जजों की नियुक्तिः सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार और गोविंदाचार्य

Update:2018-11-03 21:24 IST
जजों की नियुक्तिः सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार और गोविंदाचार्य
  • whatsapp icon

प्रणाली में सुधार के लिए महत्वपूर्ण बिन्दु प्रधानमंत्री को कार्यवाही के लिए भेजे

रामकृष्ण वाजपेयी

भाजपा के थिंक टैंक रहे गोविंदाचार्य के अनुसार जजों की नियुक्ति में नेटवर्किंग की बजाय यदि योग्यता और ईमानदारी को प्राथमिकता मिले तो देश में न्यायिक क्रांति संभव है। इससे आम लोगों को जल्द न्याय के साथ अयोध्या जैसे मामलों का भी त्वरित निबटारा संभव हो सकेगा।

इन्हें भी पढ़ें -गोविंदाचार्य का मोदी को पत्रः रामलला की भूमि पर कोई विवाद नहीं, मालिक केंद्र सरकार

गोविंदाचार्य ने यह बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे छह पेज के पत्र में कोलेजियम से नियुक्त जजों के आभिजात्य एजेंडे में अयोध्या महत्वपूर्ण नहीं उपशीर्षक के तहत लिखी हैं। इस पत्र में जजों की नियुक्ति प्रणाली में सुधार के लिए दिये गये प्रतिवेदन के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को प्रधानमंत्री की कार्यवाही के लिए भेजा है।

अपने पत्र में गोविंदाचार्य लिखते हैं कि सरकार और न्यायपालिका के बीच वर्चस्व की लड़ाई, लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। वर्तमान व्यवस्था में जजों के लिए औपचारिक परीक्षा या साक्षात्कार की प्रणाली नहीं है। जजों की नियुक्ति कोलेजियम, एनजेएसी या स्वतंत्र आयोग किसी भी माध्यम से हो लेकिन उसमें पारदर्शिता होनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एनजेएसी मामले में 2015 में दिये गए फैसले में मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) में बदलाव की बात कही गई थी जिसके लिए सरकार और न्यायपालिका में तीन वर्षों से संघर्ष चल रहा है।

इन्हें भी पढ़ें -गोविंदाचार्य ने सरकार को भेजा नोटिस

पीएम मोदी को संबोधित पत्र में गोविंदाचार्य लिखते हैं कि संविधान की अनुसूची 3 के अनुसार जजों की नियुक्ति के समय एक शपथ पत्र देने की संवैधानिक बाध्यता है। हमने इस शपथ पत्र का एक प्रारूप उच्चतम न्यायालय और केंद्रीय विधि मंत्रालय को सौंपा है, जिसे प्रशासनिक आदेश से एमओपी का हिस्सा बनाया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के तहत नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए अपनी संपत्ति समेत सभी विवरणों को शपथ पत्र के माध्यम से घोषित करना आवश्यक होता है। उसी तर्ज पर जजों को भी अपना संपूर्ण विवरण देना जरूरी होना चाहिए।

पत्र में वह लिखते हैं कि जनधारणाओं के अनुसार जजों की नियुक्ति में दो सौ बड़े परिवारों का एकाधिकार है। लोकतंत्र के हित में इस तंत्र को तोड़कर ही भारत में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना हो सकती है। इसके लिए शपथ पत्र के दूसरे खंड में नियुक्त होने वाले जजों को सत्ता के विभिन्न केन्द्रों से अपने रिश्तों का खुलासा करना जरूरी होना चाहिए। नियुक्त होने वाले जज का केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सर्वोच्च न्यायालय के जज, हाईकोर्ट के जज, सरकारी अफसर और वरिष्ठ वकीलों के साथ क्या रिश्ते हैं इसका खुलासा शपथ पत्र में होना चाहिए।

इन्हें भी पढ़ें विधानसभा चुनाव: अगड़ों पर सितम-अपनों पर रहम, ये कैसी सोशल इंजीनियरिंग

पत्र में आगे लिखा गया है कि अजादी के बाद अनेक सरकारें बदल गईं परन्तु महाभियोग के तहत आज तक एक भी जज को नहीं हटाया जा सका। शपथ पत्र के तीसरे खंड में नियुक्त होने वाले जज की इस बात पर सहमति होना जरूरी है कि यदि शपथ पत्र असत्य या गलत है तो जजों को महाभियोग के बगैर भी गलत शपथ पत्र देने के लिए हटाया जा सकता है। पत्र के अंत में वह लिखते हैं कि मैने संक्षेप में सारे बिंदु लिखे हैं। आवश्यकतानुसार हर बिंदु पर आवश्यक तथ्य और कानूनी शोध उपलब्ध कराने के लिए मै सदैव तत्पर हूं।

Tags:    

Similar News