इस लेडी को उधार मांगने पर लोग मारते थे ताने, 40 साल में ऐसे बन गई करोड़पति

Update:2018-07-31 17:23 IST

रायपुर: मन में अगर कुछ करने का जज्बा हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। इस उदाहरण को रायपुर की रहने वाली उमा गुप्ता (61) ने सच साबित कर दिखाया है। उन्होंने कैंसर जैसी बीमारी को मात देकर समाज में खुद के दम पर एक मुकाम हासिल किया है। लोन लेकर बिजनेस शुरू करने और उधार मांगने पर लोगों ने कभी उनका मजाक भी उड़ाया था। आज वह ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस और कॉपी-किताब का खुद का बिजेनस संभालती है। उनके बिजनेस का सलाना टर्न ओभर 1 करोड़ से ज्यादा है।

newstrack.com आज आपको उमा गुप्ता की अनटोल्ड स्टोरी के बारे में बता रहा है।

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पिता करते थे स्टेशनरी का व्यवसाय

उमा बताती हैं, "मेरा जन्म 17 जनवरी 1957 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ था। मेरे पिता कृष्ण मुरारी गुप्ता किताबों का व्यवसाय करते थे। मेरी मां सूरजमुखी हाउस वाइफ थीं। चार बहनों और एक भाई में मैं सबसे बड़ी हूं। मैंने 1978 में विक्रम यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए किया था''।

घाटे में जा रहा था बिजनेस

27 अप्रैल 1978 को मेरी शादी हरीशंकर गुप्ता से हो गई। 1985 में हम लोग रायपुर आ गये। मैं अपने हसबैंड के साथ मिलकर क्रॉकरी की शॉप चलाती थी। उस समय फैमिली की फाइनेंसियल कंडीशन ठीक नहीं थी। मैंने मध्य प्रदेश में वुमन इंटरप्रेन्योरशिप की। उसके बाद खुद का ऑफसेट प्रिंटिंग मशीन लगाने का निर्णय किया। उस टाइम मेरे पास पैसे नहीं थे।

उधार मांगने पर उड़ाया गया मजाक

मैं जब लोगों से बिजनेस के लिए पैसे उधार मांगती थी तब लोग मेरा मजाक उड़ाते थे। मोराल डाउन करने के लिए मुझे ताने मारे गए। लोगों ने कहा कि तुमने लाख रुपए जिंदगी में कभी देखे हैं। क्रॉकरी की शॉप चलाती हो। मर्दों के बीच में बैठना खूब अच्छा लगता होगा? लोग मुझसे गंदी बात करते थे। मुझे बहुत शर्म आती थी, लेकिन मैंने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। मध्य प्रदेश वित्त निगम से 15 लाख रुपए लोन, पिता से 2 लाख रुपए और दोस्तों से 6 लाख रुपए लेकर अपना बिजनेस शुरू किया। मैंने अकेले दिल्ली, मुंबई, बंगलौर सहित कई अन्य बड़े शहरों का दौरा किया। मैं ऑफसेट प्रिंटिंग मशीन खरीदने के लिए कई लोगों से वहां पर मिली।

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21 लाख रुपए से शुरू किया था बिजनेस

मैंने 1987 में 21 लाख रुपए से ऑफसेट प्रिंटिंग बिजेनस शुरू किया। मैरी भाभी विनीता गुप्ता मेरी बिजनेस पार्टनर थी। मध्य प्रदेश में उस टाइम कोई भी महिला इस काम में नहीं थी। मैं इस तरह का काम करने वाली पहली महिला थी। मैं खुद पूरी–पूरी रात अपने वर्कर्स के साथ फैक्टी के अंदर काम करती थी। एक दिन मशीन का काम देखते टाइम मेरी दाहिने हाथ की दो उंगलियां गियर बॉक्स में फंसकर कट गईं। इसके बाद मेरे हसबैंड ने मुझे फैक्ट्री के अंदर जाने से मना कर दिया। तब मैंने 'गुप्ता पुस्तक मंदिर' नाम से एक बुक की होलसेल शॉप खोल ली और उस पर बैठना शुरू किया।

18 साल तक चलाई शॉप

18 साल तक उस शॉप को चलाया। उसके बाद मेरा बेटा विशाल बड़ा हो गया और उसने होलेसेल बुक्स का बिजेनस संभाल लिया। इसके बाद मुझे फैक्ट्री का मैनेजमेंट संभालने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। तब से मैं ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस के मैनेजमेंट का काम देख रही हूं।

1 करोड़ से ज्यादा है सलाना टर्नओवर

मैंने 21 लाख रुपये से ऑफसेट प्रिंटिंग का काम शुरू किया था। आज मेरी होलसेल बुक्स शॉप और ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस दोनों को मिलाकर सलाना टर्न ओवर 1 करोड़ रुपए से ज्यादा है। इस काम में मेरी पूरी फैमिली साथ देती है। हमारी फैक्ट्री में कॉपी, बुक्स, मैगजीन और डायरी छपती है। मैं अपने हसबैंड और दोनों बेटे के साथ मिलकर पूरा बिजेनस संभालती हूं। आज हमारी कंपनी में दो दर्जन से ज्यादा वर्कर काम करते हैं। उन्हें अच्छी सैलरी दी जाती है।

 

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