ब्राह्मण कौन असली- नकली के फेर में पड़ने से पहले ये तो जान लें

पूर्वकाल में ब्राह्मण होने के लिए शिक्षा, दीक्षा और कठिन तप करना होता था। इसके बाद ही उसे ब्राह्मण कहा जाता था। ब्राह्मण के लिए कहा जाता था कि ब्राह्मण की विद्या कंठ में

Update:2019-04-22 18:28 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

पूर्वकाल में ब्राह्मण होने के लिए शिक्षा, दीक्षा और कठिन तप करना होता था। इसके बाद ही उसे ब्राह्मण कहा जाता था। ब्राह्मण के लिए कहा जाता था कि ब्राह्मण की विद्या कंठ में यानी बाल्यावस्था से ही उसे वेद मंत्रों के उच्चारण का अभ्यास कराया जाने लगता था। पांच वर्ष की अवस्था प्राप्त करने पर उसे अध्ययन के लिए गुरुकुल भेज दिया जाता था जहां वह 16 साल तक कठिन परिस्थितियों में रहकर विद्या प्राप्त करता था और ज्ञानार्जन करता था कुछ छात्रों को बीस साल तक गुरुकुल में रहना पड़ जाता था।

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इसके बाद जब वह गुरुकुल से निकलता था तो गुरु उसे उसके गांव घर का पता देते थे और वह अपने परिजनों से मिलने की ललक लिये चल पड़ता था। उस समय आज कल की तरह साधन नहीं थे। गुरुकुल से गांव तक पहुंचने के लिए अनगिनत रातों का सफर तय करना होता था।

इसमें कई बार मजेदार घटनाक्रम भी होते थे गुरुकुल से निकलकर बटुक जिस जिस रास्ते से गुजरते थे। उस समय के अमीर संभ्रांत लोग उधर नजर गड़ाए रहते थे। जिनमें छोटे मोटे राजा भी शामिल रहते थे। कई बार वह बटुक की नाम गांव जाति गोत्र जानकर अपनी कन्या का विवाह उससे कर देते थे और वह छात्र जब अपने घर पहुंचता था तो पत्नी के साथ होता था।

गुरुकुल की अब वह परंपरा नहीं रही। जिन लोगों ने ब्राह्मणत्व अपने प्रयासों से हासिल किया था वह ऋषियों की श्रेणी में आ गए। उनके कुल में जन्मे लोगों ने ऋषि का नाम गोत्र के रूप में अपना लिया। चूंकि वह ऋषि ब्राह्मण थे इसलिए उनके वंशज भी खुद को ब्राह्मण मानकर व्यवहार करने लगे।और यह परंपरा में आ गया।

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आज ऋषि-मुनियों की वे संतानें खुद को ब्राह्मण मानती हैं, जबकि उन्होंने न तो उस ढंग से भारतीय जीवन व संस्कृति पद्धति में शिक्षा ली, न ही किसी गुरु के पास रहकर दीक्षा हासिल की और न ही उन्होंने कठिन तप किया। चुटिया व जनेऊ या फिर धोती और खड़ाऊं का उन्हें अर्थ नहीं पता। ऐसे लोग अपने आचरण से अपने संस्कारों की हंसी उड़वाते भी हैं और हंसी उड़ाने वालों में शामिल होकर अपने पूर्वजों का भी अपमान करते देखे जाते हैं।

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कुछ ऐसे भी ब्राह्मण हैं जो धर्मविरोधी हैं, कुछ ब्राह्मण धर्म जानते ही नहीं, कुछ गफलत में जी रहे हैं कि मै जो कुछ कर रहा हूं वही धर्म है, कुछ ने धर्म को धंधा बना रखा और कुछ अन्य जातियों के लोग पोंगा-पंडित और कथावाचन कर ब्राह्मण बन बैठे हैं।

वास्तव में आज के युवाओं के लिए यह जानने योग्य बात है कि तब किसे ब्राह्मण कहलाने का हक है…

ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या :

जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर किसी अन्य यानी व्यक्ति विशेष को नहीं पूजता वह ब्राह्मण। ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण कहलाता है।

कौन ब्राह्मण नहीं है

जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है। जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं, ज्योतिषी है।

 

 

जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण नहीं कथा वाचक है।

इस तरह वैदिक ज्ञान और ब्रह्म को छोड़कर कुछ भी कर्म करने वाला ब्राह्मण नहीं है। जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता रहता वह ब्राह्मण नहीं।

 

न जटाहि न गोत्तेहि न जच्चा होति ब्राह्मणो। यम्हि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो॥

अर्थात : भगवान बुद्ध कहते हैं कि ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है।

कमल के पत्ते पर जल और आरे की नोक पर सरसों की तरह जो विषय-भोगों में लिप्त नहीं होता, मैं उसे ही ब्राह्मण कहता हूं।

तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य थावरे।जो न हिंसइ तिविहेण तं वयं बूम माहणं॥

अर्थात : महावीर स्वामी कहते हैं कि जो इस बात को जानता है कि कौन प्राणी त्रस है, कौन स्थावर है। और मन, वचन और काया से किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता, उसी को हम ब्राह्मण कहते हैं।

न वि मुंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो।न मुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो॥

अर्थात : महावीर स्वामी कहते हैं कि सिर मुंडा लेने से ही कोई श्रमण नहीं बन जाता। ओंकार का जप कर लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। केवल जंगल में जाकर बस जाने से ही कोई मुनि नहीं बन जाता। वल्कल वस्त्र पहन लेने से ही कोई तपस्वी नहीं बन जाता।

शनकैस्तु क्रियालोपदिनाः क्षत्रिय जातयः।वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणा दर्शनेन च॥पौण्ड्रकाशचौण्ड्रद्रविडाः काम्बोजाः भवनाः शकाः ।पारदाः पहल्वाश्चीनाः किरताः दरदाः खशाः॥- मनुसंहिता (1- (/43-44)

अर्थात : ब्राह्मणत्व की उपलब्धि को प्राप्त न होने के कारण उस क्रिया का लोप होने से पोण्ड्र, चौण्ड्र, द्रविड़ काम्बोज, भवन, शक, पारद, पहल्व, चीनी किरात, दरद व खश ये सभी क्षत्रिय जातियां धीरे-धीरे शूद्रत्व को प्राप्त हो गईं।

इन सब बातों से एक बार फिर भ्रम की स्थिति हो जाती है तब क्या ब्राह्मण इस पृथ्वी पर हैं ही नहीं। यह सब चीजें आज के युग में कर पाना अत्यंत कठिन और दुरूह प्रतीत होता है। तो मोटे तौर पर यह जान लें कि कोई भी बन सकता है ब्राह्मण :

ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को है चाहे वह किसी भी जाति, प्रांत या संप्रदाय से हो। लेकिन ब्राह्मण होने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है।

स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है:-

मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है।

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1. मात्र : ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें मात्र कहा गया है। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो वैसे मात्र हैं। उनमें से कुछ तो यह भी नहीं हैं। वे बस शूद्र हैं। वे तरह के तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और रा‍त्रि के क्रियाकांड में लिप्त रहते हैं। वे सभी राक्षस धर्मी हैं। इस तरह के ब्राह्मण आपको बहुत आसानी से दिख जाएंगे।

2. ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है। इस तरह के ब्राह्मणों को जानने के बाद आप कहेंगे ये ब्राह्मण हैं। इस तरह के ब्राह्मण भी कम नहीं हैं। लेकिन वह प्रचार प्रसार से दूर रहते हैं।

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3. श्रोत्रिय : स्मृति अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है। ऐसे ब्राह्मण भी आपको समाज में मिल जाएंगे। लेकिन भेद आपके समझ स्पष्ट है।

4. अनुचान : कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह ‘अनुचान’ माना गया है। इस तरह के ब्राह्मण कम मिलते हैं। लेकिन पृथ्वी इनसे खाली है ऐसा नहीं है।

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5. भ्रूण : अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, ऐसे इंद्रिय संयम व्यक्ति को भ्रूण कहा गया है। ऐसे व्यक्ति भी संसार में हैं।

6. ऋषिकल्प : जो कोई भी व्यक्ति सभी वेदों, स्मृतियों और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मन और इंद्रियों को वश में करके आश्रम में सदा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निवास करता है उसे ऋषिकल्प कहा जाता है।

7. ऋषि : ऐसे व्यक्ति तो सम्यक आहार, विहार आदि करते हुए ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह से परे हैं और जिसके श्राप और अनुग्रह फलित होने लगे हैं उस सत्यप्रतिज्ञ और समर्थ व्यक्ति को ऋषि कहा गया है।

8. मुनि : जो व्यक्ति निवृत्ति मार्ग में स्थित, संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा सिद्ध है ऐसे ब्राह्मण को ‘मुनि’ कहते हैं।

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इस सब कोटि के ब्राह्मण सहज उपलब्ध हैं। सिर्फ आपको जानने समझने की जरूरत है।

ब्राह्मण कुल में जन्म लेने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता है। उदाहरण के लिए किसी वेदपाठी ब्राह्मण की परम्परा में यदि कोई बालक / बालिका जन्म ले तो क्या वह ब्राह्मण हो जाएगा जवाब है नहीं लेकिन उसके “ब्राह्मणत्व को प्राप्त होने की सम्भावना” बढ़ जाती है। क्योंकि उसका परिवेश उसको उस दिशा में बढ़ाने में सहायक हो सकता है। लेकिन ऐसा बालक / बालिका “ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण” हो ही जाए यह आवश्यक नहीं है।

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“निरुक्त शास्त्र” के प्रणेता यास्क मुनि इसीलिए कहते हैं

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात्‌ भवेत द्विजः।

वेद पाठात्‌ भवेत्‌ विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।

अर्थात – व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।

(स्कन्द पुराण०, नागर खण्ड अ० २३९ श्लो० ३१). के अंतर्गत भी यही तथ्य हैं

अतएव “वर्ण निर्धारण” …गुण और कर्म के आधार पर ही तय होता हैं।

यहां पर शूद्र को लेकर भी एक भ्रम है। शूद्र किसी व्यक्ति विशेष के लिए न होकर एक विशेष परिस्थिति या माहौल की ओर इशारा करता है। इसीलिए कहा गया है कि जन्म से हर व्यक्ति शूद्र होता है।

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