नई दिल्ली: ‘नन ऑफ द अबव’ अर्थात नोटा की देश में निर्वाचन के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव के रूप में शुरुआत सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुई जिसमें मतदाता को सर्वोपरि रखते हुए निर्वाचन आयोग को चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के अंत में एक विकल्प नोटा का रखने को कहा गया था। 27 सितम्बर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को मतपत्र/इवीएम में आवश्यक प्रावधान करने के लिए निर्देश दिए थे। नोटा का मतलब है कि इनमें से कोई नहीं। इसका उद्देश्य था कि मतदान केंद्र पर आने वाला कोई भी मतदाता यदि किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने का निर्णय लेता है तो वह गोपनीयता के अपने अधिकार को बनाए रखते हुए इस अधिकार का प्रयोग कर पाए।
2013 से नोटा बटन के प्रावधान को छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में लागू किया गया। एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच ने 2013 से नोटा को प्राप्त वोटों की संख्या का विश्लेषण करके कुछ चौंकाने वाले नतीजे दिए हैं जिसका साफ संदेश है कि चार खराब उम्मीदवारों में से किसी एक को चुनना मतदाता की बाध्यता नहीं है। उन चारों को खारिज करने की शक्ति उसी में निहित है। यदि बहुमत नोटा का हो जाए और सारे प्रत्याशी हार जाएं तो चुनाव खारिज भी हो सकता है।
1.33 करोड़ मतदाता दबा चुके हैं नोटा का बटन
मतदाताओं ने इस अधिकार का कितना अधिक स्वागत किया है, यह बात साल दर साल नोटा में मिले मतों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 सालों में नोटा को विधानसभा और लोकसभा में कुल मिलाकर 1,33,09,577 (1.33 करोड़) वोट मिले हैं। पिछले 5 सालों में विधानसभा चुनावों में नोटा को औसतन 2,70,616 (2.70 लाख) वोट मिले हैं। हाल ही में गोवा, दिल्ली और आंध्र प्रदेश में हुए उपचुनावों में नोटा में बड़ी संख्या में वोट पड़े हैं। नोटा इन सभी क्षेत्रों में वोटों की संख्या के अनुसार तीसरे या चौथे स्थान पर रहा। 2017 में गोवा के पणजी एंव वालपोई निर्वाचन क्षेत्रों में हुए उपचुनाव में नोटा 301 (1.94 प्रतिशत) और 458 (1.99 प्रतिशत) वोटों के साथ दोनों क्षेत्रों में तीसरे स्थान पर रहा। जबकि2017 में दिल्ली के बवाना निर्वाचन क्षेत्र में हुए उपचुनाव में नोटा को 1,413 (1.07 प्रतिशत) वोट प्राप्त हुए। 2017 में आंध्र प्रदेश के नंदयाल निर्वाचन क्षेत्र में हुए उपचुनाव में नोटा 1,231 (0.71 प्रतिशत) वोट प्राप्त करके चौथे स्थान पर रहा। यही नहीं इस निर्वाचन क्षेत्र में नोटा में 12 दूसरे उम्मीदवारों से अधिक वोट पड़े।
पिछले 5 सालों के विधानसभा चुनावों में नोटा को सर्वाधिक वोट यानी 17,510 वोट महाराष्ट्र के गडचिरोली निर्वाचन क्षेत्र में मिले, वहीं सबसे कम संख्या में वोट यानी मात्र 7 वोट अरुणाचल प्रदेश के मरियांग गेकु निर्वाचन क्षेत्र में मिले। अरुणाचल प्रदेश के कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में जैसे मुक्तो, दिरांग, पश्चिम सेप्पा, पक्के कसांग, दोईमुख, सगली, पालिन, नैपिन, नाचो, तलीहा और मेबो में नोटा ने कोई वोट हासिल नहीं किया। संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्र वे हैं जहां 3 या 3 से अधिक ऐसे उम्मीदवार हैं जिन्होंने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। नोटा ने 2013 विधानसभा चुनाव में संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्र में 22,94,904 (22.94 लाख) वोट हासिल किए थे।
नोटा ने छत्तीसगढ़ के संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्र में सर्वाधिक वोट हासिल किए। नोटा ने छत्तीसगढ़ के 10 संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्रों में 2.68 प्रतिशत (39,896 वोट) हासिल किए थे। दिल्ली एवं महाराष्ट्र के नगर निगम चुनावों में नोटा को सर्वाधिक वोट 4.58 प्रतिशत महाराष्ट्र के उल्लासनगर नगर निगम चुनाव में और सबसे कम वोट 0.58 प्रतिशत पूर्व दिल्ली नगर निगम चुनाव में मिले। दिल्ली नगर निगम चुनाव 2017 में नोटा को 49,235 वोट मिले, जिसमें उत्तरी क्षेत्र में नोटा को सर्वाधिक 19762 वोट मिले। महाराष्ट्र के प्रत्येक नगर निगम में नोटा ने 1.5 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त किए।
क्या कहना है एडीआर का
यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में नोटा को चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों से अधिक वोट मिलते है तो वहां ये कदम उठाए जाने चाहिए। किसी भी उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित नहीं करना चाहिए। पुन: चुनावों का आयोजन किया जाना चाहिए, जिसमें पहले के उम्मीदवारों में से किसी को भी चुनाव लडऩे की अनुमति नहीं देनी चाहिए और पुन: आयोजित चुनाव में केवल उस उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित करना चाहिए जिसने 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त किए हों।
2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार नोटा का प्रयोग
2014 में पहली बार नोटा का प्रयोग लोकसभा चुनाव में किया गया जिसमें कुल मिलाकर नोटा को 60,02,942 (1.08 प्रतिशत) वोट मिले। लोकसभा में सर्वाधिक वोट नोटा को तमिलनाडु के नीलगिरि निर्वाचन क्षेत्र (46,559 वोट) में मिले थे। नोटा को सबसे कम संख्या में वोट अर्थात 123 वोट लक्षद्वीप में मिले थे। विधानसभा चुनावों में नोटा के अन्तर्गत सर्वाधिक वोटों का प्रतिशत 2015 में था, जिसमें 2 राज्यों के विधानसभा चुनाव में 2.08 प्रतिशत (9,83,176 वोट) मिले थे। बिहार में (9,47,279 वोट) और दिल्ली में (35,897 वोट) मिले थे। नोटा का सबसे कम वोटों का प्रतिशत 2014 में था।
आठ राज्यों के विधानसभा चुनावों में 0.91 प्रतिशत (14,10,644 वोट) मिले थे, जिसमें आंध्र प्रदेश में (3,08,286 वोट), अरुणाचल प्रदेश में (5,322 वोट), हरियाणा में (53,613 वोट), जम्मू और कश्मीर में (49,129 वोट), झारखंड में (2,35,039 वोट), महाराष्ट्र में (4,83,459 वोट), ओडिशा में (2,71,336 वोट) और सिक्किम में (4,460 वोट) मिले थे। नोटा को सर्वाधिक संख्या में वोट (9,47,279 वोट) बिहार विधानसभा चुनाव 2015 एवं सबसे कम संख्या में वोट (3,810 वोट) मिजोरम विधानसभा चुनाव 2013 में मिले। पिछले 5 सालों में नोटा का सर्वाधिक वोट शेयर यानी 3.06 प्रतिशत 2013 छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में था। पिछले 5 सालों में नोटा का न्यूनतम वोट शेयर यानी 0.40 प्रतिशत 2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव में था।