नई दिल्ली: ओडिशा में रहने वाले कोसली भाषा के कवि और लेखक हलधर नाग को अभी हाल ही में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद्म श्री के पुरस्कार से नवाजा, लेकिन क्या आपको मालूम है कि ‘लोककवि रत्न’ नाम से प्रसिद्ध इस कवि का जीवन कितना संघर्षपूर्ण रहा है। उनके संघर्ष का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने जीवन में उन्होंने कभी चप्पल या जूता नहीं पहना है। उन्होंने घर की तंग हालत के चलते कक्षा तीन में पढ़ाई भी छोड़ दी थी।
आज हलधर नाग के नाम पर होती है पीएचडी
जिस हलधर नाग ने घर की तंग आर्थिक हालत के चलते तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी आज वह अपनी कविता ने इतने प्रसिद्ध हो चुके हैं कि उनकी कविताओं पर पीएचडी करने वाले छात्रों के सबजेक्ट की लिस्ट में हमेशा शामिल रहता है। अभी तक उनके नाम पर पांच थीसिज दर्ज की जा चुकी हैं। ओडिशा की संभल यूनिवर्सिटी उनकी कविताओं के संगठन को एक विषय के रूप में अपने स्लेबस में शामिल करने की योजना बना रही है।
आइये एक नजर उनके इस संघर्षमय जीवन पर डालते हैं-
-नाग का जन्म ओडिशा बाडढ़ जिले के घेंस गांव में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था।
-बचपन में ही उनके पिता की मौत हो गई थी जिसके चलते उनको पढ़ाई तीसरी कक्षा में ही छोड़नी पड़ी थी।
-उन्होंने अपने परिवार के जीवनयापन के लिए मिठाई की दुकान पर बर्तन तक मांजे। इस समय उनकी उम्र 10 वर्ष थी।
-दो सालों बाद ग्राम प्रधान की मदद से उनको हाईस्कूल में उन्हें कुक की नौकरी मिली।
-यह नौकरी उन्होंने पांच सालों तक किया।
-इलाके में कई स्कूल आने पर उन्होंने बैंक से 1000 रुपए लों लेकर स्टेशनरी की एक छोटी सी दुकान खोली।
-इसी समय कविता की तरफ उनकी रूचि बढ़ी थी।
1990 में छपी थी हलधर की पहली कविता
-हलधर पहली कविता 'धोनो बारगछ' (ओल्ड बनयान ट्री) 1990 में लोकल मैगजीन में छपी थी।