रहे 'मॉब लिंचिंग' के बारे में आज हम आपको सबकुछ बताने जा रहे हैं।
ये भी देखें : आईसीसी की सालाना बैठक आज, इस टीम पर लग सकता है प्रतिबंध
- 'लिंचिंग' शब्द विलियम लिंच के साथ जुड़ा है।
- कैप्टन विलियम लिंच का जन्म 1742 में वर्जिनिया में हुआ था और मौत 1820 में।
- विलियम कैप्टन लिंच ने एक न्यायाधिकरण बना रखा था और उसका वह स्वघोषित जज था।
- विलियम का हर फैसला समाज में उन्माद फैलाने वाला होता था।
- किसी भी आरोपी का पक्ष सुने बगैर व किसी भी न्यायिक प्रक्रिया का पालन किए बिना आरोपी को सरेआम मौत की सजा दे दी जाती थी।
- लिंचिंग का सबसे अधिक शिकार अमेरिका में अफ्रीकी मूल के लोग हुए।
- सन 1882-1968 के बीच 3,500 से अधिक लोग यहां मौत के घाट उतार दिए गए। ये अपने आप में एक रिकार्ड है।
- 'लिंचिंग' शब्द सन 1780 में गढ़ा गया और इसका इस्तेमाल शुरू हुआ था। उस समय लिंचिंग सिर्फ अमेरिका तक सीमित था, पर समय के साथ यह कुप्रथा अन्य देशों में भी फैलती चली गई।
- भारत में 'लिंचिंग' का प्रयोग राजनीतिक हथियार के रूप में होने लगा है।
- विगत कुछ दशकों में लिंचिंग की घटनाओं का भारत स्वयं भुक्तभोगी बन गया है। लिंचिंग की घटनाएं आज देश में बेरोक-टोक जारी हैं। इस तरह के अपराधियों के खिलाफ सरकार के पास अलग से कोई कानून नहीं है।
- अमेरिका ने लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर सन् 1922 में लिंचिंग-रोधी कानून बनाया था।
- भारत में अब तक कई प्रशासनिक अधिकारी व उभरते राजनेता तक लिंचिंग के शिकार बन चुके हैं।
- बिहार में 1985 बैच के आईएएस अधिकारी 35 वर्षीय जी. कृष्णया जो गोपालगंज के तत्कालीन जिला अधिकारी थे, उन्हें उन्मादी भीड़ का शिकार होना पड़ा था। पत्थर मार-मारकर उनकी हत्या 1994 में कर दी गई थी।
- दानापुर के बीजेपी नेता सत्य नारायण सिन्हा की हत्या लाठी पिलावन रैली के दौरान 2003 में कर दी गई थी। यह हत्या भी भीड़ को उकसाने का ही परिणाम था।
- इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 31 अक्टूबर 1984 को देशभर में हजारों सिखों की हत्या कर दी गई। संभवत: भारत में लिंचिंग की यह सबसे बड़ी घटना थी।
- इंदिरा की हत्या से उनके समर्थकों में फूटे आक्रोश का शिकार सिख समुदाय हुआ, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या उनके दो सिख सुरक्षा गार्डो-सतवंत और बेअंत सिंह ने की थी।
- वर्ष 2002 में गुजरात में हुए दंगों में उन्मादियों ने 'मॉब लिंचिंग' के नमूने पेश किए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री को वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री से कहना पड़ा था, "आपने राजधर्म नहीं निभाया।"
- 84 के दंगों में शामिल अपराधियों को आज तक सजा नहीं दी गई है। यह अपने आप में भारतीय न्याय एवं प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है। लिंचिंग की घटनाओं पर जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से प्रश्न पूछा गया था तो उन्होंने कहा था 'जब बड़े पेड़ गिरते हैं तो धरती कांप जाती है।'
- वर्ष 2006 में महाराष्ट्र के भंडारा जिले में लिंचिंग की घटनाएं हुई थीं, जिसे खैरलांगी जनसंहार के नाम से जाना जाता है। यह घटना भी अपने आप में मानवता पर कलंक ही है। इसी साल दुष्कर्म के एक आरोपी को तेलंगाना के निजामाबाद जिले में पत्थर मार-मारकर हत्या कर दी गई थी।
- 2015 में नगालैंड के डिमापुर में लिंचिंग की घटना में एक दुष्कर्म के आरोपी को जेल का गेट तोड़कर 700 लोगों की भीड़ ने बाहर निकालकर निर्वस्त्र कर घसीटते हुए पूरे शहर में घुमाया और लाठी-डंडों से पीटकर उनकी हत्या कर दी।
- सख्त लिंचिंग रोधी कानून के अभाव में व राजनीतिक संरक्षण के चलते अपराधी नियमों का उल्लंघन करने के बावजूद दोषमुक्त हो जाते हैं।
- 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी में एक ओर जहां अखलाक को लिंचिंग का शिकार होना पड़ा, वहीं दूसरी ओर राजस्थान के अलवर में पहले पहलू खान, उसके बाद हाल ही में रकबर को गोरक्षकों के उन्माद का शिकार होना पड़ा।
- हाल के लिंचिंग की घटनाएं भारतीय दर्शन व न्यायिक व्यवस्था पर सवालिया प्रश्न खड़ा कर दिया है। आज की तारीख में कोई भी सभ्य समाज विलियम लिंच की उन्मादी हरकत को स्वीकार नहीं कर सकता। आज इस संसार में विलियम लिंच तो नहीं है, पर उसकी उन्मादी सोच वाले मुट्ठीभर लोग समाज में आज भी उन्माद फैला रहे हैं।
ये भी देखें : वैन ड्राईवर की जल्दबाजी ने दांव पर लगाई स्कूली बच्चों की जिंदगी