शिशिर कुमार सिन्हा
पटना: भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाईटेड के बीच अब जदयू कोटे के केंद्रीय मंत्रियों पर कुछ न कुछ बात जरूर बन जाएगी। जदयू भी अब इसे जरूरी मान रहा है और भाजपा तो मनाने का प्रयास कर ही रही है। नीतीश के कानों तक अपने सांसदों की आवाज भी पहुंच रही है, जो केंद्र में कुर्सी का इंतजार करते-करते अब बेसब्र हो रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा की अलग-अलग मोर्चे पर तैयारी है, लेकिन दोनों ही दलों को बीच-बीच में ऐसा लगता है कि एक-दूसरे के बगैर चुनाव में उतरना ठीक नहीं। यही कारण है कि अब जदयू के अंदर भी केंद्र की सत्ता में शामिल होने की बेचैनी दिख रही है।
दरअसल, लोकसभा चुनाव परिणाम में बिहार की 40 में से 39 सीटों पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जीत के साथ ही यह सवाल उठ खड़ा हुआ था कि भाजपा अपने सहयोगी दलों को उनकी इच्छा मुताबिक मंत्री पद देगी या नहीं। भाजपा और जदयू ने बिहार में 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि लोजपा ने 6 सीटों पर किस्मत आजमाई थी।
इनमें से सिर्फ जदयू खाते की एक सीट राजग के हिस्से नहीं आई थी। बड़ी जीत के बाद भाजपा की नीति को लेकर जदयू को जो आशंका थी, वह सच साबित हुई। जदयू से भाजपा ने लोजपा की तरह व्यवहार करना शुरू किया, जिससे खफा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में जदयू के शामिल नहीं होने की घोषणा कर दी। मुंह दिखाने भर का प्रतिनिधित्व जदयू नहीं चाह रहा था और नीतीश ने पटना आकर यह बात खुलेआम कह भी दी। इसके बाद से बीच-बीच में कई बार ऐसे मौके आते रहे, जब लगा कि जदयू और भाजपा की राह अलग हो सकती है।
विधानसभा चुनाव को लेकर जदयू जहां ग्राम-पंचायतों में खुद को मजबूत कर रहा है, वहीं भाजपा ने सदस्यता अभियान के जरिए खुद को बिहार में नंबर वन बनाने में पूरी ताकत झोंक दी। बीच-बीच में भाजपा की ओर से नीतीश को मनाए जाने की बातें भी आईं, लेकिन बात नहीं बनी। बहरहाल, अब सीन कुछ बदला-बदला नजर आ रहा है क्योंकि इस बार आवाज जदयू के अंदर से आ रही है।
जदयू के टिकट पर कई ऐसे नेता सांसद बने हैं, जो बिहार में ओहदेदार मंत्री हुआ करते थे। मंत्रीपद से दूर रहना इनके लिए मुश्किल रहा है। ऐसे कुछ नेता अब नीतीश को भाजपा के साथ समझौते की सीख भी दे रहे हैं।
संसदीय चुनाव के लिए बिहार सरकार का मंत्री पद छोडऩे वाले नेताओं की ओर से नीतीश तक आवाज पहुंचाई जा रही है कि जनता के बीच मैसेज गलत जा रहा है। बात भी काफी हद तक सही है। आम लोगों के बीच यह चर्चा का विषय है कि जदयू केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में शामिल नहीं हो रहा है तो इसका असर आगामी विधानसभा चुनाव में किस तरह जाएगा। भाजपा भी अब इस आवाज के सहारे नीतीश को मैनेज करने में पूरी ताकत झोंक रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो विधानमंडल के मानसून सत्र के बाद जदयू-भाजपा में केंद्रीय मंत्री पद पर कुछ न कुछ फॉर्मूला तय हो जाएगा। जदयू के कुछ दिग्गजों ने अनौपचारिक बातचीत में ‘अपना भारत’ से कहा कि नीतीश कुमार चार पर जरूर अड़े हैं लेकिन एक कैबिनेट और दो राज्यमंत्री के पद मिलने पर बात बन जाएगी। दो राज्यमंत्री में एक स्वतंत्र प्रभार का दबाव भी नीतीश की ओर से रहेगा।
यानी, अगर बात बन गई तो सावन महीने का अंत होने से पहले जदयू में नीतीश के सबसे करीबी ललन सिंह कैबिनेट मंत्री व आरसीपी सिंह राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के ओहदे के साथ दिल्ली जाएंगे। एक राज्यमंत्री और कौन होगा, इसमें दो नाम हैं इसलिए इसपर जदयू के नेता भी फिलहाल कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। इस बात की संभावना है कि यह कोई महिला सांसद हों।