मेघालय HC की टिप्पणी, आजादी के समय ही भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था
मेघालय हाईकोर्ट ने पीआरसी (स्थायी निवासी प्रमाणपत्र) को लेकर एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की है। मेघालय हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री, विधि मंत्री, गृह मंत्री और संसद से एक कानून लाने का अनुरोध किया है ताकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जयंतिया और गारो लोगों को बिना किसी सवाल या दस्तावेजों के नागरिकता मिले।
नई दिल्ली: मेघालय हाईकोर्ट ने पीआरसी (स्थायी निवासी प्रमाणपत्र) को लेकर एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की है। मेघालय हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री, विधि मंत्री, गृह मंत्री और संसद से एक कानून लाने का अनुरोध किया है ताकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जयंतिया और गारो लोगों को बिना किसी सवाल या दस्तावेजों के नागरिकता मिले।कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी लिखा है कि विभाजन के समय भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था लेकिन ये धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहा।
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जस्टिस एसआर सेन ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट से मना किये जाने पर अमन राणा नाम के एक शख्स द्वारा दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए 37 पृष्ठ का फैसला दिया। आदेश की प्रति मंगलवार को उपलब्ध हुई।
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कोर्ट के फैसले में जस्टिस एसआर सेन ने कहा कि उक्त तीनों पड़ोसी में उपरोक्त लोग आज भी प्रताणित हो रहे हैं और उन्हें सामाजिक सम्मान भी प्राप्त नहीं हो रहा है। कोर्ट ने कहा कि इन लोगों को कभी भी देश में आने की अनुमति दी जाए। सरकार इन्हें पुनर्वासित कर सकती है और भारत का नागरिक घोषित कर सकती है।
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सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भारतीय इतिहास को उल्लेखित करते हुए कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश था। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान का कोई वजूद नहीं था। ये सब देश एक थे और इन पर हिंदू साम्राज्य का शासन था। कोर्ट ने कहा कि मुगल जब यहां आए तो उन्होंने भारत के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया। इसी दौरान बड़ी संख्या में घर्म परिवर्तन हुए। इसके बाद अंग्रेज यहां आए और शासन करने लगे।
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भारत-पाक विभाजन के इतिहास के बारे में कोर्ट ने फैसले में लिखा कि यह एक अविवादित तथ्य है कि विभाजन के वक्त लाखों की संख्या में हिंदू व सिख मारे गए थे। उन्हें प्रताणित किया गया था और महिलाओं का यौन शोषण किया गया थ। कोर्ट ने लिखा कि भारत का विभाजन ही धर्म के आधार पर हुआ था। पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित कर दिया था। ऐसे में भारत को भी हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था, लेकिन इसे धर्मनिरपेक्ष बनाए रखा गया।
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बता दें कि केंद्र के नागरिकता संसोधन विधेयक 2016 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग छह साल भारत में रहने के बाद भारतीय नागरिकता के हकदार हैं। लेकिन अदालत के आदेश में इस विधेयक का जिक्र नहीं है।
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जस्टिस एसआर सेन ने मेघालय उच्च न्यायालय में केंद्र की सहायक सॉलिसीटर जनरल ए. पॉल को मंगलवार तक फैसले की प्रति प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह और विधि मंत्री को अवलोकन के लिए सौंपने और समुदायों के हितों की रक्षा के लिए कानून लाने को लेकर आवश्यक कदम उठाने को कहा है।