Paramahansa Yogananda: गोरखपुर के एक छोटे से शहर का यह योगी कैसे बना योगानन्द, आइए जानते हैं सब कुछ
Paramahansa Yogananda Biography: परम हंस योगानंद का जीवन एक आध्यात्मिक यात्रा थी, जिसमें उन्होंने आत्म-साक्षात्कार और दिव्य प्रेम के संदेश को फैलाने का कार्य किया।;
Paramahansa Yogananda Biography History (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Paramahansa Yogananda Kon The: परम हंस योगानंद 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली योगी और आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। उन्होंने पश्चिमी दुनिया में योग और ध्यान का प्रचार किया और अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी (Autobiography of a Yogi)" के माध्यम से लाखों लोगों को प्रेरित किया। उनका जीवन एक आध्यात्मिक यात्रा थी, जिसमें उन्होंने आत्म-साक्षात्कार और दिव्य प्रेम के संदेश को फैलाने का कार्य किया। इस लेख में, हम उनके जीवन, शिक्षाओं, योगदान और प्रभाव का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
प्रारंभिक जीवन (Paramahansa Yogananda Biography In Hindi)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
परम हंस योगानंद का जन्म 5 जनवरी 1893 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर (Gorakhpur) में हुआ था। उनका वास्तविक नाम मुकुंद लाल घोष (Mukund Lal Ghosh) था। वे एक धार्मिक और आध्यात्मिक परिवार में जन्मे थे, जहाँ उनके माता-पिता लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे, जो स्वयं क्रिया योग के महान गुरु थे।
बाल्यकाल से ही योगानंद का झुकाव आध्यात्मिकता की ओर था। उन्होंने कई योगियों और संतों से मुलाकात की और उनकी शिक्षाओं से गहराई से प्रभावित हुए। किशोरावस्था में ही उन्होंने अपने गुरु स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि की शरण ली, जिन्होंने उन्हें क्रिया योग की शिक्षा दी। उनके जीवन के प्रेरक प्रसंगों में से एक उनकी पुस्तक "योगी कथामृत" में "मेरे गुरु के आश्रम की कालावधि" नामक प्रकरण में मिलता है, जहाँ उन्होंने श्रीरामपुर स्थित अपने गुरु के आश्रम में संन्यासी प्रशिक्षार्थी के रूप में बिताए गए जीवन का रोचक वर्णन किया है।
आध्यात्मिक शिक्षा और प्रशिक्षण
योगानंद ने क्रिया योग की गहन साधना की और अपनी साधना के बल पर उच्च आध्यात्मिक चेतना प्राप्त की। वे स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरि के साथ कई वर्षों तक रहे और उनके मार्गदर्शन में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया।
1915 में, उन्होंने संन्यास लिया और उन्हें "योगानंद" नाम मिला, जिसका अर्थ है "आनंद में लीन योगी"। कुछ वर्षों तक उन्होंने भारत में विभिन्न स्थानों पर ध्यान और योग सिखाया, जिससे उनकी ख्याति बढ़ती गई।
अमेरिका में योग का प्रचार (Yoga promotion in America)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
1920 में, योगानंद को अमेरिका जाने का अवसर मिला। वे बॉस्टन में एक धार्मिक सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करने गए, जहाँ उनकी योग शिक्षाओं को अत्यधिक सराहा गया। इसके बाद, उन्होंने पूरे अमेरिका में ध्यान, योग और आत्म-साक्षात्कार पर प्रवचन देना शुरू किया।
उन्होंने "सेल्फ-रियलाइजेशन फेलोशिप" (SRF) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया को सरल बनाना था। योगानंद ने अपने जीवन के अधिकांश समय अमेरिका में ही व्यतीत किया और पश्चिमी दुनिया को योग एवं ध्यान की गहराई से परिचित कराया। उन्होंने तीन दशकों से अधिक समय तक अमेरिका में भारत की प्राचीन आध्यात्मिक शिक्षाएँ प्रदान करने के लिए कार्य किया।
"ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी" और साहित्यिक योगदान
योगानंद की सबसे प्रसिद्ध कृति "ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी" 1946 में प्रकाशित हुई। यह पुस्तक न केवल उनकी आत्मकथा थी, बल्कि भारतीय योग परंपरा, योगियों और संतों के जीवन का भी विस्तृत वर्णन करती थी।
इस पुस्तक ने अनगिनत लोगों को प्रेरित किया, जिनमें स्टीव जॉब्स, जॉर्ज हैरिसन, और अन्य प्रसिद्ध हस्तियाँ शामिल थीं। यह पुस्तक आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों द्वारा पढ़ी जाती है और आध्यात्मिक खोज के मार्गदर्शन के रूप में देखी जाती है।
योगानंद ने अन्य कई ग्रंथ भी लिखे, जिनमें प्रमुख रूप से "गॉड टॉक्स विद अर्जुना: द भगवद गीता" और "द सेकेंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट" शामिल हैं।
क्रिया योग और उनकी शिक्षाएँ
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
योगानंद ने क्रिया योग को अत्यधिक महत्व दिया और इसे आत्म-साक्षात्कार का सबसे प्रभावी साधन बताया। क्रिया योग एक प्राचीन ध्यान तकनीक है, जो प्राणायाम, ध्यान और आध्यात्मिक साधना का संयोजन है। क्रिया योग मार्ग एक व्यापक जीवन शैली है और इसे आत्म-साक्षात्कार का "वायुयान मार्ग" कहा जाता है।
उनकी प्रमुख शिक्षाएँ इस प्रकार थीं:-
क्रिया योग का अभ्यास – यह तकनीक आंतरिक जागरूकता और आत्म-साक्षात्कार के लिए महत्वपूर्ण है।
संपूर्णता और आत्म-साक्षात्कार – प्रत्येक व्यक्ति के भीतर दिव्यता विद्यमान है, जिसे ध्यान और साधना से अनुभव किया जा सकता है।
ध्यान और भक्ति का महत्व – उन्होंने भगवान के साथ प्रेममय संबंध स्थापित करने पर बल दिया।
संतुलित जीवन – भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
विज्ञान और आध्यात्मिकता का संगम – उन्होंने वैज्ञानिक आधार पर ध्यान और योग की शक्ति को समझाया।
योगानंद जी के लाखों अनुयायी उनकी क्रिया योग शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं और उनसे अत्यधिक लाभान्वित हुए हैं। यह लेखक व्यक्तिगत रूप से इस तथ्य की पुष्टि कर सकता है कि योगानंद जी द्वारा सिखाई गई ध्यान प्रविधियों ने उसका जीवन पूर्ण रूप से रूपांतरित कर दिया है।
परमहंस योगानंदजी ने अपने अंतिम वर्ष अधिकांशतः एकांत में व्यतीत किए, जिसमें उन्होंने अपने लेखन कार्य को पूर्ण करने के लिए अत्यंत समर्पण और परिश्रम किया। इस अवधि में उन्होंने भगवद्गीता तथा जीसस क्राइस्ट के चार गोस्पेल्स की शिक्षाओं पर अपनी विस्तृत टीका को संपूर्ण किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने अपनी पूर्व प्रकाशित पुस्तकों, जैसे Whispers from Eternity और योगदा सत्संग पाठमाला, का पुनरावलोकन भी किया।
परमहंस योगानंदजी की शिक्षाओं की प्रामाणिकता
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
परमहंस योगानंदजी के बारे में जानकारी देने वाले स्रोतों की बढ़ती हुई विविधता के कारण, कई बार पाठकों के मन में यह प्रश्न उठता है कि किसी प्रकाशन में उनके जीवन और शिक्षाओं को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया गया है या नहीं। इस संदर्भ में, यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि परमहंसजी ने अपनी शिक्षाओं के प्रचार और भावी पीढ़ियों के लिए उनकी शुद्धता एवं सत्यनिष्ठा को सुरक्षित रखने हेतु योगदा सत्संग सोसाइटी (वाईएसएस) / सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) की स्थापना की थी।
प्रामाणिक प्रकाशनों की पुष्टि
योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इंडिया द्वारा प्रकाशित सभी प्रमुख पुस्तकों के मुखपृष्ठ पर एक होलोग्राम लगा होता है। यदि किसी पुस्तक पर यह होलोग्राम मौजूद है, तो पाठक आश्वस्त रह सकते हैं कि इसका प्रकाशन परमहंस योगानंदजी द्वारा स्थापित संस्था ने किया है, और इसमें प्रस्तुत साहित्य उनकी शिक्षाओं को उसी शुद्धता और सटीकता के साथ संकलित करता है, जैसा कि वे स्वयं चाहते थे।
योगानंद का प्रभाव और विरासत
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
2017 में, भारत के प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में एक विशेष समारोह के दौरान 7 मार्च 2017 को परमहंस योगानंद को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर, भारत सरकार ने योगदा सत्संग सोसायटी की 100वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक विशेष डाक टिकट जारी किया। इस तिथि का चयन परमहंसजी की महासमाधि की वर्षगांठ के रूप में किया गया था। अपने प्रेरक संबोधन में, प्रधानमंत्री ने उन्हें भारत के सबसे महान योगियों और शिक्षकों में से एक के रूप में सम्मानित किया और उनकी शिक्षाओं को आधुनिक विश्व में भारत की आध्यात्मिक विरासत का महत्वपूर्ण प्रतीक बताया।
योगानंद ने 7 मार्च 1952 को लॉस एंजेलेस में महाप्रयाण किया। यह कहा जाता है कि उनके शरीर में कई दिनों तक कोई विघटन नहीं हुआ, जिसे एक अद्भुत आध्यात्मिक घटना माना जाता है। उनके अनुयायी मानते हैं कि उन्होंने अपनी इच्छानुसार महासमाधि प्राप्त की।
परम हंस योगानंद एक ऐसे संत थे, जिन्होंने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह को सरल बनाया। उनकी शिक्षाएँ आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित कर रही हैं।