सिंधु समझौता तोड़ने के नतीजे

जब-जब पाकिस्तान परस्त आतंकी हमारे देश में कोई वारदात करते हैं। तब-तब हम पाकिस्तान से निपटने के कई फार्मूले पेश करते नजर आते हैं। पुलवामा हमले के बाद यह कहा जा रहा है कि भारत को सिंधु जल समझौता रद्द कर देना चाहिए।

Update:2019-02-22 18:47 IST

योगेश मिश्र

जब-जब पाकिस्तान परस्त आतंकी हमारे देश में कोई वारदात करते हैं। तब-तब हम पाकिस्तान से निपटने के कई फार्मूले पेश करते नजर आते हैं। पुलवामा हमले के बाद यह कहा जा रहा है कि भारत को सिंधु जल समझौता रद्द कर देना चाहिए। पाकिस्तान को पानी-पानी के लिए परेशान कर देना चाहिए। जनता के इस मांग की ऐसे समय में हकीकत जानने की कोशिश की जानी चाहिए।

19 सितंबर, 1960 को कराची में सिंधु नदी समझौता हुआ। जिसके तहत नदी को पूर्वी और पश्चिमी दो भागों में बांटा गया। रावी, व्यास, सतलज नदियां पूर्वी कही गई। भारत के हिस्से में आईं झेलम, चेनाव नदियां पश्चिम की मानी गईं। और ये पाकिस्तान के हिस्से गईं। पश्चिमी की नदियों के पानी से बिजली बनाना, खेती करना सरीखे कुछ सीमित अधिकार भारत को मिले।

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बावजूद इसके पाकिस्तान, भारत की बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं एक हजार मेगावाट की पाकल, 850 मेगावाट की रातले, 330 मेगावाट की किशनगंगा, 120 मेगावाट की मिथाट और 48 मेगावाट की कलनाई पर आपत्ति उठाता रहा है। जब तुलबुल प्रोजेक्ट कश्मीर में बनने की बात आई तो पाकिस्तान ने आपत्ति उठाई। क्योंकि समझौते में लिखा है कि पानी का इस्तेमाल वह तभी कर सकता है, जब तक धारा बहती रहे। यही नहीं इस समझौते को कोई एकतरफा तोड़ नहीं सकता।

सिंधु घाटी से गुजरने वाली नदियों के नियंत्रण को लेकर उपजे विवाद की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी। भारत यदि इस समझौते को तोड़ता है तो पाकिस्तान विश्व बैंक के पास जाएगा। इस लिहाज से देखा जाए तो सिंधु समझौता तोड़ना संभव ही नहीं है। हालांकि पानी के वैश्विक झगड़ों पर किताब लिख चुके ब्रह्म चेल्लानी कहते हैं कि भारत वियना समझौते के लाॅ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 के अंतर्गत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान आतंकी गुटों का इस्तेमाल उसके खिलाफ कर रहा है।

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय भी कहता है कि अगर मूलभूत परिस्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी संधि को रद्द किया जा सकता है। सिंधु नदी का इलाका 11.2 लाख किमी में फैला है। 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास रहते हैं। सिंधु नदी के इलाके का 47 फीसदी पाकिस्तान में, 39 फीसदी भारत में, 8 फीसदी चीन में और 6 फीसदी अफगानिस्तान में पड़ता है।

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अमेरिका के ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के मुताबिक ऐरान वोल्फ और जेशुआ न्यूटन की रिपोर्ट बताती है कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के पहले ही पंजाब और सिंधु प्रांतों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर झगड़ा हो चुका था। दरअसल 1 अप्रैल, 1948 को सिंधु से निकली दो नहरों का पानी रोक दिया गया था। नतीजतन, पाकिस्तान के इलाके वाले पंजाब की 17 लाख एकड़ जमीन पर उगी फसल खराब हो गई।

1951 में प्रधानमंत्री नेहरू ने टेनसीवेली अथार्टी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियनथल को बुलाया। वह पाकिस्तान भी गए और अमेरिका पहुंच कर सिंधु नदी के बंटवारे पर एक लेख लिखा। विश्व बैंक प्रमुख और लिलियनथल के दोस्त डेविड ब्लैक ने इसे पढ़ा और फिर दोनों पक्षों के बीच सिंधु नदी के जल बंटवारे का सिलसिला शुरू हुआ। जिसके तहत स्थाई सिंधु आयोग बना। कुछ अपवादों को छोड़कर पूर्वी नदियों का पानी भारत बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है।

पश्चिम नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए छोड़ा गया लेकिन इस पानी के कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को मिला। जैसे बिजली बनाना, खेती के लिए सिंचाई करना। समझौते में यह भी कहा गया कि अगर कोई देश किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है और दूसरे देश को उसकी डिजाइन पर आपत्ति है। तो दोनों पक्षों की बैठक होगी। इसके अलावा समझौते में विवाद का हल ढूंढने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की राय ली जा सकती है। या कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन जाया जा सकता है।

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जम्मू-कश्मीर सरकार मानती है कि इस समझौते से सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। वर्ष 2003 में इस समझौते पर पुनर्विचार के लिए प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर विधानसभा में आया भी था। यह दुनिया का एकलौता ऐसा जल समझौता है जो संप्रभुता के सिद्धांत को नकारता है। जिस देश से नदी निकलती है उस देश को पानी के बहाव वाले देश के पक्ष में अपना हक त्यागने को बाध्य करती है।

पाकिस्तान को इस समझौते के तहत 167 क्यूविक मीटर जल मिलता है। इस समझौते को तोड़ना बहुत मुश्किल नहीं है। हालांकि विशेषज्ञों की राय इस पर अलग-अलग है। लेकिन जल समझौता तोड़ने से कहीं आपस में जूझ रहे पाकिस्तान के राज्यों को एकजुट होने का बहाना न मिले यह भी देखने की जरूरत है।

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