नौकरी कर रही आत्मा! सेना का ये जवान, जिन्हें मौत के बाद भी मिल रही है सैलरी

किसी भी देश में जवान का होना उतना ही जरुरी है, जितना एक इंसान को पानी की ज़रुरत है। क्या कभी आपने ये सुना है की जवान शहीद तो हो गया लेकिन उसके बाद भी सीमा की निगहबानी कर सकता है?

Update:2019-12-15 15:39 IST

नई दिल्ली: किसी भी देश में जवान का होना उतना ही जरुरी है, जितना एक इंसान को पानी की ज़रुरत है। क्या कभी आपने ये सुना है की जवान शहीद तो हो गया लेकिन उसके बाद भी सीमा की निगहबानी कर सकता है? या क्या मौत के बाद भी कोई आपकी सुरक्षा के लिए खड़ा रह सकता है? ये सब सुनने में आपको काफी अजीब लग रहा होगा, लेकिन इन प्रश्नों के पीछे छिपा है एक गहरा रहस्य जिसे कम ही लोग जानते हैं।

मौत के 50 साल बाद भी सिपाही हरभजन सिंह सिक्किम सीमा पर हमारे देश की सुरक्षा कर रहे हैं। यही वजह है कि आज भी भारतीय सेना उनके मंदिर का रखरखाव करती है और उनके मंदिर में पूजा-पाठ की जिम्मेदारी भी सेना के जिम्मे है। बहुत से लोगों का कहना है कि पंजाब रेजिमेंट के जवान हरभजन सिंह की आत्मा पिछले 50 सालों से लगातार देश के सीमा की रक्षा कर रही है।

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कौन थे हरभजन सिंह?

हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को गुजरावाला में हुआ था, जो कि अभी पाकिस्तान में है। हरभजन सिंह साल 1966 में 24वीं पंजाब रेजिमेंट में बतौर जवान भर्ती हुए थे। वो सेना को अपनी सेवाएं केवल 2 साल ही दे पाए और साल 1968 में सिक्किम में तैनाती के दौरान एक हादसे में मारे गए।

जवानों ने बताया कि एक दिन जब वो खच्चर पर बैठ कर नदी पार कर रहे थे, तभी खच्चर सहित हरभजन नदी में बह गए। नदी में बह कर उनका शव काफी आगे निकल गया। ऐसा कहा जाता है कि दो दिन की तलाशी के बावजूद भी जब उनका शव नहीं मिला। तब उन्होंने खुद ही अपने एक साथी सैनिक के सपने में आकर अपनी शव वाली जगह बताई। सुबह उस सैनिक ने अपने साथियों को हरभजन वाले सपने के बारे में बताया और जब सैनिक सपने में बताए जगह पर पहुंचे तो वहां हरभजन का शव पड़ा हुआ था। बाद में पूरे राजकीय सम्मान के साथ हरभजन का अंतिम संस्कार किया गया। उनके इस चमत्कार के बाद साथी सैनिकों ने उनके बंकर को एक मंदिर का रूप दे दिया।

उनके लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया

बाद में सेना की ओर से उनके लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया, जो की ‘बाबा हरभजन सिंह मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच 13000 फ़ीट की ऊंचाई पर है। पुराना बंकर वाला मंदिर इससे भी 1000 फ़ीट ज्यादा ऊंचाई पर है।

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छुट्टी पर घर भी जाते थे बाबा हरभजन सिंह

हरभजन के बारे में वहां तैनात सैनिकों का कहना है कि वो अपनी मौत के बाद भी लगातार अपनी ड्यूटी दे रहे हैं। इनके लिए उन्हें सैलरी भी दी जाती है और सेना में उनकी एक रैंक भी है। कुछ साल पहले तक उन्हें दो महीने की छुट्टी पर पंजाब में उनके गांव भी भेजा जाता था। इसके लिए ट्रेन में उनकी सीट रिज़र्व की जाती थी और तीन सैनिकों के साथ उनका सारा सामान गांव भेजा जाता था और फिर दो महीने पूरे होने के बाद उन्हें वापस सिक्किम लाया जाता था।

कुछ लोगों के द्वारा जब इस पर आपत्ति दर्ज की गई तो सेना ने हरभजन को छुट्टी पर भेजना बंद कर दिया। अब हरभजन साल के बारह महीने अपनी ड्यूटी पर रहते हैं। मंदिर में हरभजन का एक कमरा भी है, जिसमें प्रतिदिन सफाई करके बिस्तर लगाए जाते हैं। कमरे में हरभजन की सेना की वर्दी और जूते रखे जाते हैं। लोगों का कहना है कि रोज़ सफाई करने के बावजूद उनके जूतों में कीचड़ और चद्दर पर सलवटें पाई जाती हैं।

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