सुधांशु सक्सेना/शारिब जाफरी
लखनऊ: सहायक शिक्षकों की भर्ती का मामला प्रदेश सरकार के गले की फांस बन गया है। शिक्षक भर्ती परीक्षा में धांधली की इतनी परतें खुल रही हैं कि जिनसे पता चलता है कि नौकरशाहों व सफेदपोशों के गठजोड़ ने अभ्यर्थियों के साथ भद्दा मजाक किया है। परीक्षा में कदम-कदम पर धांधली की बू आ रही है। पहले परीक्षा की तिथि बढ़ाई गयी,फिर कॉपियों की जांच में मानक नहीं पूरे किए गए और फिर कटिंग व ओवरराइटिंग पर भी नंबर दे दिए गए। परीक्षा का पैटर्न भी सवालों के घेरे में है। परीक्षा प्रक्रिया के दौरान ही नियमों में बदलाव तक कर डाला गया। परीक्षा में शुचिता की किस तरह धज्जियां उड़ाई गयीं इसे इसी से समझा जा सकता है कि दागी फर्म को परीक्षा का रिजल्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंप दी गयी।
बड़े-बड़े वादों और दावों के साथ प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में ऐसी एक भी परीक्षा आयोजित नहीं हो सकी, जिसमें बेरोजगारों को खुशी का मौका मिला हो। हर परीक्षा में या तो नकल माफियाओं ने पेपर लीक करा दिया या फिर परीक्षा के पैटर्न में खामियां उजागर हुईं। जब सरकार ने परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 68500 शिक्षकोंकी बड़ी भर्ती के लिए आवेदन मांगे तो अभ्यर्थियों में खुशी की लहर दौड़ गई। परीक्षा की तारीख तय की गई 12 मार्च, लेकिन परीक्षा की तारीख नजदीक आने पर अचानक इसे आगे बढ़ाकर 27 मई कर दिया गया। उसी समय लोगों को अंदेशा हो गया था कि कुछ तो गड़बड़ है, लेकिन उन्हें ये उम्मीद नहीं थी कि इस भर्ती की आड़ में एक बड़ा खेल खेला जाने वाला है।
सहायक अध्यापक भर्ती की यह परीक्षा भी ऐसी हुई कि कॉपियों को देखकर ही गड़बड़ी का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसे लापरवाही कहें या बड़ी साजिश कि इतनी संवेदनशील परीक्षा की कॉपियां जांचने के लिए परीक्षकों को पर्याप्त समय और निर्देशों का अभाव रहा। अदालत में रखी गई कॉपियों ने यह चुगली की कि कॉपी जांचने के नियमों का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन हुआ है।
दागी फर्म के जिम्मे सौंप दिया था रिजल्ट
इस एग्जाम में प्रथम दृष्टया धांधली करने वाले अधिकारियों पर तो सरकार ने कार्रवाई कर दी है,लेकिन इस एग्जाम का परिणाम तैयार करने वाली कम्प्यूटर फर्म मेसर्स वंडर प्वाइंट क्रिएटिव सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ये साफ जाहिर है कि इतने बड़े पैमाने पर गड़बड़ी बिना कंप्यूटर फर्म की संलिप्तता के नहीं की जा सकती है, लेकिन उस पर शिकंजा नहीं कसा गया। दिलचस्प ये भी है कि 2012 में 23 फरवरी को रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज में रजिस्टर्ड इस फर्म को यूपी डेस्को और यूपी इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड,लखनऊ के साथ बतौर आईटी नोडल एजेंसी इंपैनल कर लिया गया। इतना ही नहीं इस फर्म को टीचर्स एलिजिबिल्टी टेस्ट यानि टीईटी का जिम्मा भी सौंप दिया गया।
सूत्रों की मानें तो इस एजेंसी के डायरेक्टर निखिल मिश्रा के पिता विमल मिश्रा की कंपनी मेसर्स मैनेजमेंट कंट्रोल सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड पर इससे पूर्व सरकारी परीक्षाओं में अनियमितता के आरोप भी लगे थे। सूत्रों के मुताबिक डायरेक्टर निखिल मिश्रा की कंपनी की एक अन्य डायरेक्टर अपर्णा अवस्थी के तत्कालीन सचिव व परीक्षा नियामक प्राधिकारी डॉ.सुत्ता सिंह से बेहद अच्छे रिश्ते थे। मालूम हो कि सुत्ता सिंह समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता व सांसद भगवती सिंह की रिश्तेदार हैं। ऐसे में साफ समझा जा सकता है कि नौकरशाही और सफेदपोशों के गठजोड़ का इस्तेमाल करके बेरोजगारों के साथ एक भद्दा मजाक किया जा रहा है।
ये है दागी फर्म का इतिहास
परीक्षा का परिणाम तैयार करने वाली फर्म निखिल मिश्रा की है, लेकिन इस फर्म मेसर्स वंडर प्वाइंट क्रिएटिव सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के पंजीकरण से ठीक एक साल पहले वर्ष 2011 में मेसर्स मैनेजमेंट कंट्रोल सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड को रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी के साथ रजिस्टर्ड किया गया। गौर करने वाली बात ये है कि मेसर्स मैनेजमेंट कंट्रोल सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड फर्म निखिल मिश्रा के पिता विमल मिश्रा की है। इस फर्म को बसपा सरकार में स्वास्थ्य विभाग में 728 प्रयोगशाला सहायकों की भर्ती परीक्षा का रिजल्ट तैयार करने के साथ-साथ उत्तराखंड की कुमायूं यूनिवर्सिटी में वर्ष 2014 में एमएड की परीक्षा कराने का जिम्मा भी सौंपा गया था।
प्रयोगशाला सहायकों की भर्ती परीक्षा में इस फर्म पर ओएमआर शीट जलाने सहित अन्य अनियमितताओं के आरोप लगे। परीक्षा परिणाम से पता चला कि इतनी ज्यादा अनियमितता हुई कि एक ही परिवार के कई सदस्यों का चयन हो गया था। इस फर्म को जांच अधिकारी विशेष सचिव मानवेंद्र सिंह ने ब्लैकलिस्ट किया था। इसके साथ ही इस फर्म की सीबीसीआईडी जांच भी हुई थी।वहीं कुमायूं यूनिवर्सिटीकी एमएड परीक्षा में धांधली के चलते कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।
सोशल मीडिया पर वायरल एक ऑडियो में तत्कालीन सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने भी कंप्यूटर फर्म द्वारा बारकोड की गलत रीडिंग करने और अनियमितता करने की बात स्वीकारी है। ऑडियो क्लिप में तत्कालीन सचिव एक छात्र अंकित वर्मा (रोल नंबर 35351406871) को मिले प्राप्तांक 22 और इसी कैंडीडेट की स्कैन कॉपी में मिले 122 अंक के प्रकरण पर बोल रही हैं। इस ऑडियो क्लिप में कंप्यूटर फर्म ने लापरवाही और गलती दोनों स्वीकार भी की है।
परीक्षा का पैटर्न सवालों के घेरे में
विश्वस्त विभागीय सूत्रों के मुताबिक जिस तरह की खामियां सामने आई हैं उससे साफ जाहिर है कि एक सोची समझी साजिश के तहत एग्जाम का पैटर्न तय किया गया। सूत्रों का यह भी कहना है कि जिस तरह से पूर्व नियोजित परीक्षा तारीख में बदलाव किया गया, वह सिर्फ विभागीय स्तर पर अंजाम नहीं दिया जा सकता। जब तक मंत्रालय न चाहे, तब तक परीक्षा की तिथि में बदलाव संभव नहीं है।
क्या था पैटर्न और क्या थीं खामियां
इस बार हुई शिक्षक भर्ती परीक्षा के रिटेन एग्जाम को सरकार की प्राथमिकता के मुताबिक नकलविहीन कराने और अभ्यर्थियों की लेखन क्षमता को परखने के लिए अति लघुउत्तरीय प्रश्नों को प्रश्नपत्र में शामिल किया गया। इसकी कॉपियां जांचने के लिए इंटर कॉलेज के अध्यापकों को लगाया गया। जानकारों की मानें तो पैटर्न तो बदल दिया गया, लेकिन लिखित कॉपी चेक करने वालों को इतना समय ही नहीं दिया गया कि वह ढंग से कॉपी और लेखन क्षमता की जांच कर सकें। परीक्षा को 27 मई को आयोजित कराने के बाद सरकार और विभाग ने जमकर अपनी पीठ थपथपाई। इस परीक्षा का रिजल्ट 13 अगस्त को जारी भी कर दिया गया। परीक्षा में कुल एक लाख 25 हजार 746 कैंडीडेट्स ने आवेदन किया, एक लाख सात हजार आठ सौ तिहत्तर कैंडीडेट्स ने परीक्षा दी और 41556 यानि कुल 38.52 प्रतिशत अभ्यर्थी सफल घोषित हुए। जब परीक्षार्थियों ने रिजल्ट देखा तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई।
कई अभ्यर्थियों की उम्मीद के मुताबिक उनका परिणाम नहीं आया था। इसके बाद कैंडीडेट्स ने 2000 रुपये खर्च करके अपनी स्कैन कापियां मंगवाईं। इसके बाद ही पूरा खेल खुलता चला गया क्योंकि सचिव परीक्षा नियामक कार्यालय से मिली स्कैन कॉपियों और ऑनलाइन जारी हुए रिजल्ट में जमीन-आसमान का अंतर नजर आया। इसके बाद विरोध शुरू हुआ। बढ़ते दबाव को देखते हुए 22 अगस्त को सामने आई शिकायतों का संज्ञान लेकर तत्कालीन सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी सुत्ता सिंह ने जांच शुरू कर दी। किसको पता था कि उनके द्वारा शुरू की गई इस जांच की आंच में वह खुद भी झुलस जाएंगी। ऐसी बातें भी सामने आ रही हैं कि अभ्यर्थियों की उत्तरपुस्तिकाओं का मूल्यांकन काफी हद तक सही है परंतु कॉपियों पर दर्ज अंक को एवार्ड ब्लैंक पर लिखने में गलती हुई है। यह काम बतौर परीक्षक कॉपी जांच रहे राजकीय कालेजों के शिक्षकों को दिया गया था, जिन्होंने ये गलती की है।
वैसे देखा जाए तो यह गलती उनकी भी नहीं है क्योंकि जब भी कोई परीक्षा होती है तो उसके मूल्यांकन का एक पैटर्न बनाया जाता है और परीक्षकों को एक निर्देशिका भी जारी की जाती है, लेकिन जल्दबाजी में कई परीक्षकों ने बार कोड या कॉपी पर दर्ज अन्य सूचनाएं अंक की जगह लिख दीं। इसलिए अभ्यर्थियों की स्कैन कॉपी और ऑनलाइन जारी परिणाम में अंतर दिख रहा है। इसके चलते इस संवेदनशील परीक्षा में कॉपी के ज्यादा अंक एवार्ड ब्लैंक पर दर्ज नहीं हुए हैं। इस बात को उस समय कोई पकड़ ही नहीं पाया। अब जब यह बात सामने आ रही है तो परीक्षा की शुचिता पर सवाल उठ रहे हैं।
बीच में ही किया नियमों में बदलाव
तत्कालीन परीक्षा नियामक प्राधिकारी डॉ.सुत्ता सिंह की ओर से सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा कराए जाने के बीच में ही नियमों में बदलाव करते हुए सामान्य-ओबीसी की मेरिट 33 प्रतिशत और एससी-एसटी की 30 प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया था। इसके तुरंत बाद ही भर्ती प्रक्रिया के मध्य में नियमों में परिवर्तन किए जाने के मामले में कैंडीडेट्स की ओर से कोर्ट में याचिका दाखिल करने के बाद सरकार ने नियमों में किए गए इस बदलाव को 8 अगस्त को वापस लेते हुए पुराने मानक यानि सामान्य-ओबीसी 45 प्रतिशत और एससी-एसटी का 40 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। इतना ही नहीं, नियमों में परिवर्तन के तुरंत बाद तत्कालीन सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने रिजल्ट में संशोधन करते हुए पांच दिन के भीतर ही रिजल्ट जारी कर दिया। इसी रिजल्ट में ढेरों खामियां मिलने लगीं, जिसके चलते परीक्षा विवादों में आ गयीं।
धांधली हुई उजागर
बीते दिनों शिक्षा निदेशालय लखनऊ कार्यालय में बिलख-बिलखकर प्रदर्शन कर रही अभ्यर्थी सुमन और रेनू ने बताया कि इस परीक्षा में अधिकारियों ने हम बेरोजगारों के साथ बहुत बड़ा धोखा किया है। सामने आए प्रकरणों में से सर्वाधिक चर्चित सोनिका प्रकरण की बात करें तो उसकी तो कॉपी ही बदल गई। इसी तरह अंबेडकर नगर के अंकित वर्मा की बानगी देखें तो उसे रिजल्ट में 22 अंक मिले जबकि उसकी उत्तरपुस्तिका में 122 अंक दर्ज थे। इसी तरह कैंडीडेट मीना देवी का जिक्र करें तो इस नाम की कैंडीडैट एग्जाम में बैठे बिना ही 75 अंकों के साथ पास हो गयीं। इसी तरह मोहम्मद साहून ने भी किन्हीं कारणों से पेपर छोड़ दिया था, लेकिन रिजल्ट में उसे एक या दो नहीं बल्कि 86 अंकों के साथ पास घोषित कर दिया गया। वहीं यतीश सेंगर नामक अभ्यर्थी को ऑनलाइन रिजल्ट में 41 नंबर नवाजे गए जबकि उसकी स्कैन कॉपी में 94 अंक दर्शाए गए। धांधली इतने चरम पर रही कि 23 फेल कैंडीडेट्स को पास होने वाले अभ्यर्थियों की लिस्ट में शामिल कर लिया गया। इतना ही नहीं इनमें से 20 कैंडीडेट्स को तो जिला भी आवंटित कर दिया गया। इससे समझा जा सकता है कि परीक्षा में किस तरह शिक्षा माफियाओं,अधिकारियों और सफेदपोशों का काकस हावी रहा।
कटिंग-ओवरराइटिंग में भी दे दिए नंबर
स्कैन कॉपियां लेने वाले अभ्यर्थियों की मानें तो इस परीक्षा की गाइडलाइन के मुताबिक कटिंग और ओवरराइटिंग के नंबर नहीं दिए जाने थे, लेकिन यहीं खेल हो गया। कटिंग और ओवरराइटिंग पर भी खुले दिल से नंबर बांटे गए। अब इन कॉपियों को हाईकोर्ट में रखने की तैयारी है। कोर्ट में इस बात को साबित किया जाएगा कि गाइडलाइन से अलग हटकर मूल्यांकन किया गया। इस मूल्यांकन में समान नियम का पालन नहीं हुआ है। यहां ये भी जानना जरूरी होगा कि आखिर इसके पीछे क्या कोई साजिश तो नहीं है।
छह साल से मलाईदार पद पर थे दागी अधिकारी
सस्पेंड तत्कालीन सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी डॉ.सुत्ता सिंह पर जहां टीईटी में हेराफेरी के आरोप लगे हैं वहीं तत्कालीन बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव संजय सिन्हा का दामन भी कम दागदार नहीं है। वे पिछले छह सालों से इसी पद पर मलाई काट रहे थे और भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन देने का वादा करने वाली योगी सरकार इस बड़ी घपलेबाजी से पहले आंखें मूंदे बैठी रही। इसका परिणाम ये हुआ कि सपा सरकार के चहेते अफसरों में शुमार रहे संजय सिन्हा योगी सरकार के दामन पर एक बड़ा दाग बन बैठे।
माया-अखिलेश राज में भी हुए बड़े कांड
मायावती सरकार के दौरान 13 नवंबर 2011 को पहली बार आयोजित उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपी-टीईटी) में भी बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे थे। पुलिस ने कम्प्यूटर फर्म की हार्डडिस्क तक जब्त कर ली थी। बाद में कम्प्यूटर एजेंसी के खिलाफ एफआईआर हुई थी,लेकिन उसके बाद जांच कहां तक पहुंची, किसी को नहीं पता। अगर हम संजय सिन्हा की बात करें तो ये जनाब दिसंबर 2012 से इस पद पर थे। इस दौरान इनकी निगरानी में 72825प्रशिक्षु शिक्षक भर्ती, 9770 सहायक अध्यापक भर्ती, 10800 शिक्षक भर्ती का आयोजन किया गया।
इसके साथ ही साथ 4280 व 3500 सहायक अध्यापक उर्दू भाषा के शिक्षकों की भर्ती, उच्च प्राथमिक स्कूलों में विज्ञान व गणित विषय के 29334 शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थियों को नौकरी दी गई।इसके साथ ही साथ प्राइमरी स्कूलों की 15000 शिक्षक भर्ती, 16448 शिक्षक भर्तियों का भी आयोजन हुआ। वहीं 60442 शिक्षामित्रों को 19 जून 2014 को पहले चरण में और 8 अप्रैल 2015 को दूसरे चरण में 77075 शिक्षामित्रों (कुल 137517) का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन भी इन्हीं के कार्यकाल में हुआ।ऐसे में सवाल ये है कि आखिर इन सभी परीक्षाओं की जांच भी एक स्वतंत्र एजेंसी से कराकर इनकी शुचिता को भी क्यों न परख लिया जाए।
पुलिस भर्ती परीक्षा में भी हुई थी बड़ी लापरवाही
प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में 68500 सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा कोई पहली ऐसी परीक्षा नहीं है, जिसमें परीक्षा आयोजित करवाने वाली कंपनी पर उंगली उठी हो। इससे पहले भी इसी वर्ष जून माह में उत्तर प्रदेश पुलिस और पीएसी के आरक्षी की लिखित परीक्षा के दौरान पहली शिफ्ट में दूसरी शिफ्ट का पेपर बांट दिया गया था जिसके चलते पूरी परीक्षा ही विवादों में आ गई थी। इसमें भी इस परीक्षा को आयोजित कराने वाली एजेंसी टीसीएस पर सवाल खड़े हो गए थे, लेकिन इसके बाद भी कंप्यूटर फर्म के चयन को लेकर सरकार ने कभी भी गंभीर रुख नहीं अपनाया।जून माह में आयोजित उत्तर प्रदेश पुलिस और पीएसी के आरक्षी की लिखित परीक्षा की बात करें तो एटा और इलाहाबाद जनपद में गलत प्रश्नपत्र बांटने का मामला सामने आया था जिसकी जांच शुरू की गई।
इस जांच में टीसीएस के सेंटर प्रभारी को दोषी मानते हुए तत्काल हटा दिया गया। इसके साथ ही साथ एटा और इलाहाबाद के एडिशनल एसपी स्तर के पुलिस नोडल अफसरों को निलंबित कर दिया गया। परीक्षा केंद्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी देख रहे इंस्पेक्टरों को भी निलंबन का सामना करना पड़ा। मैनेजमेंट स्कूलों और डीआईओएस तक को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, लेकिन हैरत की बात कि कंप्यूटर फर्म पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। सूत्रों की मानें तो जब तक संवेदनशील परीक्षाएं आयोजित करवाने वाली कंप्यूटर फर्मों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक ऐसे ही संवेदनशील परीक्षाओं की शुचिता सवालों और विवादों के घेरे में फंसती रहेगी।
सरकार ने दागियों को ही सौंप दी जांच
योगी सरकार के 17 महीने के कार्यकाल में हुई सबसे बड़ी भर्ती परीक्षा पर दाग लगने से सरकार बौखला गई। इसके बाद आनन-फानन में सरकार ने 5 सितंबर को एक जांच समिति गठित कर दी। मजे की बात इस समिति में भी दागी ही शामिल किए गए। मामले की जांच के लिए जो चार सदस्यीय कमेटी बनाई गई, उसमें बेसिक शिक्षा सचिव मनीषा त्रिघाटिया को अध्यक्ष बनाया गया। वहीं एससीईआरटी के निदेशक संजय सिन्हा, निदेशक बेसिक शिक्षा सर्वेंद्र विक्रम बहादुर सिंह और तत्कालीन सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी डॉ सुत्ता सिंह को सदस्य बनाया गया।इनमें डॉ.सुत्ता सिंह पर पूर्व में आयोजित शिक्षक पात्रता परीक्षा में गड़बडिय़ों के गंभीर आरोप लग चुके हैं। वहीं संजय सिन्हा का दामन भी पाक साफ नहीं है।
जब इस कमेटी पर ही अभ्यर्थियों ने सवाल खड़ा करना शुरू किया तो बैकफुट पर आई सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए तत्कालीन सचिव परीक्षा नियामक अधिकारी डॉ.सुत्ता सिंह को निलंबित कर दिया। इसके साथ ही तत्कालीन रजिस्ट्रार विभागीय परीक्षाएं जीवेंद्र सिंह ऐरी और सचिव बेसिक शिक्षा परिषद संजय सिन्हा को पद से हटा दिया गया।इसके बाद इस पूरे प्रकरण की जांच प्रमुख सचिव चीनी, गन्ना विकास संजय आर.भूसरेड्डी की अध्यक्षता में गठित कमेटी को सौंप दी गई। दुबारा बनी उच्चस्तरीय कमेटी में अध्यक्ष के रूप में शामिल प्रमुख सचिव चीनी, गन्ना विकास संजय आर.भूसरेड्डी के साथ सर्व शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना निदेशक वेदपति मिश्रा और बेसिक शिक्षा निदेशक सर्वेंद्र विक्रम बहादुर सिंह को सदस्य नामित किया गया। इनको निर्देश दिया गया कि अगले सात दिनों में अपनी जांच आख्या शासन को सौंपें। सूत्रों की मानें तो अब तक की जांच प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर धांधली और गड़बडिय़ों की शिकायत के पुख्ता प्रमाण मिले हैं।
एक और रिजल्ट जारी करने के मूड में सरकार
प्रदेश सरकार की खासा किरकिरी के बाद विभाग इस भर्ती का एक और रिजल्ट जारी करने के मूड में है। इस शिक्षक भर्ती में हर कार्य दो बार हो रहा है। पहले दो उत्तीर्ण प्रतिशत तय हुए, फिर दो चयन सूची बनी, इसके बाद दो तरह का जिला आवंटन हुआ और अब दो परीक्षा परिणाम जारी होने की तैयारी शुरू है। यही नहीं, परीक्षा की तारीख तक दो बार बदली थी।
सरकार पर पड़ रहा अरबों का वित्तीय बोझ
प्रदेश में शिक्षक और शिक्षणेत्तर कर्मियों की संख्या साढ़े पांच लाख से ज्यादा है। इनमें प्राथमिक शिक्षकों की संख्या सबसे ज्यादा है। सातवें वेतनमान से पूर्व सहायक अध्यापकों का वेतनमान 9300 ग्रेड पे 4200 और डीए मूल वेतन का 125 फीसदी प्राप्त होता था। इसके चलते नगद प्राप्ति वेतनमान 9300+ग्रेड पे 4200+(13500 का 125 फीसदी) यानि कुल 30,375 रुपये होती थी। सातवें वेतनमान के बाद नया वेतनमान न्यूनतम 35400 रुपये हो गया है। यदि पूरे वर्ष की बात करें तो अलग अलग मदों में राज्य सरकार बेसिक शिक्षा पर प्रदेश में कक्षा 1 से 5 तक के कुल एक लाख 13 हजार 249 प्राथमिक स्कूलों और 45 हजार पांच सौ नब्बे उच्च प्राथमिक स्कूलों पर करोड़ों रुपये व्यय कर रही है। सूबे में प्राथमिक स्कूलों के 130.62 लाख और उच्च प्राथमिक स्तर के 56.09 लाख बच्चे पढ़ रहे हैं। इन्हें पढ़ाने के लिए वर्तमान में एक लाख छह हजार सहायक अध्यापक कार्यरत हैं। अगर इसमें नई भर्ती के 68 हजार 500 शिक्षकों को जोड़ दें तो प्रदेश में कुल एक लाख 74 हजार 500 शिक्षक हो जाएंगे। इस नियुक्ति के बाद प्रदेश सरकार पर अरबों का वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा।
यूपी में बेसिक शिक्षा के स्कूलों का विवरण एवं खर्च
- प्राथमिक स्कूलों की संख्या -1,13,249
- उच्च प्राथमिक स्कूलों की संख्या-45,590
- प्राथमिक स्कूलों में अध्ययनरत छात्र-छात्राएं-130.62 लाख
- उच्च प्राथमिक स्कूलों में अध्ययनरत छात्र-छात्राएं-56.09 लाख
- बेसिक स्कूलों में कुल अध्यापकों की वर्तमान संख्या-1,06,000
- 68500 शिक्षक भर्ती के बाद बेसिक स्कूलों में कुल अध्यापकों की संख्या-1,74,500
- सहायक अध्यापकों का नया अनुमानित न्यूनतम मासिक वेतन-35,400 रुपये
- प्रदेश सरकार का एक वित्तीय वर्ष में अनुमानित खर्च-20 हजार करोड़ रुपये
इन परीक्षाओं में भी फेल रही सरकार
यूपी के परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 68500 शिक्षकों की बड़ी भर्ती में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश सबऑर्डिनेट सर्विस सेलेक्शन कमीशन द्वारा ट्यूबवेल ऑपरेटर की भर्ती परीक्षा भी नकल माफियाओं से नहीं बच पाई। ट्यूबवेल ऑपरेटरों की भर्ती के लिए परीक्षा गत 2 सितंबर को होनी थी, लेकिन परीक्षा से एक रात पहले ही हिंदी का पेपर लीक हो गया। नई तारीख की घोषणा अभी नहीं की गई है।इसके साथ ही साथ उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन की जूनियर इंजीनियर, आफिस अस्स्टिेंट, स्टेनोग्राफर और सहायक समीक्षा अधिकारी की परीक्षाओं का भी पेपर लीक हो गया था। इसमें परीक्षा आयोजित कराने वाली एपटेक कंपनी के द्वारा ही पेपर लीक की पुष्टि हुई थी। अब इन परीक्षाओं को प्रदेश सरकार दुबारा आयोजित कराने जा रही है।
बेसिक शिक्षा मंत्री ने नहीं उठाया फोन
जब इस प्रकरण पर बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल के मोबाइल नंबर पर कॉल कर उनसे सरकार का पक्ष जानने की कोशिश की गयी तो उन्होंने फोन उठाना भी जरूरी नहीं समझा।
सरकार पूरी तरह फेल:द्विजेंद्र त्रिपाठी
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता द्विजेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि जिस तरह से बेसिक शिक्षक भर्ती परीक्षा की कॉपियों को जलाने की बात सामने आ रही है, उससे साफ जाहिर होता है कि बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई है। इस तरह की हेराफेरी बिना सरकार की जानकारी के संभव नहीं है। इस परीक्षा के अलावा कई परीक्षाओं के पेपर भी लीक हुए हैं। योगी सरकार का प्रशासनिक अधिकारियों पर नियंत्रण ही नहीं रह गया है। सरकार या तो पूरी तरह से इस भ्रष्टाचार में खुद ही संलिप्त है या फिर सरकारी मशीनरी पर सरकार का लेश मात्र भी नियंत्रण नहीं रह गया है। अब इस बात को सरकार को साफ करना चाहिए कि सरकार की इसमें क्या भूमिका है।
निरस्त हो पूरी परीक्षा:उमेश द्विवेदी
विधानपरिषद सदस्य उमेश द्विवेदी ने का कहना है कि सोशल मीडिया पर कॉपियां जलाने की खबर वायरल हो चुकी है। इसके साथ ही साथ सरकार ने तत्कालीन सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी डॉ सुत्ता सिंह समेत अन्य अफसरों पर कार्रवाई कर दी है। इसका मतलब है कि योगी सरकार ये मान चुकी है कि कहीं न कहीं गड़बड़ी हुई है। ये परीक्षा पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं है। इसलिए सरकार इस मामले में उच्चस्तरीय कमेटी से जांच करवा रही है। हमारी एक ही मांग है कि इस पूरी परीक्षा को रद्द किया जाए और नये सिरे से परीक्षा कराई जाए।
परीक्षा की पॉलिसी ही सवालों के घेरे में
बेसिक शिक्षक संघ, लखनऊ के जिलाध्यक्ष सुधांशु मोहन का कहना है कि इस परीक्षा की पॉलिसी ही सवालों के घेरे में है। पहले परीक्षा की नियत तिथि को बढ़ाया गया। इसके बाद जब किसी तरह परीक्षा करवाकर नतीजे जारी किए गए तो उसमें कई ऐसे कैंडीडेट्स के प्रकरण सामने आए जो बिना परीक्षा दिए ही पास घोषित हुए। ऐसे में परीक्षा में धांधली से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। जांच ऐसी हो जिसमें विभागीय अधिकारी बिलकुल भी शामिल न हों। इसके साथ ही साथ जो मेरिट लिस्ट बने उसमें भी यह ध्यान रखा जाए कि जिन अभ्यर्थियों ने अच्छा परफार्म किया है, उन्हें गृह जनपद या नजदीकी जनपद दिया जाए और अन्य को नियमानुसार दूर के जिले आवंटित हों।
तत्कालीन सचिव और निदेशक सवालों से बच रहे
इस बाबत जब निलंबित चल रही तत्कालीन सचिव परीक्षा नियामक प्रभारी डॉ.सुत्ता सिंह और निदेशक बेसिक शिक्षा तथा सदस्य उच्चस्तरीय जांच कमेटी सर्वेंद्र विक्रम बहादुर सिंह का पक्ष जानने के लिए फोन किया गया तो उन्होंने कई बार संपर्क करने पर भी फोन नहीं उठाया। साफ जाहिर है कि वे इस मामले में किसी भी प्रकार के सवालों से बचना चाह रहे हैं। ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि बड़े पैमाने पर हुई इस धांधलेबाजी में कई अधिकारियों के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।