ब्यूरो
देहरादून। उत्तराखंड में अब एक नए घोटाले की बात सामने आ रही है। इस बार वन विभाग के मुआवजे में खेल हो गया है। वैसे तो मानव-वन्य जीव संघर्ष उत्तराखंड में होते रहते हैं लेकिन पिछले चार महीनों में इस बाबत बांटे गए मुआवजे को देखें तो लगता है कि मानव-वन्य जीव संघर्ष कुछ ज्यादा ही होने लगे हैं।
फसल को नुकसान पहुंचने जैसे मामलों में सरकार पीडि़त को मुआवजा देती है। इसके अलावा हाथियों द्वारा मकान ध्वस्त करने, जंगली जानवर के हमले जैसे मामलों में भी सरकार मुआवजा बांटती है। लेकिन पशु और फसल क्षति के मामले में पिछले चार महीने में कुछ ज्यादा ही तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इसे पर वन मुख्यालय के वित्त एवं नियोजन अनुभाग को गड़बड़ी होने का संदेह है। वन संरक्षकों से मामले की रिपोर्ट मांगी गई है और गढ़वाल व कुमाऊं के मुख्य वन संरक्षकों को भी मामलों की जांच के निर्देश दिए गए हैं।
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आंकड़ों के मुताबिक 2015-16 में बाघ और तेंदुए के हमले में 3,234 भैंस, गाय व बकरी के मारे जाने के मामले सामने आए। इस वर्ष हाथी और सूअर जैसे जानवरों द्वारा 307 हेक्टेअर फसल के नुकसान और 45 मकानों के क्षतिग्रस्त होने के एवज में मुआवजा मांगा गया। वर्ष 2016-17 में इन मामलों में बढ़ोतरी हुई। इस वर्ष बाघ, तेंदुए के हमले में 8,187 मामलों में मुआवजा मांगा गया। फसल के नुकसान के मामले में भी पिछले वर्ष की तुलना में 186 हेक्टेयर की बढ़ोतरी के साथ इस बार 486.34 हेक्टेयर फसल में नुकसान के दावे के साथ मुआवजे की मांग की गई। जबकि जानवरों द्वारा क्षतिग्रस्त मकानों की संख्या बढक़र 66 हो गई।
2017 अप्रैल से अगस्त के बीच ऐसे मामले तेजी से बढ़े। इन्हीं चार महीनों में पशु से क्षति के 4843 मामले बढ़ गए। वन विभाग से कुल 9945 मामलों में मुआवजे की मांग की गई है। फसल नुकसान के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। चार महीने में वन्य जीवों ने 1334 हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचाया। हाथियों द्वारा क्षतिग्रस्त मकानों की संख्या भी बढ़ गई। चार महीनों में ही हाथियों ने 74 मकानों को ध्वस्त कर दिया।
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इन बढ़े हुए आंकड़ों और मुआवज़े की बढ़ी मांग को देख वन विभाग को संदेह हुआ। पिछले वित्तीय वर्ष में वन विभाग ने करीब साढ़े पांच करोड़ रुपए मुआवजा दिया था जबकि इस बार चार महीने में ही 93 लाख मुआवजा दिया जा चुका है। अनुमान है कि करीब आठ करोड़ रुपये मुआवजा और देना पड़ सकता है।
वन मुख्यालय का मानना है कि इनमें से कई मामले संदिग्ध हैं। इसलिए मुख्यालय ने वन संरक्षकों की निगरानी में समिति बनाकर मुआवजे के मामलों की जांच की बात कही है। जांच रिपोर्ट और सुझाव को जल्द मुख्यालय भेजने के निर्देश दिए हैं। प्रमुख वन संरक्षक वित्त एवं नियोजन गंभीर सिंह का कहना है कि अचानक फसल-पशु के नुकसान, मकान ध्वस्त होने के मामले तेजी से बढ़ गए हैं इसलिए ये स्वाभाविक नहीं लग रहा। मुआवजे की मांग नियमत: डीएफओ स्तर से की जाती है। अब वन संरक्षकों को इन मामलों की जांच के लिए कहा गया है। उनकी संस्तुति पर आगे कोई फैसला लिया जाएगा। मुख्य वन संरक्षकों को भी निगरानी के लिए कहा गया है। इन रिपोर्टों के आधार पर ही आगे कार्रवाई की जाएगी।
ऐसे कैसे होगी वनों की रक्षा
उत्तराखंड की वन संपदा को लेकर चिंता इसलिए भी बड़ी है क्योंकि राजाजी राजाजी नेशनल पार्क में वन आरक्षी भर्ती में एक घोटाला साबित हो चुका है लेकिन इसके बावजूद आरोपियों पर एफआईआर तक नहीं हुई। साफ है कि कोई घोटालेबाजों को बचाने की कोशिश कर रहा है। राजाजी नेशनल पार्क में फरवरी 2016 में वन आरक्षी के 43 पदों के लिए परीक्षा हुई थी। इसके परिणाम घोषित किए जाने के साथ ही विवाद शुरू हो गया था और राजाजी के निदेशक सनातन सोनकर ने यह भर्तियां निरस्त कर दीं।
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दरअसल यह पूरी परीक्षा कुछ खास लोगों को भर्ती करने के लिए ही आयोजित की गई थी, जिसमें हर स्तर पर फर्जीवाड़ा था। जो लोग परीक्षा में बैठे उनके तीन साल तक दैनिक श्रमिक होने के प्रमाण पत्र (जो आवेदन की शर्त थी) फर्जी थे। इसके बाद जो परीक्षा परिणाम आए उसने इन्हें जीनियस साबित कर दिया। परीक्षा परिणाम की सूची के अनुसार कुल 126 अभ्यर्थी इस परीक्षा में बैठे। 51 अभ्यर्थियों को 95 से लेकर सौ फीसदी अंक दिए गए। इनमें से छह अभ्यर्थियों को सामान्य हिंदी जैसे पेपर में और 19 अभ्यर्थियों को सामान्य ज्ञान में 50 में से 50 नंबर दिए गए।
इसी तरह सामान्य हिंदी में 11 और सामान्य ज्ञान के प्रश्न पत्र में 22 लोगों को 99 फीसदी अंक मिले। पूरा घोटाला पूर्व वन मंत्री दिनेश अग्रवाल के कार्यकाल का है। उनके तत्कालीन पीए के भाई अमित बिज्लवाण का नाम भी इस सूची में शामिल है। लेकिन अग्रवाल इस तथ्य को लेकर जरा भी चिंतित नहीं दिखते। वह वर्तमान वन मंत्री को जांच करने की चुनौती देते हैं। इस घोटाले के सामने आने के बाद राजाजी के निदेशक सनातन सोनकर ने इस मामले की जांच की थी। उसके बाद अपर प्रमुख वन संरक्षक वीके पांगती ने भी एक जांच की। दोनों जांच में पार्क के डिप्टी डायरेक्टर किशन चंद और तीन रेंजरों के साथ 21 अभ्यर्थियों को घोटाले का दोषी पाया गया।
पिछले महीने इन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश दिए गए लेकिन नामालूम कारणों से रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई। दो-दो विभागीय जांचों में घोटाले की पुष्टि होने और दिनेश अग्रवाल की चुनौती के बावजूद वन मंत्री हरक सिंह रावत इस मामले पर कार्रवाई करने में हिचकिचाते नजर आते हैं। हरक सिंह का कहना है कि एक बार फिर इस मामले की समीक्षा करने की जरूरत है। उत्तराखंड का 71 फीसदी हिस्सा जंगल का है और राज्य को जीवनदायी शुद्ध हवा-पानी देने वाले इस जंगल को बचाना एक चुनौती भी है। लेकिन ऐसे घोटाले नौकरशाहों ही नहीं नीति नियंताओं की नीयत पर भी सवाल उठाते हैं।