Chhath Puja History 2024: छठ पूजा क्यों मनाते हैं, कब से हुई इसकी शुरुआत, जानें कथा के बारे में
Chhath Puja Ka Vrat Kabse Shuru Hua: छठ व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। क्योंकि इस पर्व के दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। आइए जानें कैसे हुई थी इस महापर्व की शुरुआत।
Chhath Puja Kyun Manate Hai: अगले महीने नवंबर में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja) मनाया जाएगा। वैसे तो पूरे देशभर में छठ पूजा की धूम रहती है, लेकिन उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और बिहार (Bihar) जैसे राज्यों में इसे महापर्व के तौर पर मनाया जाता है। यह त्योहार पूरे चार दिन तक चलता है। जिसमें नहाय खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य शामिल होता है। कहते हैं छठ का व्रत रखने से छठी मइया और सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी हो जाती है। इससे परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। आइए जानते हैं इस साल छठ का त्योहार कब है और इसे क्यों मनाया जाता है।
इस साल कब है छठ पूजा 2024 (Chhath Puja 2024 Date)
छठ व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। क्योंकि इस पर्व के दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है और सप्तमी तिथि पर इसका समापन होता है। छठ का मुख्य व्रत षष्ठी तिथि को रखा जाता है। इस साल 5 नवंबर से छठ पूजा की शुरुआत होनी है। 5 को नहाय खाय है। इसके अगले दिन 6 नवंबर, बुधवार को खरना है। 7 नवंबर को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। फिर 8 नवंबर को उषा अर्घ्य है यानी इस दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं अपने व्रत का पारण करेंगी।
क्यों मनाया जाता है छठ का पर्व (Chhath Puja History In Hindi)
छठ का पर्व साल में दो बार पड़ता है। कार्तिक मास में पड़ने वाली छठ पूजा को 'कार्तिकी छठ' कहा जाता है। इसे पारिवारिक सुख-शांति और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इसे लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा सबसे पहले माता सीता ने की थी। आइए जानें इससे जुड़ी प्रचलित कथाओं के बारे में।
त्रेता युग से हुई छठ पूजा की शुरुआत
एक मान्यता के अनुसार, त्रेता युग में सबसे पहले माता सीता ने छठ पूजा की थी, तभी से ये व्रत करने की परंपरा शुरू हो गई। दरअसल, जब 14 साल के वनवास के बाद भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण संग अयोध्या लौटे, तब रावण के वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। इस यज्ञ के लिए उन्होंने ऋषि मुग्दल को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने ही सीता माता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने की सलाह दी थी। तब माता सीता ने यह व्रत किया था।
मुग्दल ऋषि के कहने पर माता सीता, भगवान श्रीराम के साथ मुंगेर आईं और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मुंगेर के बबुआ गंगा घाट के पश्चिमी तट पर सूर्यदेव की उपासना की थी और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। मुंगेर की इस जगह पर आज भी सीता मां के पद चिन्ह मौजूद हैं। कहा जाता है कि माता सीता द्वारा पहली बार छठ व्रत करने के बाद से ही इस महापर्व को हर जगह मनाया जाने लगा।
महाभारत काल में द्रोपदी ने भी रखा था छठ व्रत
इसके अलावा छठ पूजा को लेकर एक और कथा बेहद प्रचलित है। कुछ लोग छठ पर्व की शुरुआत द्वापरयुग से मानते हैं। इस किवदंती के मुताबिक, महाभारत काल के समय पांडवों द्वारा जुए में सारा राजपाठ हार जाने के बाद उनकी पत्नी द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था। इस दौरान उन्होंने छठी मइया और सूर्य देव की उपासना की थी। कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से उनकी मनोकामना पूरी हो गई और पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाठ वापस मिल गया था।