आइए जानते हैं चलते फिरते भगवान और लिंगायत के बारे में

Update:2019-01-22 20:18 IST

कर्नाटक के तुमकुरू स्थित सिद्धगंगा मठ के प्रमुख लिंगायत संत 111 वर्षीय श्री श्री श्री डॉक्टर शिवकुमारा स्वामीजी को कर्नाटक में चलते फिरते भगवान या वाकिंग गॉड के रूप में जाना जाता था। बीते सोमवार को उनका निधन हो गया है। स्वामीजी पद्मभूषण और कर्नाटक रत्न पुरस्कार से सम्मानित थे।

आइए जानते हैं कौन थे स्वामी जी।

111 वर्षीय श्री श्री श्री डॉक्टर शिवकुमारा स्वामीजी चलते फिरते भगवान थे। लिंगायत स्वामियों या धार्मिक आध्यात्मिक गुरुओं में उनकी शख्सियत दुर्लभ थी या दुर्लभ से भी दुर्लभ थी। तमाम स्वामियों के तो वह आदर्श थे।

पिछले आठ दशक से अधिक समय से वह सिद्धगंगा मठ के प्रमुख थे। शायद उनका जन्म ही सेवा कार्य के लिए हुआ था और वह अहर्निश सेवा में लगे रहे। स्वामी जी ने हर जाति समुदाय के अनाथ बच्चों की सेवा की। कोई भी उनके स्कूल में जा सकता था पढ़ सकता था।

स्वामीजी जो भी करते थे उसका संदेश यही था कि दीनदुखियों की सेवा करना ही भगवान को पाने का रास्ता है। उनके मन में कभी भी किसी जाति विशेष के लिए कोई अलग भावना नहीं रही। वह सब के लिए खाने का इंतजाम करते थे। बच्चों पर विशेष ध्यान देते थे। उनको जागरूक बनाकर सुयोग्य नागरिक बनाना ही उनका उद्देश्य था।

मठ की वेबसाइट के अनुसार स्वामीजी का जन्म एक अप्रैल 1908 को कर्नाटक के वीरापुरा गांव में हुआ था। हालांकि स्वामीजी द्वारा स्थापित श्री सिद्धगंगा कालेज आफ एजुकेशन की वेबसाइट पर उनकी जन्मतिथि एक अप्रैल 1907 के तौर पर उल्लेखित है।

सिद्धगंगा मठ बेंगलुरू से 70 किलोमीटर दूर टुमकूर में है। इसे लिंगायत समुदाय की सबसे शक्तिशाली धार्मिक संस्थाओं में गिना जाता है।

कौन हैं लिंगायत

लिंगायत धर्म : समानता, भाईचारा, नैतिकता, समृद्धि और प्रगति का प्रतीक! जीवन का शाश्वत शांति का मार्ग।

लिंगायत धर्म गुरू बसवॆष्वर द्वारा 12 वीं सदी में स्थापित एक धर्म है। लिंगायत धर्म का उद्देश्य पुरुष महिला असमानता मिटाना, जाति को हटाना, लोगों को शिक्षा प्रदान करना, और हर तरह का बुराई को रोकना हैं।

लिंगायत सम्प्रदाय हिंदुओं की ही एक शाखा थी। जिसे अब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने हिंदुओं से अलग एक धर्म के रूप में मान्यता दे दी है। हालांकि कर्नाटक सरकार के इस फैसले को अभी केंद्र का सरकार का अनुमोदन नहीं मिला है।

लिंगायतों को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। कर्नाटक में इनकी आबादी 18 फीसद है। पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में भी इनकी खासी आबादी है।

लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं। इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के स्वरूप हुआ। इस आंदोलन का नेतृत्व समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था। जो बाद में गुरु बसवेष्वर कहलाए।

बसवन्ना खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उन्होंने ब्राह्मणों की वर्चस्ववादी व्यवस्था का विरोध किया। वे जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे। लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था लेकिन इसकी कुरीतियों को हटाने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की गई।

इसीलिए लिंगायत सब अंधविश्वासों, मान्यताओं को खारिज कर भगवान को "इष्टलिंग" के रूप मे पूजते है।

लिंगायत में सभी मानव-जाति जन्म से बराबर हैं। भेदभाव सिर्फ़ ज्ञान पर आधारित है यह वर्तमान का शिक्षा प्रणाली के बराबर है। किसी अधिकारी के घर में जन्म लेने से कोई आधिकारि नहीं बन सकता लेकिन अच्छे अंक प्राप्त करके अधिकारी बन सकता है। कोई भी व्यक्ति ईष्टलिंग दीक्षा संस्कार से लिंगायत बन सकता है।

लिंगायत न तो वेदों में यकीन करते हैं और न ही मूर्ति पूजा में लेकिन भगवान को जिस आकार में वह पूजते हैं उसे ईष्टलिंग कहते हैं।

क्या है ईष्टलिंग

ईष्टलिंग अंडे के आकार की गेंदनुमा आकृति होती है जिसे वे धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं। लिंगायत इस ईष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं. निराकार परमात्मा को मानव या प्राणियों के आकार में कल्पित न करके विश्व के आकार में ईष्टलिंग की रचना की गई है।

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