Exclusive: और अब योगी सरकार ने यूपी सैट में कर दिया खेल, रिटायर्मेंट की घटाई उम्र
देश भर में ये पहला मामला है, जब किसी राज्य सरकार ने राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सैट) के अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष सहित दस सदस्यों की आयुसीमा कम कर दी है।
लखनऊ: क्या किसी भी न्यायिक निकाय में राजनीतिक नेतृत्व प्रत्यक्ष हस्तक्षेप कर सकता है। हमारी जानकारी के मुताबिक तो नहीं, लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने ऐसा ही किया है और उसके लिए कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दे रही है।
देश भर में ये पहला मामला है, जब किसी राज्य सरकार ने राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सैट) के अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष सहित दस सदस्यों की आयुसीमा कम कर दी है।
सरकार में बैठे हमारे सूत्रों ने newstrack.com को बताया, कि राज्य मंत्रिमंडल ने इस संबंध में पहले ही प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
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सरकार के इस फैसले के बाद अब राज्य न्यायाधिकरण के अध्यक्ष की आयु 70 वर्ष से 65 साल तक घटा दी गई है। जबकि उपाध्यक्ष और सदस्यों की आयु 65 साल से कम होकर 62 साल हो जाएगी। मौजूदा नियमों के तहत न्यायाधिकरण के अध्यक्ष उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या भारत सरकार के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों जो पूर्व में सचिव रहे हों, उनको नियुक्त किया जा सकता है।
इसी तरह उपाध्यक्ष मुख्य सचिव स्तर का सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी या सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश हो सकता है। वहीँ दस सदस्यों के लिए पांच सेवानिवृत्त आईएएस और सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश स्तर के न्यायिक अधिकारियों का प्रावधान है।
सूत्रों के मुताबिक, यह देश में अपनी तरह का पहला मामला है जिसमें यूपी सरकार ने न्यायिक निकाय के साथ इस तरह का मनमाना रवैया अपनाया। उपलब्ध सूचना के अनुसार, यूपी सरकार का ये कदम ट्राइब्यूनल में सेवा शर्तों में एकरूपता को लेकर संशय पैदा कर रहा है क्योंकि सभी निकायों में नियुक्ति के एक ही नियम है।
यदि बात करे सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तो उसके मुताबिक राज्य ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष और सदस्यों के लिए अधिकतम उम्र 68 और 65 वर्ष है। राज्य ट्रिब्यूनल के एक सदस्य ने हमें बताया कि वर्तमान में जो भी सदस्य इस में मौजूद हैं उनकी सेवा शर्तों को बीच में बदल दिया गया है क्योंकि उन्हें एक निश्चित कार्यकाल के लिए नियुक्त किया गया था और अचानक उन्हें इसे छोड़ने के लिए कहा गया है। आपको बता दें, कि वर्तमान अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के लिए नामों को अंतिम रूप इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने ही दिया था।