One Nation One Election: एक देश एक चुनाव - लाभ अनेक

One Nation One Election: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में वर्ष 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते रहे हैं उस समय संपूर्ण भरत मे कांग्रेस व उसके समर्थित दलों की सरकारें ही राज्य विधानसभाओें में हुआ करती थीं।

Report :  Mrityunjay Dixit
Update:2024-09-21 22:34 IST

One Nation One Election (Pic:Newstrack)

One Nation One Election: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तीसरी पारी में राष्ट्रहित के संकल्पों को पूर्ण करने के लिए लगातार आगे बढ़ रहे हैं, इसी कड़ी के अंतर्गत उन्होंने बहु प्रतीक्षित “एक देश -एक चुनाव” का संकल्प पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण पहल कर दी है। लगातार तीसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के 100 दिन पूर्ण होने के अवसर पर मोदी कैबिनेट ने, “एक देश एक चुनाव” पर उठ रहे प्रश्नों पर विराम लगा दिया है। इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से अपना सन्देश देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने “एक देश एक चुनाव“ पर आगे बढ़ने के संकेत दिये थे और अब कैबिनेट ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समिति की अनुशंसा को मंजूरी प्रदान कर दी है।

एक देश एक चुनाव, परिकल्पना को कैबिनेट की मंजूरी प्राप्त हो जाने के बाद राजनैतिक दलों के बीच सहमति बनाने की जिम्मेदारी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, किरन रिजिजू व कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को दी गई है। एक देश एक चुनाव को लेकर गठित समिति ने इस विषय पर सभी प्रमुख राजनैतिक दलों से विचार विमर्श किया था जिनमें 32 राजनैतिक दल इसके समर्थन में और 15 विरोध में थे। अब इस बात की प्रबल संभावना बन गई है कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस हेतु आवश्यक संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किये जाएंगे और ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने इन सभी विधेयको को पारित करवाने के लिए प्रबंध भी लगभग कर लिया है।


स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में वर्ष 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते रहे हैं उस समय संपूर्ण भरत मे कांग्रेस व उसके समर्थित दलों की सरकारें ही राज्य विधानसभाओें में हुआ करती थीं। चुनाव आयोग ने वर्ष 1982 में फिर उसके बाद जस्टिस बी. बी. जीवन की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने एक देश एक चुनाव की सिफारिश की थी। वर्ष 2018 में जस्टिस बी एस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने एक ड्राफ्ट रिपोर्ट में एक साथ चुनाव की बात करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 83, 85,172, 174 और 356 में संशोधन करने होंगे। वर्ष 2015 में संसद की स्थायी समिति ने भी दो चरणों में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव कराने की सिफारिश की थी।


राजनैतिक दृष्टिकोण से यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि कांग्रेस पूर्वज पहले तो एक देश एक चुनाव का समर्थन कर रहे थे किंतु जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाया है और उसे लागू करने के लिए पूर्णता की ओर बढ़ रही है तब से कांग्रेस व उसके सहयोगी दल जिन्होंने इंडी गठबंधन बनाया है एक देश एक चुनाव की व्यवस्था का विरोध करने लगे हैं। सभी राजनैतिक दलों का मानना है कि भारत में एक देश एक चुनाव की व्यवस्था अलोकतांत्रिक,असंवैधानिक तथा असंभव है। कई नेता इसे प्रधानमंत्री व भाजपा सरकार का मात्र एक शिगूफा कह रहे हैं । एक देश एक चुनाव की नीति का क्षेत्रीय दलों द्वारा विरोध किए जाने का एक बड़ा कारण यह भी है कि उन्हें आशंका है कि भारत में यह प्रणाली लागू हो जाने के बाद उनका अस्त्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। भारत में कई दलों का अस्तित्व बार बार होने वाले चुनावों के कारण ही संभव है।


वर्ष 1967 के बाद कतिपय राजनैतिक कारणों से कई विधानसभाओं को भंग करना पड़ा और फिर बीच में लम्बे समय तक केंद्र व राज्यों की राजनीति में अस्थिरता का वातावरण रहा । वर्तमान समय में भारत में दो लोकसभा चुनावों के बीच पांच सालों में कहीं न कहीं विधानसभा चुनाव होते रहते हैं जिसके कारण बार- बार आचार संहिता लगती है और जनहित व विकास के कार्यक्रम प्रभावित होते हैं। भारत में नगर निगम, नगर निकाय और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी हर वर्ष, हर माह कहीं न कहीं होते ही रहते हैं और बीच- बीच में उपचुनाव भी आते रहते हैं और विकास कार्यों को बाधित करते हैं। बार -बार चुनाव होने के कारण राजनैतिक दलों व नेताओं का खर्च भी भी बहुत बढ़ा रहता है जिसके कारण आर्थिक भ्रष्टाचार को बल मिल मिलता है। राजनैतिक दलों के नेता व उनके सामर्थक अपने समाज व मतदाताओ को लुभाने के लिए अनाप -शनाप बयानबाजी करते हैं जिसके कारण सामाजिक वातावरण दूषित होता है। धार्मिक वैमनस्यता भी गहराती है।


बार- बार चुनाव होने के कारण आदर्श आचार संहिता लागू होती है जिसके कारण सरकार आवश्यक नीतिगत निर्णय नहीं ले पाती और विभिन्न योजनाओं को लागू करने में समस्या आती है। यदि देश में एक ही बार में लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराये जायें तो आदर्श आचार संहिता कुछ ही समय तक लागू रहेगी।एक देश एक चुनाव की व्यवस्था लागू हो जाने के बाद चुनावों में होने वाले भारी खर्च में कमी आयेगी। इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में सहायता मिलेगी।एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाबलों को बार -बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। देश में एक साथ चुनाव कराये जाने से देश की जीडीपी में लगभग 1.5 प्रतिशत वृद्धि का भी अनुमान लगाया जा रहा है। आर्थिक विशेषज्ञों का मत है कि “एक देश एक चुनाव से ” सरकारें सही मायने में कम से कम साढ़े चार वर्ष विकास कार्य करा पायेंगी। अभी लगातार अलग -अलग होने वाले चुनावों और आचार संहिता के कारण सरकारों के हाथ 12 -15 महीने बंधे रहते हैं।


एक देश -एक चुनाव पर रामनाथ कोविंद समिति ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं जिसके अंतर्गत यह योजना देश में दो चरणों में लागू की जायेगी। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव करायें जायें और दूसरे चरण में नगरीय निकायों और पंचायतों के चुनाव कराये जायें लेकिन इन्हें पहले चरण के 100 दिन के भीतर ही कराया जाये । लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होते ही राज्यों की विधानसभा का चुनाव कराया जाये अगर किसी विधानसभा का चुनाव अपरिहार्य कारणों से एक साथ नहीं हो पाता है तो बाद की तिथि में होगा किंतु कार्यकाल उसी दिन समाप्त होगा। यदि किसी राज्य की विधानसभा बीच में ही भंग हो जाती है तो नया चुनाव विधानसभा के बाकी के कार्यकाल के लिए ही कराया जाये। सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची तैयार की जाये।


इसे अमल में लाने के लिए एक कार्यान्व्यन समूह का गठन किया जाये।कोविंद समिति ने 18 संविधान संशोधनों की सिफारिश भी की है जिसमें से अधिकांश में राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन की जरूरत नहीं होगी जबकि समान मतदाता सूची और समान मतदाता पहचान पत्र से जुड़े कुछ प्रस्तावित बदलावों के लिए आधे राज्यों द्वारा अनुमोदन की जरूरत होगी। मोदी सरकार का दावा है कि समिति की परामर्श प्रक्रिया के दौरान 80 प्रतिशत युवा एक देश व एक चुनाव का समर्थन किया था। वर्तमान में विपक्ष केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनकी नीतियों का विरोध करने के लिए ही एक देश -एक चुनाव को लोकतंत्र व संविधान विरोधी बता रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1951 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते ही रहे हैं औैर तब कांग्रेस का ही युग था अतः कांग्रेस को यह भी स्पष्ट करना होगा कि तब देश में क्या संविधान विरोधी सरकार चल रही थी ? उचित तो यही है की सभी विरोधी दलों को एक साथ आकर उन विषयों का समर्थन करना चाहिए जो एक राष्ट्र के रूप में भारत के हित में है और जो भारत को विकसित राष्ट्र की दिशा में आगे बढ़ने में सहायक हैं । 

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