नहीं होगा पानी के लिए वर्ल्ड वॉर, ये मशीन वो करती है जो आपने सोचा भी ना होगा

जल को लेकर विभिन्न प्रांतों और देशों में तकरार होता ही रहता है, ऐसे में कोलकाता की कंपनी एकेवीओ ने नवाचार के क्षेत्र में पहल करते हुए पानी की समस्या को हल करने की पहल की है।;

Update:2017-10-31 04:29 IST
नहीं होगा पानी के लिए वर्ल्ड वॉर, ये मशीन वो करती है जो आपने सोचा भी ना होगा
नहीं होगा पानी के लिए वर्ल्ड वॉर, ये मशीन वो करती है जो आपने सोचा भी ना होगा
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नई दिल्ली : जल को लेकर विभिन्न प्रांतों और देशों में तकरार होता ही रहता है, ऐसे में कोलकाता की कंपनी एकेवीओ ने नवाचार के क्षेत्र में पहल करते हुए पानी की समस्या को हल करने की पहल की है। कंपनी ने हवा की नमी से पानी बनाने वाली मशीन लांच की है।

ऐसे में, जब कहा जा रहा हो कि तीसरा विश्वयुद्ध अगर हुआ तो पानी को लेकर होगा, ऐसे में एकेवीओ ने अभी शुरुआती तौर पर व्यावसायिक उपयोग के लिए 500 लीटर और 1000 लीटर क्षमता की मशीनें लांच की गई हैं। 1000 लीटर पानी बनाने वाली मशीन की कीमत करीब साढ़े नौ लाख रुपए होगी।

एकेवीओ के निदेशक नवकरण सिंह बग्गा ने कहा, "हवा से पानी बनाने की मशीन बनाने वाली एकेवीओ देश की पहली स्वदेशी कंपनी है। देश में कुछ कंपनियां इस क्षेत्र में कार्य कर रही हैं, लेकिन वे बाहर से मशीनें मंगाती हैं। ऐसे में उनकी लागत ज्यादा हो जाती है। हमने शोध एवं अनुसंधान पर फिलहाल ढाई करोड़ रुपये खर्च किए हैं और इस मशीन का विकास किया है।"

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उन्होंने कहा कि बाहर की कंपनियों की मशीनों की तुलना में एकेवीओ मशीन पानी उत्पादन के लिए 50 फीसदी कम बिजली खपत करती हैं। उन्होंने कहा, "हम पीएम मोदी की मेक इन इंडिया पहल का समर्थन करते हुए अनूठी परियोजना लेकर आए हैं, जिससे जलसंकट का निदान भी हो सकता है।"

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बग्गा ने कहा, "अगले दो साल में इस परियोजना पर हम 10 करोड़ रुपये खर्च करेंगे। हम जल्द ही घरेलू उपयोग के लिए ऐसी मशीन लांच करने की तैयारी कर रहे हैं। घरेलू उपयोग के लिए हम 40 लीटर और 100 लीटर प्रतिदिन पानी बनाने वाली मशीन लांच करेंगे। इनकी कीमत क्रमश: 35 हजार रुपये और 70 हजार रुपये होगी।"

बग्गा ने कहा, "दुनियाभर में भूजल स्तर नीचे जा रहा है, पानी की किल्लत बढ़ती जा रही है। आज प्रांतों और शहरों में जलस्तर काफी नीचे चला गया है और भूजल के दोहन पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। ऐसे में हवा से पानी बनाने की मशीन काफी उपयोगी साबित हो सकती है। वर्ष 2030 तक केवल 60 फीसदी पानी उपयोग के लिए रहेगी। ऐसे में हमें पर्यावरण के प्रति जागरूक होने की जरूरत है।"

--आईएएनएस

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