अलग राज्य के लिए जान देने वालों को किया याद

Update: 2017-09-08 10:28 GMT

देहरादून: उत्तराखंड में सितंबर का पहला हफ्ता उत्तराखंड के लिए उन आंदोलनकारियों की शहादत को याद करने का समय होता है जिनकी बदौलत यहां के लोगों को अपना राज्य मिला। वैसे यह प्रदेश अभी उस मुकाम पर नहीं पहुंचा जहां ले जाने का सपना आंदोलनकारियों ने देखा था। राज्य के इतिहास में बहुत सारे संघर्षों के बीच खटीमा और मसूरी गोलीकांड की घटना को कोई नहीं भूलता जिन्हें यूपी पुलिस की वैसी ही बर्बरता के लिए याद किया जाता है जैसी अंग्रेजों ने जालियांवाला बाग में दिखाई थी।

खटीमा गोली कांड

एक सितंबर, 1994 को उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर खटीमा की सडक़ों पर उतरे हजारों आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसे 22 बरस हो गए हैं। अलग उत्तराखंड की मांग को लेकर खटीमा गोलीकांड में सात आंदोलनकारियों ने अपनी शहादत दी थी। एक सितम्बर, 1994 को पृथक उत्तराखंड की मांग को लेकर खटीमा में सुबह साढ़े नौ बजे हजारों लोग सडक़ों पर आ गए थे। अलग राज्य की मांग को लेकर उठी इस मुहिम में लगभग 20 हजार से ज्यादा लोग ऐतिहासिक रामलीला मैदान पहुंच गए थे। इनमें महिलाएं, पूर्व सैनिक, युवा और बच्चे शामिल थे। रामलीला मैदान से निकलने के बाद आंदोलनकारी खटीमा मुख्य चौराहे पर पीलीभीत रोड की तरफ मुड़े और चौहान पेट्रोल पंप से फिर मुख्य चौराहे की तरफ मुड़ गए। उसके बाद टनकपुर रोड पर रोडवेज तक जाने के बाद वापस लौटे। आंदोलनकारीयों का कारवां कोतवाली के सामने से गुजर रहा था, लेकिन आन्दोलनकारियों इस बात की भनक नहीं थी कि कोतवाल डीके कैन के मन में क्या चल रहा है।

कंजाबाग तिराहे से लौट रहे आन्दोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां बरसा दीं। महिलाएं, बच्चे, बुजर्ग युवा अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागे। खटीमा कोतवाली से 300 मीटर की दूरी पर बनी पुरानी तहसील की छत पर से तैनात पुलिसकर्मी ने जान बचाने के लिए भाग रहे लोगों पर गोलियां बरसाईं।

खटीमा की दीवारों पर इसके निशान आज भी हैं। आंदोलनकारियों पर अचानक चली गोलियों से सात लोग शहीद हो गए और बहुत से लापता हो गए, जिनमें से कुछ का पता आज तक नहीं चला है। अब शहीदों की याद में शहीद स्मारक बनाकर उनके नाम जरूर दर्ज कर दिए गए हैं। बीती एक तारीख को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट श्रद्धांजलि देने खटीमा पहुंचे और वहां मौजूद लोगों को मुख्यमंत्री ने फोन पर संबोधित किया। वैसे उत्तराखंड आंदोलन के प्रमुख नेता रहे शेर सिंह डिमरी की शिकायत है कि इन 16 सालों में अभी तक शहीदों के सपनों का उत्तराखंड नहीं बना है। शायद इन्हीं भावनाओं को समझते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड बनाया जाएगा।

मसूरी गोली कांड

एक सितंबर को हुए खटीमा गोलीकांड का राज्यभर में विरोध शुरू हुआ। हर जगह आंदोलनकारी सडक़ पर थे। उत्तराखंड आंदोलन एक शांतिपूर्ण आंदोलन था। आंदोलनकारी शांतिपूर्वक जुलूस निकालते और धरना देते मगर खटीमा गोलीकांड से पता लगा कि सरकार और पुलिस इनसे कितना डरे हुए हैं। खटीमा गोलीकांड के विरोध में 2 सितंबर 1994 को मसूरी में भी प्रदर्शन का आह्वान किया गया। मसूरी में शांतिपूर्वक रैली निकाल रहे लोगों को हटाने के लिए पुलिस के जवानों ने फायरिंग शुरू कर दी। एक आंदोलनकारी महिला बेलमती चौहान के माथे पर बंदूक सटाकर गोली मारी गई। पुलिस के जवान इतने उग्र थे कि आंदोलनकारियों पर गोली चलाने का हुक्म न देने वाले अपने ही डीएसपी उमाकांत त्रिपाठी को भी मौत के घाट उतार दिया। यहां भी भीड़ पर गोलियां दागी गईं। पुलिस अपने मकसद में कामयाब हुई और आंदोलनकारी तितर बितर हो गए। मसूरी में छह लोगों ने अलग राज्य के सपने के लिए शहादत दी और एक डीएसपी इस गोलीकांड में मारे गए।

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