कॉपीराइट के बाद आई देवबंद से सफाई : फतवा एक शरई राय है

Update:2018-01-14 18:12 IST

सहारनपुर : विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नौमानी ने कहा कि दारुल उलूम के कुछ फतवों को लेकर इन दिनों प्रिंट व इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में बहस छिड़ी हुई है। फतवों को विवादित रूप में पेश कर कोशिश की जा रही है कि दारुल उलूम फतवा देना बंद कर दे। लेकिन हम यह बता देना चाहते हैं कि फतवा एक शरई राय है। जिसको जारी करना अखलाकी व दीनी फरीजा (हक) है और दारुल उलूम अपनी इस जिम्मेदारी को निभाता रहेगा।

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दारुल उलूम द्वारा बिना अनुमति आॅनलाइन फतवों के प्रकाशन पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दिए जाने के बाद पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए नौमानी ने कहा कि दारुल उलूम का इफ्ता विभाग अपने स्तर से कोई फतवा जारी नहीं करता है। लोगों द्वारा लिखित रूप में फतवा मांगे जाने पर ही इफ्ता उसका जवाब देता है। एक सवाल के जवाब में मोहतमिम नौमानी ने कहा कि मुफ्तियान ए किराम विभिन्न मसलों का इस्लाम की रोशनी में जवाब देते हैं। इसी को आमतौर पर फतवा कहा जाता है। कहा कि फतवा भी हर आलिम नहीं दे सकता। इसके लिए प्रमाणित मुफ्ती होना जरूरी है। अलबत्ता फतवे को मानना या न मानना इंसान के इमानी जज्बे पर निर्भर है।

एक सवाल के जवाब में उन्होंने दो टूक कहा कि हम चाहते हैं कि हर मोमीन शरियत ए इस्लामी के मुताबिक जिंदगी गुजारते हुए बेहतर से बेहतर सामान ए आखिरत तैयार करे। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से फतवे पर अमल न करना चाहे तो उसे बाध्य नहीं किया जा सकता। संस्था द्वारा जारी किए गए किसी भी फतवे को लागू कराने के लिए दारुल उलूम के पास न कोई अधिकार है और न ही ताकत। दारुल इफ्ता का कार्य सिर्फ और सिर्फ शरई मसला बता देना है।

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कासिम नौमानी ने कहा कि इस्लाम मुखालिफ ताकतें संस्था के बहुत से फतवों को लेकर विवाद पैदा करती हैं और यह कहा जाता है कि मौजूदा दौर में फतवा जारी करने की क्या जरूरत थी? लेकिन हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि मौजूदा दौर तो क्या कयामत तक कुरआन व हदीस को नहीं बदला जा सकता और इस्लाम के बुनियादी मसलों में कोई तब्दीली नहीं की जा सकती। वर्तमान समय को देखते हुए इस्लामी अहकामात को बदलने की बात करने वाले लोग असल में इस्लाम से नावाकिफ हैं। एक सवाल का तल्ख जवाब देते हुए मोहतमिम नौमानी ने कहा कि असल बात यह है कि इस्लाम मुखालिफ ताकतें चाहती हैं कि किसी तरह मजहबी रहनुमाई का ये सिलसिला बंद हो जाए। लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते। दारुल उलूम पूछे गए सवाल के जवाब में फतवा देकर अपनी जिम्मेदारी निभाता रहेगा।

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