विशेष : ऐसे हुई थी नोटबंदी, एक साल तक किया गया था रिसर्च

भारत में नोटबंदी जैसा ऐतिहासिक और बड़ा फैसला अचानक नहीं हुआ था। इसके लिए बाकायदा एक साल तक रिसर्च चला और तब यह निर्णय लिया गया।

Update: 2017-11-08 07:37 GMT
विशेष : ऐसे हुई थी नोटबंदी, एक साल तक किया गया था रिसर्च

संजय तिवारी

नई दिल्ली : भारत में नोटबंदी जैसा ऐतिहासिक और बड़ा फैसला अचानक नहीं हुआ था। इसके लिए बाकायदा एक साल तक रिसर्च चला और तब यह निर्णय लिया गया। 8 नवंबर 2016, ठीक एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीवी पर आए। देश के नाम अपनी स्पीच में उन्होंने कहा कि रात 12 बजे से 1,000 और 500 के नोट चलन से बाहर हो जाएंगे। उनके एक ऐलान से महज चार घंटे में 86% करेंसी यानी 15.44 लाख करोड़ रुपए के नोट चलन से बाहर हो गए। ये रकम 60 छोटे देशों की ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) के बराबर है। नोटबंदी का ऐसा फैसला 1978 के बाद हुआ था। तब जनता पार्टी की सरकार ने 1000, 5000 और 10,000 हजार के नोटों को बंद कर दिया था।

घटनाक्रम के अनुसार, पिछले साल 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों आर्मी चीफ और प्रेसिडेंट प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की। रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संदेश दिया, भाइयो-बहनों ! देश को भ्रष्टाचार और कालेधन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए एक और सख्त कदम उठाना जरूरी हो गया है। आज मध्यरात्रि यानी 8 नवंबर 2016 की रात्रि को 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपए 1,000 रुपए के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। ये मुद्राएं कानूनन अमान्य होंगी। नोटबंदी के ऐलान के वक्त देश में 17 लाख करोड़ रुपए की करेंसी चलन में थी। 86% यानी 15.4 लाख करोड़ रुपए की करंसी 500 और 1,000 के नोटों की शक्ल में थी। इसे बंद करने का फैसला लिया गया था। 15.4 लाख करोड़ रुपए की रकम दुनिया के 60 छोटे देशों की कुल जीडीपी के बराबर है। इससे 162 बुर्ज खलीफा जैसी ऊंची इमारतें बनाई जा सकती हैं। बुर्ज खलीफा को बनाने में करीब 1.5 बिलियन डॉलर खर्च हुए। बंद किए गए नोटों की वैल्यू 243 बिलियन डॉलर थी।

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गुजराती में होती थी बातचीत

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, मोदी ने तब के रेवेन्यू सेक्रेटरी हसमुख अढिया समेत 6 लोगों की टीम बनाई। इनके साथ कुछ यंग रिसर्चर्स भी थे। जब मोदी गुजरात के सीएम थे तो 2003 से 2006 के बीच अढिया उनके प्रिंसिपल सेक्रेटरी थे। इस टीम ने 1 साल तक मोदी के घर पर रिसर्च की थी। प्लान सीक्रेट रखने के लिए गुजराती में ही बातचीत होती थी। मोदी ने 8 नवंबर को महज तीन मंत्रियों के साथ कैबिनेट मीटिंग की। इस मीटिंग में मोदी ने कहा- मैंने पूरी रिसर्च कर ली है। अगर नोटबंदी का फैसला नाकाम रहा तो इसकी जिम्मेदारी भी मेरी ही होगी। पहले 18 नवंबर की तारीख नोटबंदी के लिए तय की गई थी, लेकिन प्लान लीक होने का जोखिम था। इसलिए 8 नवंबर को ही फैसला कर लिया गया।

ढाई घंटे पहले आरबीआई ने मंजूरी दी थी

एक आरटीआई के जवाब में रिजर्व बैंक ने बताया था, "500-1000 के नोटों को बंद करने के फैसले को RBI बोर्ड की मीटिंग में शाम 5.30 बजे मंजूरी दी गई। रात 8 बजे मोदी ने इसका एलान कर दिया था। 8 नवंबर से 31 दिसंबर 2016 तक 500-1000 के नोट बदलने की मोहलत दी गई। 2000 रुपए प्रतिदिन लिमिट तय की गई एटीएम से कैश निकालने की। 500-2000 के नए नोट जारी किए गए। 8 नवंबर 2016 से 21 दिसंबर तक आरबीआई ने नोटबंदी से जुड़े नियमों में 60 बार बदलाव किया। लोगों को परेशानी न हो, इसके लिए सरकार ने कुछ जगहों पर पुराने नोट चलाने की छूट दी, जिसका लोग गलत फायदा उठाने लगे। इससे सरकार को बार-बार नियम बदलने पड़े।

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प्रिटिंग-सप्लाई में सेना ने की मदद

नोटबंदी के बाद और सैलरी मिलने का दौर शुरू होने से पहले एयरफोर्स ने 210 टन करंसी की सप्लाई प्रिंटिंग प्रेस से आरबीआई के सेंटर्स तक की। 200 जवानों को नोटों की छपाई में मदद के लिए लगाया गया। नोटबंदी के वक्त देश में 2 लाख 1 हजार 861 एटीएम थे। 500-1000 के नोट बंद होने से कैश के लिए 100 रुपए का ऑप्शन बचा। इसलिए एटीएम की लिमिट 15-20 लाख रुपए से घटकर 4 लाख तक आ गई। इन एटीएम को 500-2000 के नोटों के हिसाब से तैयार किया गया। उम्मीद की जा रही थी कि नोटबंदी के बाद जो करंसी बाहर हुई है, उसकी जगह नई करंसी को चलन में लाने में 8 से 9 महीने का वक्त लगेगा। लेकिन, सरकार ने ये काम 4-5 महीनों के भीतर कर लिया।

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नोटबंदी क्यों की गई थी?

मोदी ने नोटबंदी को भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद के खिलाफ उठाया गया कदम बताया था। उन्होंने कहा था, "भ्रष्टाचार, कालाधन और जाली नोटों के खिलाफ हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं, उसको इससे ताकत मिलने वाली है।"

नोटबंदी का असर क्या हुआ?

ब्लैकमनी: मोदी ने अपनी स्पीच में नोटबंदी की बड़ी वजह ब्लैकमनी को बताया था। लेकिन, RBI की एनुअल रिपोर्ट कहती है कि नोटबंदी के बाद 500-1000 के करीब 98.7% नोट यानी 15.28 लाख करोड़ रुपए बैंकों में लौट आए। सिर्फ 1.3% नोट बैंकों में जमा नहीं हुए। विपक्ष ने सवाल उठाया कि जब 98.7% पैसा बैंकिंग सिस्टम में लौट आया तो ब्लैकमनी कहां गई?

नोटबंदी के समय कहा गया था कि देश में तीन लाख करोड़ रुपए की ब्लैकमनी नकदी के रूप में मौजूद है। सरकार ने 500 और 1000 रु.के रूप में मौजूद 86 फीसदी मुद्रा बंद कर दी, जिसका मूल्य 15.44 लाख करोड़ रु. था। हालांकि जनवरी में आई एक रिपोर्ट में यह जरूर कहा गया कि हवाला के जरिए होने वाला लेनदेन नोटबंदी के बाद से 50 प्रतिशत कम हुआ है।

संदिग्ध ट्रांजैक्शन: नोटबंदी के दौरान संदिग्ध ट्रांजैक्शन को लेकर 18 लाख अकाउंट्स होल्डर्स को नोटिस भेजा गया था। इनमें से 10 लाख ने जवाब दिया। बाकियों के खिलाफ सरकार एक्शन की तैयारी कर रही है।

शेल कंपनियां: 2.97 लाख शेल कंपनियों की भी पहचान की। इनमें से 2.24 लाख का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया। कॉरपोरेट मिनिस्ट्री ने बताया, 35 हजार कंपनियों ने नोटबंदी के दौरान 17 हजार करोड़ रुपए जमा किए और बाद में निकाल लिए। ये रकम भी बैन की गई करंसी का महज 2% ही है।

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जाली नोट: नोटबंदी का मकसद नकली नोटों पर लगाम लगाना भी था। लोकसभा में सरकार ने 7 फरवरी 2017 को जानकारी दी कि 19.53 करोड़ रु. के जाली नोट नोटबंदी के बाद पकड़े गए। अरुण जेटली ने कहा, "नोटबंदी के बाद बैंकों में वापस लौटे 500-1000 के नोटों की गिनती का काम पूरा कर लिया गया है। अब इनमें से जाली नोटों की पहचान का काम किया जा रहा है।"

आतंकवाद: सरकार, मोदी और जेटली कई बार ये बात कह चुके हैं कि नोटबंदी के बाद से आतंकियों की फंडिंग रुकी और कश्मीर में प्रोटेस्ट कम हुए।

इनकम टैक्स रिटर्न: फाइनेंस मिनिस्ट्री के मुताबिक, 2016-17 में 5 अगस्त तक 2.82 करोड़ इनकम टैक्स रिटर्न फाइल किए गए। पिछले फाइनेंशियल ईयर के मुकाबले ये 24.7% ज्यादा है। इंडीविजुअल्स की तादाद भी 2.22 करोड़ से 25.3% बढ़कर 2.79 करोड़ हो गई। एडवांस टैक्स कलेक्शन 41.79% और पर्सनल इनकम टैक्स कलेक्शन 34.25% बढ़ा।

पॉलिटिकल असर: नोटबंदी के बाद यूपी में बीजेपी ने 312 सीटें के साथ विधानसभा चुनाव जीता। उत्तराखंड में भी जीत मिली, लेकिन पंजाब में हार का सामना करना पड़ा।

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नोटबंदी ने इकोनॉमी पर क्या असर डाला?

जीडीपी : इंटरनेशनल मॉनीटरी फंड ने (आईएमएफ) 2017-18 के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 0.50% घटाकर 6.7% किया था।

डिजिटल पेमेंट: सरकारी आंकड़े के मुताबिक, नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट 42% तक बढ़ गए। पेमेंट काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) के मुताबिक, डिजिटल पेमेंट इंडस्ट्री की ग्रोथ 70% तक बढ़ गई।

महंगाई: फाइनेंस मिनिस्ट्री के मुताबिक- पिछले तीन साल में औसत महंगाई दर 5% से नीचे रही और जुलाई-2016 से जुलाई-2017 तक एवरेज इन्फ्लेशन रेट 2% के आसपास था।

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वर्ल्ड बैंक: वर्ल्ड बैंक की ईज ऑफ डूइंग लिस्ट में भारत 130 से 100वीं रैंकिंग पर आ गया है। टैक्स पेइंग इंडेक्स में 53 रैंकिंग का सुधार किया है। अब इंडिया 172 से 119वीं पोजिशन पर आ गया है।

होम लोन: नोटबंदी के बाद एसबीआई, पीएनबी, आईसीआईसीआई बैंक, यूनियन बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक और देना बैंक ने होम लोन की दरें घटाईं। एसबीआईने नोटबंदी का एक साल पूरा होने से पहले नवंबर की शुरुआत में 0.05% की कटौती की। एसबीआई का होम लोन पर 8.30% का रेट तय कर दिया है। ये इंडियन मार्केट में सबसे सस्ता होम लोन है।

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दुनिया के पांच अर्थशास्त्रियों ने क्या कहा ?

फायदे से ज्यादा नुकसान: कौशिक बसु

भारत के पूर्व चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर कौशिक बसु ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा था, "मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला ‘गुड इकोनॉमिक्स’ कतई नहीं है। इसके फायदों से ज्यादा, इसके नुकसान होंगे। जीएसटी को आप गुड इकोनॉमिक्स की कैटेगरी में रख सकते हैं, लेकिन नोटबंदी को नहीं रख सकते।"

बेइमान ज्यादा सतर्क हो जाएंगे: पॉल क्रूगमैन

इकोनॉमिक्स का नोबेल पाने वाले पॉल क्रूगमैन ने कहा था, "बड़े नोटों को बंद करने से भारत की इकोनॉमी को बड़ा फायदा होते नहीं दिख रहा। इस फैसले से सिर्फ करप्ट लोग भविष्य में ज्यादा अलर्ट हो जाएंगे। लोगों के बिहेवियर में सिर्फ एक ही परमानेंट बदलाव आएगा, वह यह कि बेईमान लोग अपने पैसे को काले से सफेद करने के मामले में ज्यादा सतर्क हो जाएंगे और उसके ज्यादा नए तरीके ढूंढ लेंगे।"

बुनियाद हिलाने वाला मनमाना फैसला: अमर्त्य सेन

इकोनॉमिक्स के नोबेल से सम्मानित अमर्त्य सेन ने कहा था, "नोटबंदी का फैसला नोटों की अहमियत, बैंक खातों की अहमियत और भरोसे पर चलने वाली पूरी इकोनॉमी की अहमियत को कम कर देता है। ये मनमाना फैसला है। बीते 20 साल में भारत ने काफी तेजी से तरक्की की है। लेकिन इसकी बुनियाद एक-दूसरे से कहे गए भरोसे के शब्द हैं। लेकिन नोटबंदी का मनमाना फैसला यह कहने के बराबर है कि हमने वादा तो किया था, लेकिन हम उस वादे को पूरा नहीं कर सकते।"

नसबंदी जैसा अनैतिक फैसला: स्टीव फोर्ब्स

बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स के एडिटर इन-चीफ स्टीव फोर्ब्स ने एडिटोरियल में लिखा था, "नोटबंदी का फैसला जनता के पैसे पर डाका डालने जैसा है। 1970 के दशक में नसबंदी जैसा अनैतिक फैसला लिया गया था, लेकिन उसके बाद से नोटबंदी तक ऐसा फैसला नहीं लिया गया था। मोदी सरकार ने देश में मौजूद 86% लीगल करंसी एक झटके में इलीगल कर दी। यह कदम देश की इकोनॉमी को तगड़ा झटका देगा।"

जड़ें जमा चुका करप्शन खत्म नहीं होगा: गाय सोरमन

फ्रेंच इकोनॉमिस्ट गाय सोरमन ने कहा था, "जड़ें जमा चुके करप्शन को यह खत्म नहीं कर सकता। नरेंद्र मोदी का शासन में जल्दबाजी दिखाना कुछ निराश करने वाला है। मुझे लगता है कि इकोनॉमी को चलाने के लिए पहले से तय उपायों को अपनाना बेहतर कदम होता।"

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एक बार में नोटबंदी करने को नहीं कहा था: बोकिल

सरकार ने हमारा 5 प्वाइंट प्रपोजल नहीं माना। शायद सरकार चुनाव से पहले किए गए वादों को निभाना चाहती हो। हमने एक टैक्सलेस कैश इकोनॉमी की बात कही थी।हमारा प्रपोजल एक जीपीएस सिग्नल की तरह था। हमने सिर्फ उन्हें (सरकार को) एक सही रास्ता दिखाया। जैसे जीपीएस गलत रास्ते पर जाने पर आपको दूसरा रास्ता दिखाता है वैसा ही कुछ काम हमने किया। हमने पांच साल पहले ही नोटबंदी के फायदे और नुकसान के सभी प्वाइंट्स पब्लिक डोमेन में रखे थे। हमने कभी नहीं बोला कि 500 और 1000 के नोट एक झटके में निकाल दो। सिर्फ 1000 के नोट बाहर निकालते तो 35% का गैप आ जाता। 500 के नए नोट का स्टॉक बढ़ा देते तो 2000 का नोट इंट्रोड्यूस ही नहीं करना पड़ता। आज 86% 2000 की करंसी चलन में है। नोटबंदी के बाद जनता प्रभावित न हो, इसलिए 2000 के नोट लाए गए। हम एक कैश रिच इकोनॉमी हैं। यह सरकार का एक अच्छा कदम था। 99% पैसे वापसी की ये बात मीडिया का इंटरप्रिटेशन है। बैंकों का क्रेडिट बढ़ा है। सभी पैसे अंडर वॉच हैं। हम मानते हैं, नोटबंदी का फैसला सही था। गलती, सफलता और असफलता का कोई सवाल ही नहीं उठता। अभी इसे लागू किए हुए सिर्फ एक साल का समय हुआ है। अभी पेपर लिख रहे हैं वे। अभी पेपर तो सबमिट करने दो। सरकार को पास या न पास पब्लिक इलेक्शन में करेगी। डेमोक्रेसी में जो भी रिजल्ट होता है, वह इलेक्शन होता है। हमें लगता है कि नोटबंदी केवल एक संरचनात्मक परिवर्तन की शुरुआत है। नोटबंदी एक प्रभावी निर्णय है क्योंकि इसने नकदी के रूप में कालेधन को कम कर दिया।

हम जो कई साल से कह रहे हैं, गवर्नमेंट उसपर रिएक्ट कर रही है। हर चीज पब्लिक में नहीं लाई जाती।राहुल गांधी ने भी हमारी बात सुनी लेकिन कोई सकारात्मक रिस्पॉन्स नहीं दिखाया। हमारी मुलाकात राहुल जी के अलावा कई लोगों से हुई थी। कुछ सेकंड की मुलाकात की बात गलत है। हम कुछ मिनट मिले थे। हमारे हिसाब से कैश से क्रेडिट शीट होना इकोनॉमी को ट्रांसपेरेंट करने का सबसे बड़ा और अच्छा तरीका था। यह डेवलपमेंट मॉडल था ही नहीं। यह एक करेक्शन मॉडल था। हम एनजीओ हैं। देश का जो भला करेगा, हम उसके साथ चले जाएंगे। किसी भी हाल में हमारा देश अच्छा होना चाहिए।

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कई बार रिजेक्ट हुआ प्रपोजल

मोदी से मुलाकात से पहले अनिल कई बार अपने प्लान को लेकर अलग-अलग मंत्रियों से मिले, लेकिन कहीं से पॉजिटिव जवाब ने मिलने पर कभी उनका आत्मविश्वास टूटा नहीं। उन्हें यकीन था कि सही समय आएगा। वे खुद से ज्यादा समाज और संस्था के बारे में सोचते हैं। खुद से पहले अर्थक्रांति को रखते हैं। 4-5 दिनों में ही लोगों ने उन्हें सेलिब्रिटी समझना शुरू कर दिया है, लेकिन उनके पैर जमीन पर हैं। बात 1990 की है। उस वक्त अनिल की खुद की फैक्ट्री थी। इसी दौरान किसी दूसरी फैक्ट्री के वर्कर ने सुसाइड किया। जब वे उस वर्कर के घर पहुंचे तो परिवार की हालत देख कर टूट गए। उन्हें पता चला कि दूसरी फैक्ट्री बंद होने के कगार पर है, इसलिए वर्कर ने खुदकुशी की। अब वे बाकी वर्करों को लेकर चिंतित होने लगे। उन्हें पता चला कि फैक्ट्री के 70 वर्कर हैं और सबकी हालत खराब है। उन्होंने सोचा कि हर वर्कर के पास कोई-न-कोई स्किल है तो बैंक से लोन लेकर सभी को खुद का काम शुरू करके देते हैं। चूंकि उन वर्करों का किसी बैंक में खाता नहीं था, इसलिए लोन मिलने में काफी परेशानी आई। उन्हें समझ आया कि बैंक में क्रेडिबिलिटी जैसा कुछ नहीं है। सिस्टम में बहुत खराबी है। 2-3 साल की जद्दोजहद के बाद एक बैंक लोन देने के लिया आगे आया। इसी दौरान उन्होंने इकोनॉमिक्स को पढ़ना और उस पर रिसर्च शुरू की। वे जानते थे कि इकोनॉमिक्स और फाइनेंस अलग है, जबकि हमारे देश में इन्हें एक ही समझा जाता है। इसी घटना के बाद उन्हें फैक्ट्री बंद की और 2000 में अर्थक्रांति प्रतिष्ठान की स्थापना की।

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नोटबंदी की सालगिरह

"125 करोड़ भारतीयों ने निर्णायक जंग लड़ी और जीती। मैं भारत के लोगों का सम्मान करता हूं जिन्होंने देश में से करप्शन और ब्लैक मनी को खत्म करने के लिए उठाए गए सरकार के फैसलों का साथ दिया।"

--नरेंद्र मोदी

"नोटबंदी एक ट्रैजिडी है। हम उन लाखों ईमानदार लोगों के साथ खड़े हैं जिनकी जिंदगी और जीने के तरीके प्रधानमंत्री के बिना सोचे-समझे उठाए गए कदम ने तबाह कर दिए।एक आंसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है, तुमने देखा नहीं आंखों का समुंदर होना।

--राहुल गांधी

मोदी सरकार ने नोटबंदी से ना सिर्फ कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई बल्कि इससे वित्तीय प्रणाली को सुचारू कर मजबूत अर्थव्यवस्था की नींव रखी।नोटबंदी और कालेधन के लिए एसआईटी जैसे बड़े निर्णय देश को कालेधन और भ्रष्टाचार से मुक्त करने की मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को प्रमाणित करते हैं। काला-धन विरोधी दिवस मोदी जी के साहसिक नेतृत्व और देश से कालेधन और भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए ऐतिहासिक फैसले नोटबंदी को समर्पित है।

--अमित शाह

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