भारत-पाकिस्तान को लेकर बनी फिल्में सफलता की गारंटी

Update:2019-01-18 15:34 IST

दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: भारत और पाकिस्तान के बनते-बिगड़ते रिश्तों पर देश में खूब राजनीति हुई है। इन दोनों मुल्कों के तल्ख रिश्तों को प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अच्छा खासा स्पेस मिलता है। इसके साथ ही भारत-पाक को लेकर बनी फिल्मों को भी सफलता की गारंटी माना जाता है। 1947 में देश विभाजन से लेकर अब तक साहित्यकारों और फिल्मकारों का यह प्रिय विषय रहा है। यह हाट विषय अकेले भारतीय फिल्मकारों, कथाकारों और राजनीतिज्ञों को ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी समकक्षों को भी खूब भाता है। मई 2018 में रीलिज हुई फिल्म राजी हो या फिर 1973 में चेतन आनंद द्वारा निर्देशित और राजकुमार, अमरीश पुरी और अमजद खान जैसे दिग्गज कलाकारों द्वारा अभिनित फिल्म हिन्दुस्तान की कसम हो। इन सभी फिल्मों ने सिनामा घरों में दर्शकों को अंत तक बांधे रखा और अच्छी कमाई की।

बॉलीबुड की फिल्मों में पाक और पंजाब

भारत-पाकिस्तान संबंधों पर बनी अधिकांश फिल्मों में पंजाब को केंद्र में रखकर आधी हकीकत और आधे फसाने गढ़े जाते हैं। इसी कथावस्तु के आधार पर इन फिल्मों की शूटिंग भी पंजाब में होती है। चाहे वह भारत-पाक जंग पर आधारित हो या फिर भारत विभाजन पर। वैसे भी देखा जाए तो 1947 में विभाजन के वक्त जो स्थिति पैदा हुई थी उसका दंश बंगाल, गुजरात और राजस्थान ने तो झेला मगर सबसे ज्यादा खामियाजा पंजाब और पंजाब के लोगों ने भुगता। शायद इसी दर्द को फिल्मकारों ने अपने- अपने नजरिए से रूपहले पर्दे पर उतारा।

यह बात दिगर है कि अमृता प्रीतम और खुशवंत सिंह जैसे दिग्गज लेखकों की अमर कृतियों को फिल्मकारों ने मूर्त रूप दिया, चाहे वह ट्रेन टू पाकिस्तान हो या फिर पिंजर। ये दोनों ही भारत विभाजन के वह दस्तावेज हैं जिसे सन 47 के बाद के जन्मे लोग बंटवारे का दंश झेल चुके लोगों की जुबानी या फिर फिल्मों की कहानी में देखते आए हैं। ऐसे में फिल्मकारों के लिए यह जरूरी हो जाता है कि भारत-पाक संबंधों पर बनी फिल्मों की शूटिंग वह पंजाब में करें।

सरहदी जिलों में कई फिल्मों की शूटिंग

देश विभाजन की पृष्टभूमि पर बनी फिल्मों की बात करें तो इनकी लंबी फेहरिस्त है। इनमें प्रमुख फिल्में सनी देयोल अभिनित गदर, मनोज वाजपेयी और उर्मिला मातोडकर अभिनित पिंजर, ट्रेन टू पाकिस्तान, ऋषि कपूर और रेखा अभिनित सदियां और सरबजीत सहित दर्जनों ऐसी फिल्में हैं जिनकी शूटिंग अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर और पठानकोट जिलों में हुई है। ये सभी फिल्में देश विभाजन के बाद उपजी त्रासदी पर आधारित थी। इनमें फिल्मकारों ने दर्शकों को यह बताने या दिखाने की कोशिश की है कि भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद किस तरह लोगों को विस्थापित होकर पाकिस्तान से भारत आना पड़ा था।

गदर और ट्रेन टू पाकिस्तान, दोनों फिल्मों दिखाया गया है कि किस तरह रेलगाडिय़ों पर लोगों की लाशें पाकिस्तान से भारत आ रही हैं। कल तक एक दूसरे का दुखदर्द साझा करने वाले हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे खून के प्यासे हो जाते हैं। वहीं पिंजर में लोगों ने देखा कि देश विभाजन के दौरान एक लडक़ी का धर्म जबरन बदला जाता है। कुछ ऐसा ही रिफ्यूजी में भी दिखाने की कोशिश की गई है। अभिषेक बच्चन द्वारा अभिनित इस फिल्म की भी ज्यादातर शूटिंग पंजाब में ही हुई है। अब हाल ही में सलमान खान द्वारा अभिनित फिल्म भारत की शूटिंग लुधियाना और अमृतसर में हुई है। इस फिल्म में भी भारत विभाजन के दृश्यों को फिल्माया गया है।

दो खेमों में बंटे फिल्मकार

भारत और पाकिस्तान पर राजनीतिज्ञ ही बल्कि फिल्मकार भी दो खेमों में बंटे हुए है। पहला खेमा वह है जो भारत और पाकिस्तान के बीच लड़े गए युद्धों और आतंकवाद पर फिल्में बनाते हैं। वे भारत विभाजन और इसके बाद के उपजे हालात को लेकर फिल्में बनाते हैं। जबकि फिल्मकारों को दूसरा खेमे ने कटुता और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के बीच दर्शकों को प्रेम परोसती फिल्में दिखाने का प्रयास किया है। इन फिल्मों में प्रमुख है- वीरजारा, बजरंगी भाईजान और सदियां। इन सभी फिल्मों में देश विभाजन के बाद भारत-पाकिस्तान में रह रहे लोगों की कसक को दिखाया गया है। इन फिल्मों में यह भी दिखाने का प्रयास किया गया है कि दोनों देशों की संस्कृति एक है। वहां के अवाम के दिलों में भी भारत के प्रति प्रेम पनपता है लेकिन दोनों देशों के बीच खिंची सरहद की लकीर और राजनीति लोगों को मिलने नहीं दे रही।

पाकिस्तानी निर्माता-निर्देशक भी पीछे नहीं

भारतीय फिल्मकारों की तरह पाकिस्तानी फिल्मकार भी दोनों देशों के संबंधों पर फिल्म बनाने में पीछे नहीं हैं। यदि पाकिस्तानी फिल्मों की बात करें तो पाक में बनी फिल्म जिंदा भाग में भारतीय अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने दमदार अभियन किया है। इस फिल्म को 86वें अकादमिक पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था। यह पिछले 50-52 सालों में पाकिस्तान की ओर से अकादमिक पुरस्कारों में जाने वाली पहली फिल्म थी।

इससे पहले भी भारत में पाकिस्तानी फिल्मों का प्रदर्शन होता रहा है। 2008 में पाकिस्तानी निर्देशक शोएब मंसूर की फिल्म खुदा के लिए आई थी। यह पिछले 43 सालों में शायद पहली फिल्म थी जो सरहद के बाहर भारत में प्रदर्शित की गई थी। इसके बाद महरीन जब्बार की फिल्म राम चंदर पाकिस्तानी आई थी। यही नहीं सन 2011 में मंसूर की फिल्म बोल को भी भारती में रीलिज किया गया जिसे भारी सफलता मिली थी। भारत में प्रदर्शित इन सभी फिल्मों में भारत-पाक सरहद पर बसे गांवों के लोगों की परेशानियों को दिखाया गया है जिसमें वे गलती से सीमा पार कर भारत में दाखिल हो जाते है। इन फिल्मों में यह भी दिखाने का प्रयास किया गया है कि दोनों देशों के लोगों की संस्कृति (भारत और पाकिस्तान के पंजाब) और बोलचाल एक जैसी है। बीएसएफ से लेकर जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों, जो रास्ता भटककर भारत आ जाते हैं, के साथ मधुर व्यवहार को दिखाया गया है। इन सभी फिल्मों ने भारत में अच्छी कमाई की है। इसके साथ भारतीय फिल्म बजरंगी भाईजान और वीरजारा ने भी पाक में अच्छी कमाई की थी।

मील के पत्थर साबित हुए उपन्यास

फिल्में और फिल्मकार ही नहीं बल्कि समय-समय पर साहित्यकारों ने भी अपनी लेखनी से कागज के पन्नों पर दुनिया के सबसे बड़े विस्थापन और इस इस दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा व इससे प्रभावित लोगों के दर्द को शब्दों में पिरोया है। इन लेखकों में सहादत हसन मंटो, पंजाबी उपन्यासकार अमृता प्रीतम और प्रसिद्ध पत्रकार खुशवंत सिंह का नाम प्रमुख है। देश विभाजन का दर्द खुद प्रसिद्ध शायर गुलजार और मनोज कुमार जैसे कलाकार झेल चुके हैं।

अमृता प्रीतम का उपन्याय पिंजर और खुशवंत सिंह का ट्रेन टू पाकिस्तान काफी चर्चित हुआ। वहीं मंटो ने भारत-पाक विभाजन पर दर्जनों कहानियां लिखी हैं, जिनमें भारत विभाजन को लेकर उनका दर्द साफ महसूस किया जा सकता है। उनकी कहानियों में टोबा टेक सिंह, ठंडा गोश्त आदि प्रसिद्ध हैं। यह बात दिगर है कि पाकिस्तानी सरकार गाहे-बगाहे भारतीय फिल्मों के पाकिस्तान में प्रदर्शन पर रोक लगाती रहती है, फिर भी वहां पर शाहरुख खान, आमिर और सलमान खान के चाहने वालों की पाक में संख्या बहुत अधिक है। भारतीय फिल्मों और उसके एक्टरों की दीवानगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिसंबर के अंतिम सप्ताह में एक पाकिस्तानी कैदी को करीब 7 साल बाद रिहाई मिली क्योंकि वह शाहरुख खान से मिलने अवैध रूप से सीमा पार कर भारत चला आया था, लेकिन उसकी हसरत अधूरी ही रही।

भारत विभाजन पर बनी फिल्में हमेशा सफल होंगी

पंजाबी फिल्मों के निर्माता, निर्देशक और अभिनेता हरिदंर सोहल कहते हैं कि देश विभाजन एक बहुत बड़ी भूल थी। इसमें दस लाख से अधिक लोगों को अपना सबकुछ छोड़ कर उधर से इधर आना पड़ा था। यही नहीं हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इस त्रासदी को नई पीढ़ी केवल किताबों में पढ़ती है, जिसे फिल्मकार पर्दे पर सजीव करते हैं। यह एक ऐसा विषय है जिस पर बनी फिल्में हर समय काल में सफल होंगी। चाहे वह किसी भी कथावस्तु पर बनी हों। वह कहते हैं कि हिंदी नहीं पंजाबी में भी भारत विभाजन पर करीब दस साल पहले फिल्म बाघा बनी थी। उल्लेखनीय है कि बाघा पाकिस्तान में स्थित एक छोटा सा गांव हैं और भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा का नाम भी पहले बाघा था, जिसे अब अटारी बार्डर के नाम से जाना जाता है।

भारत-पाकिस्तान के तल्ख रिश्तों पर बनीं सफल फिल्में

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों, लक्ष्य, जेपी दत्ता द्वारा निर्देशित बार्डर और एलओसी कारगिल, फैटम, हिंदुस्तान की कसम (नई और पुरानी) और द हीरो। इसके अलावा भारतीय जासूसों जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए लंबे समय तक पाकिस्तान में जासूसी की है के जिवन आधारित कुछ चुनिंदा फिल्मों की बात करें तो सलमान खान अभिनित एक था टाईगर, टाईगर अभी जिंदा और अब पिछले साल रीलिज हुई आलिया भट्ट अभिनित राजी थी। यदि फिल्मों की कमाई की बात करें तो गदर ने तब 77 करोड़, कश्मीर में पकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर बनी फिल्म द हीरो ने 26 करोड़ और हरेंद्र सिक्थ के उपन्यास कालिंग सहमत पर बनी फिल्म राजी जिसमें दिखाया गया है कि 1971 के भारत-पाक जंग में एक युवा लडक़ी जो भारत की कवर एजेंट थी और देश के लिए किस तरह से पाकिस्तान में जासूसी करती है। इस फिल्म दोनों देशों के संबंधों पर फिल्मों की सफलता सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 122 करोड की कमाई की थी जो बॉक्स ऑफिस पर सफल मानी गई।

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