देहरादून: लंढौरा की विकास की रैली में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तलवार लहराते हुए...उत्तराखंड प्रदेश में लोकायुक्त को गैरजरूरी घोषित कर दिया... तर्क दिया कि जब राज्य मेें चोर ही नहीं होंगे तो चोरी कैसे होगी? रावत जी भूल गए कि गत जुलाई में उनकी ही पार्टी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में... उनकी सरकार ने छह महीने में लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए समय मांगा है वो अवधि भी पूरी हो चुकी है और आगामी दस जनवरी को सरकार को माननीय सुप्रीमकोर्ट को जवाब देना है...।
सरकार में संसदीय कार्यमंत्री भी मुख्यमंत्री के इस बयान पर अचंभित हैं... दो हजार ११ का लोकपाल पर ‘अन्ना आंदोलन’ तो आपको याद होगा। उसी समय भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल वीसी खंडूड़ी ने विधानसभा में सर्वसम्मत से एक लोकपाल बिल पास किया था... जिसकी प्रशंसा अन्ना की टीम ने भी की थी और राष्ट्रपति ने भी उसको जस का तस स्वीकृति प्रदान की थी... खंडूड़ी जी के लोकपाल में मुख्यमंत्री सहित पूरी सरकार यहां तक की रिटायर सेवाकर्मी की जवाबदेही भी तय की गयी थी... उस समय भाजपा ने अपने इस विधेयक पर खूब तारीफ बटोरी थी... लेकिन उसके बाद विधानसभा के चुनाव हुए और बीजेपी एक सीट के फासले से सरकार बनाने से चूक गई। सत्ता संभाली कांग्रेस ने.. कांग्रेस ने इस लोकपाल बिल से पल्ला झाड़ लिया और पूरे पांच साल तक न तो विधेयक के नए प्रारूप पर कोई बिल पास किया और न ही लोकपाल की नियुक्ति की।
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अब खेल यहां से बदलना शुरू होता है.. बीजेपी की तरफ से ही पार्टी के कार्यकर्ता एवं वकील श्रीमान अश्वनी कुमार उपाध्याय कांग्रेस सरकार के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में लोकपाल की नियुक्ति को लेकर एक जनहित याचिका दायर करते हैं... जब तक सुप्रीमकोर्ट तेजी दिखलाए सरकार फिर बदल जाती है... और इस बार निशाने पर भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह सरकार आ जाती है। अपनी लकड़ी अपने सर !!
सरकार बनने के तुरंत बाद बकौल संसदीय कार्य मंत्री लोकपाल के लिए मार्च १७ में कवायद शुरू होती है इस बार खंडूड़ी जी के लोकपाल के विवादास्पद हिस्सों को छोडक़र (?) पूरा मामला विधानसभा की प्रवर समिति को सौंप दिया जाता है और अब प्रवर समिति ने इसे विधानसभा के पटल पर रख दिया बताया जाता है... इसी बीच पांच जुलाई को तारीख पडऩे पर सरकार सुप्रीमकोर्ट को बताती है कि छह महीने में हम विधानसभा से इस विषय से जुड़े बिल को पास कराकर लोकपाल की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
फिर आती है विधान मंडल की बैठक की तारीख ०७ दिसंबर १७ से १४ दिसम्बर १७ तक चलने वाले सत्र में इसे पेश होना था किन्तु गैरसैंड़ की ठंड में विधानसभा दो दिन से अधिक नहीं चल पाई और लोकपाल बिल भी कई अन्य बिलों की तरह बर्फ में लग गया।
१० जनवरी फिर सुनवाई नहीं जवाबदेही की तारीख है, और सरकार के मुखिया ‘लोकपाल’ सरकार की जरूरत को ही चुनौती देते नजर आ रहे हैं। यह मामला केवल राजनैतिक नहीं है। ‘सुप्रीमकोर्ट’ की सख्ती की नजीरें सामने हैं। उत्तर प्रदेश में इसी तरह की टाल मटोली के कारण सुप्रीमकोर्ट सीधे ही अपने अधिकारों का प्रयोग कर लोकपाल नियुक्त कर चुका है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व एडीशनल एडवोकेट जनरल श्रीमान शैल द्विवेदी जी इसे सुप्रीमकोर्ट की अवमानना मानते हैं इसका मतलब साफ है सरकार और उच्चतम न्यायालय १० जनवरी को आमने-सामने होंगे। एक अन्य राज्यपाल के पूर्व विधि सलाहकार श्रीमान सी.बी. पाण्डेय जी भी शैल द्विवेदी जी की राय से सहमत हैं। सुप्रीमकोर्ट अपने विशेषाधिकारों का उपयोग करते हुए सीधे लोकायुक्त की नियुक्ति कर सकती है। हरहाल में राज्य सरकार की स्थिति प्रतिकूल है। ऐसे में मुख्यमंत्री का यह बयान की लोकायुक्त की उत्तराखंड में कोई जरूरत नहीं है न केवल हास्यास्पद स्थिति पैदा करेगा साथ ही इसे गैर जिम्मेदाराना रूख की तरह भी देखा जायेगा। कुल मिलाकर १० जनवरी राज्य सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण सिद्ध होगी। सरकार कंधे उचकाकर इस जिम्मेदारी से अपना दामन नहीं बचा पाएगी।
लोकपाल बिल 2011
उत्तराखंड की विधानसभा ने दो नवंबर 2011 को लोकायुक्त विधेयक को पारित किया था। सदन में काफ़ी देर तक चली चर्चा के बाद उत्तराखंड लोकायुक्त बिल, 2011 को सर्वसम्मति से पारित किया गया था। इस बिल के दायरे में मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक समेत सरकारी अफ़सर भी आ रहे थे। इस विधेयक के अंतर्गत उम्रकैद से लेकर और कठोर सजा़ का भी प्रावधान था। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने कहा था कि यह बिल भ्रष्टाचार के खिलाफ काफी उपयोगी साबित होगा।
खंडूड़ी ने पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल के कुर्सी छोडऩे के बाद 11 सितंबर को राज्य के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के दौरान अगले दो महीने में लोकायुक्त बिल लाने का वादा किया था जिसे उन्होंने पूरा किया था। राज्य की सभी निचली अदालतें लोकायुक्त बिल के दायरे में आ गई थीं जबकि उत्तराखंड हाईकोर्ट इससे बाहर था। इस बिल की परिधि में पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री और सेवानिवृत अफ़सर भी शामिल थे।
उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक 2014
उत्तराखंड विधानसभा द्वारा उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक 2014 विपक्ष के विरोध के बावजूद 21 जनवरी 2014 को पारित किया गया। यह विधेयक लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के अनुपालन में पारित किया गया। इस विधेयक को पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी के नेतृत्व में भाजपा सरकार द्वारा पारित उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम के स्थान पर लाया गया।
उत्तराखंड लोकायुक्त विधेयक 2014 के अनुसार राज्य में लोकायुक्त का निर्माण उच्च न्यायालय में कार्यरत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश या मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में होगा। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय चयन समिति लोकायुक्त के अध्यक्ष एवं उसके सदस्यों की नियुक्ति करेगा। अध्यक्ष के अलावा चार अन्य सदस्यों के पैनल में 50 प्रतिशत सदस्य न्यायपालिका से होंगे। किसी भी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की विधायिका का कोई सदस्य लोकायुक्त संगठन का सदस्य नहीं होगा।
लोकपाल विधेयक 2017
राज्य में पारदर्शी सरकार देने के मकसद से त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने लोकपाल विधेयक भी विधानसभा में पेश किया है। लोकपाल के दायरे में राज्य के चपरासी से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी आएंगे ऐसी व्यवस्था की। लोकायुक्त में कम से कम 5 सदस्य होंगे। लोकपाल की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा चयन समिति की संस्तुति पर की जाएगी। इसके अध्यक्ष हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एवं सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश स्तर के व्यक्ति होंगे। किसी भी मामले की प्रारंभिक जांच प्रभावित न हो इसके लिए लोकपाल के पास आरोपी अफसर और कार्मिकों के तबादले करने की संस्तुति का भी अधिकार होगा।
ये आएंगे दायरे में
मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, राजकीय अधिकारी-कर्मचारी, हाईकोर्ट के न्यायाधीश को छोडक़र अधीनस्थ न्यायपालिका, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्री, सेवानिवृत्त अधिकारी और सरकारी सहायता प्राप्त करने वाली संस्थाएं लोकपाल के दायरे में आएंगी।
हमारी नीयत पर भरोसा रखिए : अजय भट्ट
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट खुद भी वकील हैं और सारे प्रकरण की गंभीरता समझते हैं... उनको भी दस जनवरी की प्रतीक्षा है... माननीय सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से वो भी वाकिफ हैं... लेकिन उनको अपनी सरकार की नेक नियति पर भरोसा है... साथ जीरो टालरेंस के नियम पर भी... जिससे भ्रष्टाचार की संभावनाओं पर भी अंकुश लगाने को सरकार संकल्पवान है.. वो गिनाते हैं कि हमारी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ किस तेजी से काम भी करना शुरू कर दिया है, कहते हैं कि आप रोज अखबार उठाकर देख लीजिए हमारी सरकार किसी भी भ्रष्टाचारी को किस तरह से निपटा रही है दिख जाएगा...। पार्टी के बड़े नेता खुलकर तो नहीं लेकिन दबी जुबान से त्रिवेंद्र सिंह रावत के लोकायुक्त को गैर जरूरी बताने वाले बयान को जल्दबाजी और गैर जरूरी बताने से नहीं चूकते...।